UPSC में चयनित होने पर बेहूदा जश्न मनाने की परंपरा बंद होनी चाहिए

वायरल होने की बीमारी से UPSC वालों को बचना चाहिए।

यूपीएससी रैंक लिस्ट

Source: TFI

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने सोमवार, 30 मई को यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा परिणाम 2021 घोषित कर दिया है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के नैना देवी उपखंड की गामिनी सिंगला ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में तीसरी रैंक हासिल की।

यूपीएससी रैंक 3 धारक ने इंडिया टुडे के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि वह परिणाम से बहुत अच्छा और संतुष्ट महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा- मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं, बहुत संतुष्ट हूं। मैं बहुत खुश हूं कि भगवान ने मुझे यह आशीर्वाद दिया। मैं यहां मां नैना देवी के आशीर्वाद से ही पहुंच सकी हूं।

मैं सबसे पहले भगवान और फिर अपने पूरे परिवार का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं।” गामिनी सिंगला के माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं जो नैना देवी अनुमंडल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र टोबा और तरसुह में कार्यरत हैं।

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हम भी बहुत खुश हैं. TFI भी सभी चयनित प्रतिस्पर्धियों के साथ-साथ अनुतीर्ण अभ्यर्थियों को भी भविष्य की मंगल शुभकामनाएं देता है और कामना करता है की भविष्य के यह सारे अधिकारी पूरे तन-मन-धन से राष्ट्र की सेवा करेंगे। इसके साथ ही हमारा प्रश्न यह भी है कि क्या भारत संघ के भविष्य के लोक सेवकों को अपने सफलता का इस तरह से ढोंग पीटना चाहिए जैसा कि गामिनी सिंगला का चयनित होने तुरंत बाद, अपने परिवार के साथ यूपीएससी रैंक का जश्न मनाते हुए उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में गामिनी और उनके परिवार को ढोल की धुन पर हैप्पी डांस करते देखा जा सकता है।

सबसे पहले आपको ये बता दें कि भारत की संवैधानिक संस्था संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा के माध्यम से लोक सेवकों को चुनती है जो सरकार और जनता के बीच के प्रशासनिक पुल बनते हैं और व्यवस्था के सुगम संचालन का माध्यम बनते हैं। यह एक बड़ी जिम्मेदारी वाला काम है। इसके लिए समाजसेवा, नैतिकता, कर्तव्यपारायणता, कर्मठता और अन्य सारे मानवीय गुण बहुतायत और अपने उत्कृष्टतम स्वरुप में होने चाहिए।

इतने बड़े दायित्व के निर्वहन के लिए उन्हें शक्ति और सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। लेकिन, आज के हमारे युवा वर्ग के लिए यह सिर्फ पद, पैसा और प्रतिष्ठा पाने का सबसे अच्छा माध्यम बन गया है। शायद, इसीलिए इस परीक्षा में उतीर्ण होने के बाद उनमें ख़ुशी की जिम्मेदारी का भाव होने के बजाए ख़ुशी के साथ अहंकार और सेलेब्रिटी बनने का भाव आ गया है। अगर आपको ऐसा नहीं लगता तो हम उदहारण के साथ प्रस्तुत करते हैं।

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शाह फैसल एक पूर्व भारतीय राजनीतिज्ञ और जम्मू-कश्मीर के नौकरशाह हैं। 2010 में वह भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले पहले कश्मीरी बने। परीक्षा पास करते ही मीडिया ने उन्हें सेलेब्रिटी बना दिया। उनको जनता के सेवक होने का अहसास ही नहीं हुआ।

शायद इसीलिए, उन्होंने 9 जनवरी 2019 को कश्मीर में “आतंकियों के हत्याओं” का हवाला देते हुए विरोध में भारतीय नौकरशाही से इस्तीफा दे दिया और स्वयं की पार्टी बना भारत विरोधी राजनीति करने लगे। उन्होंने उस समय भी सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने बीबीसी के एक साक्षात्कार के दौरान अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर भारत सरकार की खिंचाई की। बाद में उन्होंने उसी पर अपनी टिप्पणी वापस ले ली और कहा कि यह एक “गलती” थी।

हार्वर्ड-शिक्षित फैजल के कश्मीर मुद्दे पर के राष्ट्रविरोधी रुख ने अक्सर उनकी राजनीतिक संबद्धता या यहां तक कि नौकरशाही में उनकी वापसी पर भी सवाल खड़े किए हैं।

इसी तरह का मामला टीना डाबी का भी है। UPSC की परीक्षा उतीर्ण करते ही उन्हें प्रथम दलित टॉपर के रूप में प्रचारित कर बॉलीवुड की नायिका बना दिया गया, उन्हें किसी ने बताया ही नहीं की वो भारत गणराज्य की सेविका चुनी गई हैं।

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उनके प्रशासनिक कार्य के मूल्यांकन को छोड़कर उनकी जाति, कपड़े, विवाह और सौन्दर्य सभी चीजों की चर्चा सोशल मीडिया पर आम बात है। उन्होंने इसी के प्रभाव में आकर हिंदुत्व और उसके विचारों के विरोधस्वरूप अतहर आमिर से विवाह करने का निर्णय लिया, जिन्होंने उसी साल यूपीएससी में दूसरा रैंक प्राप्त किया था। हालाँकि, जल्द ही उन्हें यह बात समझ आ गयी और अब वो उनसे विवाह विच्छेद कर प्रदीप गावंडे से परिणय सूत्र में बंध चुकी हैं। इनकी शादी किसी बॉलीवुड स्टार से  कम चर्चाओं में नहीं रही।

पिछले साल जब बिहार के शुभम सिंह का भी चयन हुआ तब वो भी रातों-रात इन्टरनेट सेंसेशन बन गए थे। समस्या ये नहीं है कि आप आईएस की परीक्षा उतीर्ण करने के बाद उत्सव क्यों मना रहें हैं बल्कि प्रश्न ये है कि क्या आपके उत्सव में अहंकार की जगह दायित्वबोध है कि नहीं?

उत्तर मिलता है नहीं। आज का हमारा समाज अपने सगे सम्बन्धियों और बंधुओं के आईएस की परीक्षा उतीर्ण करने से इसलिए खुश होता है क्योंकि उसे पैसे, पद, प्रतिष्ठा और रौब सब प्राप्त होगा। इतना रौब प्राप्त होगा कि आप अपने कुत्ते को टहलाने के लिए स्टेडियम में पदक के लिए श्रम कर रहें एथलिट को बाहर निकलवा सकते हैं।

हमें इससे समस्या है। हम सभी को यह समझाना होगा की आईएस की परीक्षा पास करने का अर्थ ये है कि आप प्रशासनिक रूप से देश की सेवा करने के योग्य हैं ना कि आप पहले ही एक अच्छे लोक सेवक बन चुके हैं। आईएस अधिकारियों का ‘सेलेब्रिटीकरण’ बंद होना चाहिए वर्ना आने वाले समय में वो परीक्षा के माध्यम से जनता पर थोपे गए तानाशाह होंगे जिन्हें कानून का भी डर नहीं होगा और वो या तो ‘सिंघम’ की मुद्रा में होंगे या खुद को ‘रॉबिनहुड’ की तरह पेश करेंगे।

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