दिल्ली वाले बाबू को अपना भौकाल दिखाना था पर ये भौकाल उन पर ऐसा भारी पड़ा की कहीं दूर उनके दानापानी की व्यवस्था कर दी गयी। जी हां, आईएएस संजीव खिरवार वाले मामले की ही बात कर रहे हैं हम। दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में कुत्ते को घुमाने और गलत समय पर स्टेडियम को बंद कर देने का ये मामला काफी तूल पकड़ रहा है। केंद्र की ओर से इस पूरे प्रकरण के बाद तत्काल प्रभाव से आईएएस दंपती का ही ट्रांसफर कर दिया गया।
ये जो ऑफिर से संबंधित पूरा मामला चर्चाओं में हैं इसमें कई बातों को समझना बहुत आवश्यक है। इस लेख में विशेषकर हम उस बिंदू पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिस पर बहुत कम लोग गौर कर पाए हैं लेकिन उससे पहले हुआ क्या ये जान लेते हैं।
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दरअसल, दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में खिलाड़ी अभ्यास करने आते हैं। इन्हीं खिलाड़ियों की तरफ से शिकायतें मिल रही थीं कि शाम के बाद स्टेडियम में उनको अभ्यास ही नहीं करने दिया जाता था। ऐसा होने के पीछे कारण बहुत ही अलग तरह का बताया गया था। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि प्रिंसिपल सेक्रेटरी (रेवेन्यू) संजीव खिरवार शाम के समय अपने कुत्ते को यहां घुमाने के लिए ले आते थे। फिलहाल, ऑफिसर दंपत्ति का ट्रांसफर कर दिया गया है। संजीव खिरवार को लद्दाख और उनकी पत्नी अनु दुग्गा को अरुणाचल प्रदेश भेज दिया गया। इस संबंध में अन्य अधिकारियों का कहना है कि मीडिया में आई खबरों के बाद ये एक्शन लिया गया। अधिकारियों के अनुसार अपने आधिकारिक पद का संबंधित अधिकारियों ने दुरुपयोग किया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में दंपत्ति के स्थानांतण की बात कही गयी। मंत्रालय ने दिल्ली के मुख्य सचिव से संबंधित प्रकरण पर रिपोर्ट भी मांगी थी।
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ट्रांसफर की कार्रवाई हजम नहीं होती
एक्शन लेने की जब बात की जाती है तो सबसे बड़ा प्रश्न तो यही उठता है कि मामले में जिस ट्रांसफर को एक्शन कहा जा रहा है क्या वो वास्तव में एक्शन है। एक अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करता है बदले में उसे दंड क्या मिला? किसी ऑफिसर का ट्रांसफर कर देना कहीं से भी उसके कुकृत्य के लिए दंड देना तो नहीं है। इस बात का माहौल अवश्य बनाया जा रहा है कि फलाने अधिकारी ने कुछ बुरा किया जिसके बदले में कार्रवाई के रूप में उसे लद्दाख भेज दिया गया। वास्तविक प्रश्न यही है कि दंड क्या दिया गया। क्योंकि दंड तो दिया ही नहीं गया।
एक प्रश्न ये भी उठता है कि क्या लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश देश के अन्य राज्यों से कम महत्व रखते हैं कि उन्हें ‘दंड हस्तांतरण’ के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है? इस मामले पर पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रांसफर ऑर्डर की कॉपी पोस्ट की और लिखा कि, “अगर इस आईएएस द्वारा स्टेडियम में डॉग वॉक की घटना को सही पाया गया तो दूसरे यूटी में क्यों भेजा जा रहा है? वह सेवा में बने रहने के लिए उपयुक्त है या नहीं, इसका आकलन करने का निर्णय लंबित रहने तक वह छुट्टी पर क्यों नहीं जाते। अखिल भारतीय सिविल सेवा कहीं भी गंभीर स्थिति है।”
IF the incident of dog walk in the stadium by this IAS is found correct, then why being sent to another UT
Why not he proceed on leave pending the decision to assess whether he is fit to continue in the service.
All India Civil Services are serious positions anywhere. pic.twitter.com/FdAYGavzRV— Kiran Bedi (@thekiranbedi) May 26, 2022
खिरवार एजीएमयूटी कैडर के 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। इतने सालों से अपने कर्तव्य का वो निर्वहन कर रहे हैं, ऐसे में वो वरिष्ठ अधिकारी भी है। खिरवार पर्यावरण विभाग के सचिव के पद पर हैं और जिला मजिस्ट्रेट उन्हें रिपोर्ट करते हैं, जबकि उनकी पत्नी दिल्ली सरकार के भूमि और भवन विभाग में सचिव हैं। सोचिए कि ऐसे आईएएस अधिकारी अपने से जूनियर अधिकारियों का क्या सम्मान करेंगे जो स्टेडियम में अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों और उनकी मेहनत को नहीं समझ रहे।
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स्थानांतरण दंड नहीं तो फिर क्या हो दंड?
अब एक और बात पर ध्यान दीजिए कि दोनों अधिकारियों को वो सुविधाएं भी उपलब्ध करायी जा रही होंगी जो शीर्ष पद धारण करने वाले किसी अधिकारी के लिए उपलब्ध करायी जाती हैं। प्रश्न है कि क्या इन दो अधिकारियों को ये सारी सुविधाएं ट्रांसफर के बाद मिलना बंद होगा? क्या स्थानांतरण का अर्थ ये है कि इनको दिल्ली की तुलना में कम सरकारी सुविधाएं मुहैया नहीं की जाएंगी? ऐसे ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर कौन देगा। लद्दाख और अरुणाचल में ये दोनों आराम से पूरी सुरक्षा के साथ अपने कुत्ते के साथ टहलने फिर निकल जाएंगे। जबकि भुगत चुके खिलाड़ी मूकदर्शक बने रहेंगे।
इससे क्या बदलेगा? कुछ नहीं क्योंकि आपको आपके पद के साथ ससम्मान स्थानांतरित किया जा रहा है। प्रश्न ये है कि क्या दंडात्मक कार्रवाई की गयी? उत्तर है- कोई कार्रवाई नहीं। कार्रवाई के रूप में ऐसे आईएएस अधिकारियों को या तो निलंबित करना चाहिए या तो उनके अधिकार कम किए जाएं या उन्हें लंबी छुट्टी पर भेज दिया जाए। खेद है कि ऐसा हुआ नहीं।