“समर्पण करो या भुगतान करो”, चीन ने पाकिस्तान को दो विकल्प दिए हैं

अब पाकिस्तान पर हो जाएगा चीन का कब्जा ?

Source: TFI

पाकिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा आतंक का अड्डा है। लेकिन वर्तमान के समीकरणों को अगर समझें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आतंक के अड्डे में कम्युनिस्ट चीन ने अपनी पैठ जमा ली हो। चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (CPEC) की आड़ में चीन ने पाकिस्तान में अपने पैर जमा लिए हैं।

विशेषज्ञों द्वारा पाकिस्तान में चीन के पैर जमाने को अक्सर चीन की नव-औपनिवेशिक नीतियों की प्रायोगिक प्रयोगशाला करार दिया जाता है। ऐसा लगता है कि दशकों पुरानी भविष्यवाणी अब साकार हो गई है। कराची, बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान में चीनी नागरिकों, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजनाओं पर हालिया आतंकी हमलों के बीच, चीन ने देश में काम कर रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए सैन्य चौकियों की मांग की है।

सुरक्षा की मांग करता रहा है चीन

इस्लामाबाद में राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, चीन लंबे समय से पाकिस्तान की कानून प्रवर्तन एजेंसियों से अपने नागरिकों और सीपीईसी परियोजनाओं के लिए सुरक्षा की मांग करता रहा है।

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उन्होंने अब शीत युद्ध और आतंक के खिलाफ युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव या उपयोग वाले क्षेत्रों में सैन्य चौकियों की मांग की है। आपको बता दें कि 26 अप्रैल को बुर्का पहने बलूच महिला आत्मघाती हमलावर ने पाकिस्तान के कन्फ्यूशियस संस्थान के पास एक वैन को टक्कर मार दी। इसमें विभाग के प्रमुख और उनके स्थानीय चालक समेत तीन चीनी शिक्षकों की मौत हो गई।

संस्थान के पाकिस्तानी निदेशक डॉ. नादिर उद्दीन ने कहा कि शेष 12 शिक्षक मृत शिक्षकों के अवशेषों के साथ चीन के लिए रवाना हो गए हैं। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) से जुड़े मजीद ब्रिगेड ने शिक्षकों पर हमले की जिम्मेदारी ली है।

हालांकि, चीन की नवीनतम मांग अनुचित प्रतीत नहीं होती है। यदि हम इस तथ्य पर विचार करें कि उन्होंने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है। वर्तमान में 300 अरब में चलने वाली दो दर्जन से अधिक चीनी फर्मों का रुपया पाकिस्तान पर बकाया है। चीनी कंपनियों ने भुगतान नहीं किए जाने तक अपने बिजली संयंत्रों को बंद करने की धमकी दी है। News18 की रिपोर्ट के अनुसार, क्वेटा, बलूचिस्तान के पास बोस्टन औद्योगिक क्षेत्र (विशेष आर्थिक क्षेत्र, SEZ); बलूचिस्तान का चमन जिला अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है।

शम्सी एयरबेस दोबारा होगा संचालित!

ग्वादर पोर्ट, विशेष रूप से जोन-I और जोन-II; सीपीईसी के पश्चिमी संरेखण पर कुछ गश्त इकाइयां जो अवारन, खुजदार, होशब और तुर्बत क्षेत्रों जैसे बलूचिस्तान के शत्रुतापूर्ण क्षेत्रों को कवर करती हैं। मोहम्मद मार्बल सिटी (एसईजेड) मोहम्मद एजेंसी के पास अफगानिस्तान और सोस्ट ड्राई-पोर्ट और मोकपोंडास विशेष आर्थिक क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान के साथ पाकिस्तान में चल रही प्रमुख चीनी परियोजनाएं हैं। अगर ये परियोजना बंद हो जाती है तो पहले से ही भीख मांगता पाकिस्तान पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा।

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बलूच अलगाववादी नेताओं का दावा है कि बलूचिस्तान में चीनी नागरिक चीनी सेना की तरह काम कर रहे हैं और इसलिए वे उन्हें निशाना बनाते रहेंगे। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने कहा, “हमने ग्वादर पोर्ट और अन्य क्षेत्रों में जहां वे सीपीईसी परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं चीनी सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया और मार डाला। बीएलए ने बलूचिस्तान से बाहर निकलने के लिए चीनी अधिकारियों को कई चेतावनी भी जारी की हैं।

यही नहीं राजनयिक हलकों में एक सूत्र ने यह भी दावा किया है कि यह मांग पाकिस्तान में आतंकवादियों से लड़ने और अफगानिस्तान में निगरानी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की मांग के बाद आई है। अमेरिका बलूचिस्तान में शम्सी एयरबेस को फिर से संचालित करने का इच्छुक है।

पाकिस्तान में उपस्थिति बढ़ाता चीन

सूत्र ने यह भी बताया कि चीन अफगानिस्तान में निवेश करने का इच्छुक है और अपनी बीआरआई परियोजना का विस्तार करना चाहता है। इसलिए बीजिंग को अपनी सैन्य चौकियों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान को सुरक्षित करने की जरूरत है।

पाकिस्तान पर दबाव बढ़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में देश की कोई वैधता नहीं है। कर्ज के जाल से खुद को बचाने के लिए दर-दर भटक रहा है। ऐसे में अब यह देखनी वाली बात होगी कि चीन किस तरह से पाकिस्तान में आगे बढ़ता है। अगर चीन अपनी चौकी पाकिस्तान में बना लेता है तो फिर पाकिस्तान के लिए आने वाला वक्त और भी ज्यादा बुरा होने वाला है।

पाकिस्तान पर चीन का कर्ज पहले से ही बहुत ज्यादा है। वर्तमान हालात को देखते हुए यह कहना मुश्किल ही है कि पाकिस्तान चीन का कर्ज चुका पाएगा। कर्ज ना चुका पानी की स्थिति में चीन पाकिस्तान पर इसी तरह से दवाब डालता रहेगा और धीरे-धीरे पाकिस्तान में अपनी उपस्थिति बढ़ाता जाएगा। कम्युनिस्ट चीन ने यही रणनीति श्रीलंका के मामले में अपनाई थी।

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