“ये न घर के न घाट के, पर ज्ञान चुराएं ब्रह्मांड के!” ये शब्द पाश्चात्य जगत पर सटीक बैठता है। दरअसल, पाश्चात्य जगत एक बार फिर से भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग को बड़ी चालाकी से अपना बनाने पर तुले हुआ है और उसे एक नया नाम देकर अपना अधिकार भी जमाने का प्रयास कर रहा है।
Intermittent Fasting नाम की चिड़िया के बारे में सुना है? नहीं सुना है तो आप कूल नहीं हो भैया। आजकल लेटेस्ट फैशन है जी, डाएटिंग के लोक में नया अस्त्र है Intermittent Fasting। परंतु इसमें खास क्या है इस कान्सेप्ट के अनुसार दिन में 16 घंटे तक व्यक्ति को कुछ भी खान पान का सेवन नहीं करना है और बाकी 8 घंटों में उसे भोजन की पूर्ति का जो भी कार्य पूर्ण करना है, सो करना है
अरे रुकिए, ये तो मात्र प्रारंभ है। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार इस प्रकार की फास्टिंग से शरीर का रिजर्व फैट एनर्जी में परिवर्तित हो जाता है जिससे कीटोन ब्लडस्ट्रीम में जाते हैं, जिससे वेट लॉस होता है और काफी लोगों का कल्याण भी हुआ
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Intermittent Fasting में ऐसी कौन सी ब्रह्म सिद्धि है?
हम भारतीय क्यों इस सिद्धांत के लिए इतने लालायित हो रहे हैं? Intermittent Fasting में ऐसी कौन सी ब्रह्म सिद्धि है जो हमें ज्ञात नहीं है। आप माने या नहीं, परंतु Intermittent Fasting एक ऐसा ढोंग, जो भारत के व्रत उपवास की संस्कृति से चुराकर पाश्चात्य जगत ने एक अलग चोगे के साथ पेश करने का प्रयास किया है।
हैं, यह कैसे? व्रत उपवास और Intermittent Fasting में क्या संबंध? व्रत/उपवास सनातन धर्म का एक अभिन्न अंग है, और ईसाईयत अथवा इस्लाम की भांति, इसमें कट्टरता का कोई स्थान नहीं है। इसमें आप भिन्न भिन्न प्रकार के व्रत रख सकते हैं और यहां जल का सेवन करना न केवल उचित है, अपितु प्रशंसनीय भी।
सनातन धर्म में लगभग हर तिथि व्रत रखने के योग्य है, लेकिन अधिकतम व्रत एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी [दोनों प्रदोष की श्रेणी में वैध है], चतुर्दशी, अमावस्या अथवा पूर्णिमा की तिथि पर रखे जाते हैं। इसी भांति हर सनातनी मास में एक मासिक शिवरात्रि एवं कृष्ण जन्माष्टमी भी होती है, जिस दिन व्रत का अनुसरण किया जा सकता है। हर सनातनी मास में व्रत का अनुसरण, यानी 10 से 15 दिन का उपवास तो निश्चित है।
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व्रत/उपवास के पीछे का शास्त्र क्या है?
व्रत/उपवास के पीछे का शास्त्र क्या है? इससे हमारे देह को क्या लाभ मिलता है, यानी हमारा शरीर किस प्रकार से स्वस्थ रहता है? असल में व्रत रहने से देह में इंसुलिन के प्रति प्रतिक्रिया बढ़ जाती है। इंसुलिन की मात्रा ऊपर नीचे होना ही डाइअबीटीज़ से हमारे शरीर को मुक्त रहने या न रहने का अंतर तय कराती है। यह हार्मोन तब निकलता है जब व्यक्ति भोजन करते हैं और ये लिवर, मसल, एवं फैट सेल को ग्लूकोज़ स्टोर करने के लिए बाध्य करता है। जब आप व्रत करते हैं, तो आपके शरीर में उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट खर्च होने के बाद बाकी के फैट सेट की उपयोगिता को भी प्रयोग में लाता है।
तो व्रत और Intermittent Fasting में अंतर क्या है? वैसे तो कोई विशेष अंतर नहीं, परंतु हमारे सनातन शस्त्र शरीर के सम्पूर्ण विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और इसीलिए सम्पूर्ण व्रत पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे अधिक से अधिक ग्लूकोज़ खर्च हो और फैट भी उपयोग में लाई जाए, ताकि वजन नियंत्रण में रहे।
नवरात्रि, सोलह सोमवार इत्यादि जैसे व्रत के बारे में भी यदि आपको ज्ञात न हो, तो आप वास्तव में सनातनी कहलाने योग्य नहीं हो। नवरात्रि तो सनातन धर्म का गौरव है, और 16 सोमवार तो श्रावण मास का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो विगत वर्षों में अपनी पहचान खो रहा है। हमारा शरीर ऐसा नहीं जिसे निरंतर भोजन की आवश्यकता पड़े। इसे ऐसा रचाया गया है कि वह ऊर्जा का उत्सर्जन करे। परंतु आधुनिक जीवन ने सारा खेल उलटपलट कर रख दिया है। चर्बी घटाना तो छोड़िए, हम अत्यधिक शुगर से भी अपने शरीर को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। वैसे भी, जो राष्ट्र युगों युगों से एक दो घंटे नहीं, नौ नौ दिन, तक फलों और जल पर जीवनयापन करने की कला पर निपुण हो, जिस राष्ट्र की संस्कृति में अन्न मुक्त भोजन भी व्रत का एक हिस्सा हो, उसे आप ‘Intermittent Fasting’ बताओगे?
अगली बार कोई आपको Intermittent Fasting के लाभ गिनाए, तो स्मरण कीजिएगा, ये वही पाश्चात्य जगत है जिसने हमारे नीम और हल्दी पर पेटेंट लगाने का प्रयास किया था। ये वही पाश्चात्य जगत है, जिसने हमारे प्राणायाम पर भी अपना ठप्पा लगाने की असफल कोशिश की और ये वही पश्चिमी जगत है, जिसने हमारे पत्तलों को Eco Friendly Plates बताने का प्रयास किया।