“शाही ईदगाह मस्जिद हटाओ,” वाली याचिका मथुरा कोर्ट ने की स्वीकार

श्री कृष्ण जन्मभूमि के साथ भी होने वाला है जल्दी ही न्याय

Shahi Idgah Masjid

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जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी, श्री कृष्णजन्मभूमि पर आधारित याचिका को लेकर बड़ी पसोपेश को मथुरा की जिला अदालत ने स्वीकार कर खत्म कर दिया है। यह वही स्थान है जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया था। ईदगाह श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल के बगल में है, जहां भगवान कृष्ण का जन्म होना माना जाता है। विवाद में अनिवार्य रूप से 13.37 एकड़ भूमि का स्वामित्व शामिल है जिसका दावा है कि याचिकाकर्ता भगवान श्री कृष्ण विराजमान के हैं।

सिविल कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी

दरअसल, इससे पहले सिविल कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि आप श्री कृष्ण विराजमान के अनुयायी हैं और श्री कृष्ण विराजमान केस फाइल नहीं कर सकते। अब चूंकि याचिका को स्वीकृत कर लिया गया है तो कार्रवाई आगे बढ़ने की ओर अग्रसर है और यह विवाद भी न्यायिक रूप से अपने निस्तारण पर पहुंचेगा ऐसी आशा सभी अनुयायी कर रहे हैं। जिला और सत्र न्यायाधीश राजीव भारती द्वारा याचिका की अनुमति देने के फैसले का मतलब है कि मुकदमे की सुनवाई अब निचली अदालत द्वारा की जाएगी। राजस्व रिकॉर्ड देखने के अलावा, अदालत को श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण जो कानून के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है और ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह जिसमें मंदिर है, के बीच 1968 के ‘समझौता समझौते’ की वैधता भी तय करनी होगी। प्राधिकरण ने भूमि के विवादास्पद हिस्से को ईदगाह को दे दिया।

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मंदिर ट्रस्ट का आरोप- समझौता वैध नहीं

बता दें,  श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना 1958 में हुई थी। अब, निजी पार्टियों और मंदिर ट्रस्ट का आरोप है कि समझौता वैध नहीं है क्योंकि ट्रस्ट के पास जमीन है और मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण के पास समझौता करने की कोई शक्ति नहीं है। ईदगाह की ओर से पेश वकीलों ने दलील दी कि सोसायटी ट्रस्ट का एजेंट है और सोसायटी के मुखिया की नियुक्ति ट्रस्ट ही करता है।

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पिछले साल एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने छह अन्य लोगों के साथ पिछले साल एक सिविल जज की अदालत में मामले में पहली बार दावा दायर किया था।  न्यायाधीश ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं है जिसका इस मामले में वैध हित हो सकता है। इस फैसले को जिला अदालत में चुनौती दी गई जहां ट्रस्ट और मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण को पक्षकार बनाया गया। इस बात पर ध्यान तो अवश्य देना चाहिए कि अब निश्चित रूप से वो समय आ गया है कि, अयोध्या, मथुरा और काशी के विवादों के शांत होने के बाद सभी धार्मिक अनुष्ठान विघ्नरहित पूरे हो सकेंगे।

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