भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, भारत में सभी धर्म के लोग रहते हैं और सभी जानते हैं कि हिन्दू सहिष्णु हैं और वो हमेशा से मित्रता में विश्वास रखते हैं लेकिन हिन्दुओं की यही विशाल हृदय वाली प्रवृर्ति के कारण अपने देश में ही उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। यह तो सभी जानते हैं कि भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है पर क्या आप जानते हैं कि देश का एक ऐसा राज्य रहा है जहां कुछ वर्ष पहले तक हिन्दुओं को ही अछूता रखा गया।
जी हां हम बात कर रहे हैं मां वैष्णो देवी की धरती और कश्मीरी पंडितों की जन्मभूमि जम्मू-कश्मीर की। यह आश्चर्य की ही बात है कि जो जम्मू कश्मीर भारत की आज़ादी के पहले हिन्दू राजा के अधीन था वहां आज़ादी के बाद से हिन्दुओं का इतना बूरा हाल हो गया कि अभी तक वहां कोई भी हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। हिन्दुओं की यहां में लगातार उपेक्षा हुई जिसे इस समुदाय ने दशकों से महसूस किया है और इस उपेक्षा के जिम्मेदार कहीं न कहीं देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू रहे हैं। यह नेहरू की ही कमज़ोर राष्ट्रनीति रही जिसके कारण हिन्दुओं का 6 दशकों तक जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक, भगौलिक और सामाजिक शोषण किया गया।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे समय के साथ अच्छे दिन भी आते हैं वाले तर्ज पर जम्मू कश्मीर के भी दिन फिर गए हैं और कैसे यहां हिन्दू मुख्यमंत्री बनने की प्रबल संभावनाएं हैं।
और पढ़ें- जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन मल्होत्रा के अनसुने किस्से
जम्मू-कश्मीर के भी अच्छे दिन शुरू हो गए हैं
वर्ष 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर के भी अच्छे दिन शुरू हो गए। आज हम जम्मू-कश्मीर के हिन्दुओं के संबंध में इसलिए चर्चा कर रहे हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में एक ऐसी लोकतांत्रिक घोषणा हुई है जिससे जम्मू कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं जोर पकड़ने लगी हैं।
दरअसल जम्मू और कश्मीर के परिसीमन आयोग ने गुरुवार को परिसीमन आदेश को अंतिम रूप दे दिया जिसमें उसने जम्मू संभाग के लिए 43 विधानसभा सीटों और कश्मीर क्षेत्र के लिए 47 सीटों की सिफारिश की है। पहली बार, नौ विधानसभा क्षेत्र (एसटी) अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं जिनमें से छह जम्मू क्षेत्र में और तीन कश्मीर में हैं। बता दें कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के संविधान में विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। वहीं अब परिसीमन आदेश को भारत के चुनाव आयोग को सौंप दिया गया है।
अंतिम परिसीमन आदेश के अनुसार, परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा 9(1)(ए) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 43 जम्मू क्षेत्र का हिस्सा होंगे और 47 कश्मीर क्षेत्र के लिए होंगे। जम्मू क्षेत्र के छह नए विधानसभा क्षेत्रों के राजौरी, डोडा, उधमपुर, किश्तवाड़, कठुआ और सांबा जिलों से बनने की उम्मीद है। हो ये भी सकता है कि कश्मीर घाटी के लिए एक नई सीट कुपवाड़ा जिले से बनाई जाए।
और पढ़े- कश्मीर में एक और परिवर्तन: हम आपको बतातें हैं जम्मू कश्मीर क्या होने वाला है
इससे पहले जम्मू-कश्मीर की क्या स्थिति रही है?
इससे पहले जम्मू में विधानसभा में केवल 37 सीटें थीं, जबकि कश्मीर का प्रतिनिधित्व 46 सीटों के साथ हुआ था। इस असंतुलन ने कश्मीर को विधानसभा में अधिक प्रतिनिधित्व करने में मदद की, यही वजह है कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में हमेशा एक मुस्लिम मुख्यमंत्री रहा है, और कभी भी एक हिंदू या अन्य अल्पसंख्यक समुदायों से संबंधित व्यक्ति सत्ता का प्रतिनिधि नहीं रहा। दरअसल, जम्मू हिंदू बहुल तो वहीं कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र रहा है।
इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के हिन्दुओं में एक अलग विश्वास जगा है और वो है जम्मू-कश्मीर में उनका प्रतिनिधित्व। परिसीमन आयोग ने न केवल जम्मू में सीटों की संख्या 6 तक बढ़ाने की सिफारिश की है, बल्कि कुछ ऐसे सिफारिशें भी की हैं जो कट्टरपंथियों के सीने में आग लगा देंगी। ज्ञात हो की कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए जनसंहसर के बाद से उन्हें पिछले तीन दशकों से अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में उत्पीड़न और निर्वासन को झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कश्मीरी पंडितों ने यह मांग भी की थी कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें उचित और सही राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया जाए। वहीं कश्मीरी पंडित आयोग ने मोदी सरकार से सिफारिश की है कि वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीर पंडितों को कम से कम दो सीटें दें और उन्हें मनोनीत सदस्यों के समान अधिकार दिए जाएं। सभी जानते हैं कि पिछली सरकारों ने कश्मीरी पंडितों और जम्मू-कश्मीर के हिन्दुओं के लिए कभी आवाज़ नहीं उठाया लेकिन 8 साल पहले तक जो अकल्पनीय था उसे आज मोदी सरकार ने एक संभावना बना दिया है जिसमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक सराहनीय कदम भी शामिल है।
और पढ़े- अब जम्मू कश्मीर के छात्र जानेंगे कश्मीर का वास्तविक इतिहास, जानेंगे आखिर क्यों हटा अनुच्छेद 370
वहां की राजनीति हमेशा घाटी केंद्रित ही रही थी
ज्ञात हो कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में राजनीति हमेशा घाटी केंद्रित ही रही थी। भारत में शामिल होने के बाद, जम्मू और कश्मीर के महाराजा के संविधान के तहत राज्य संविधान सभा का गठन किया गया था, लेकिन शेख अब्दुल्ला के प्रशासन ने मनमाने ढंग से जम्मू क्षेत्र के लिए 30 सीटों और कश्मीर क्षेत्र के लिए 43 सीटों और लद्दाख क्षेत्र के लिए दो सीटों का ही आवंटन किया गया था और इसी अनुपातहीन आवंटन के कारण राज्य के राजनीतिक माहौल में कभी भी जम्मू से आने सकने वाले हिंदू सीएम के विचार के अनुकूल नहीं रहा है।
पर बात करें आज की स्थिति की तो मोदी सरकार में जम्मू-कश्मीर में सब बदल चूका है और राज्य विकास की पटरी पर लौट आया है। भाजपा की राष्ट्रवादी संकल्प के कारण जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ जंग जीतने में कामयाब रही है। धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के परिसीमन आदेश के अनुसार जम्मू संभाग को 43 सीटों की घोषणा के बाद भाजपा अब राज्य में कमल खिलाने की उम्मीद कर सकती है।
यदि भाजपा जम्मू संभाग में अधिकांश सीटें अपने पाले में करने के साथ कश्मीर संभाग में भी कुछ सीटें जीत जाती है तो भाजपा वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार बना सकती है। वहीं जब जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा तो भाजपा बहुमत दिखा जम्मू कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री भी बना सकती है जिसके बाद जम्मू के साथ-साथ कश्मीर भी केसरिया हो पाएगा।