हिंदुत्व का चोला ओढ़कर ‘लिबरल राग’ अलापने में लग गए हैं राज ठाकरे

क्यों राज ठाकरे, निकल गई हवा?

Raj Thackeray

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जब आपके सामने एक ऐसा अवसर आए, जिससे आप सफलता के नए आयाम छू सकते हैं लेकिन अगर आप उसे जाने दें, तो उसे क्या कहेंगे? कुछ ऐसी ही गलती राज ठाकरे से हुई हैं। कुछ हफ्ते पहले तक राज ठाकरे लाउडस्पीकर के विषय पर कट्टरपंथियों और उद्धव प्रशासन के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए थे। तरह-तरह की बातें कही गई, यह भी कहा गया कि वो शायद बालासाहेब ठाकरे के मार्ग पर निकल चुके हैं। लेकिन जब परीक्षा की घड़ी निकट आई, तो महोदय कहते हैं कि “अक्षय आरती पर महा आरती मत कीजिए, सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ जाएगा!” उनके इस हालिया बयान ने एक बार फिर से उनकी मिट्टी पलीद कर दी है! हालांकि, यह पहली बार नहीं है। दरअसल, यह काफी पहले से ही चलता आ रहा है कि राज ठाकरे लंबे-लंबे दावे तो खूब करते हैं, पर उसे आत्मसात करने में हमेशा फिसड्डी सिद्ध होते रहे हैं।

हाल ही में संभाजी नगर यानी औरंगाबाद में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की महारैली हुई, जिसमें राज ठाकरे ने हिस्सा लिया। इसी बीच आज यानि अक्षय तृतीया के दिन विभिन्न जिलों में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा महाआरती का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन ईद से पूर्व राज ठाकरे मराठी में ट्वीट करते हैं, “कल ईद है। मैंने इस बारे में कल संभाजीनगर की सभा में बात की है। मुस्लिम समुदाय के इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाना चाहिए। अक्षय तृतीया की तरह अपने त्योहार के दिन कहीं भी आरती न करें, जैसा कि पहले तय किया गया था। हमें किसी के पर्व में कोई बाधा नहीं डालना है। लाउडस्पीकर का विषय धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक है और हमें इसके बारे में वास्तव में क्या करना है, ये मैं कल ट्वीट कर जानकारी दूंगा। अभी के लिए इतना ही!” –

 

पता है Halley’s Comet और Raj Thackeray में काफी समानताएं है। दोनों ही वर्षों बाद दिखाईं देते हैं, दोनों ही जनता को आकर्षित करते हैं। बस दोनों में अंतर इतना है कि Halley’s Comet जनता को राज ठाकरे की भांति उल्लू नहीं बनाती। पर ये काम आज से नहीं, तब से हो रहा है, जब से Raj Thackeray ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की थी, यानी वर्ष 2006 से।

कभी मराठी अस्मिता के नाम पर, तो कभी बांग्लादेशी प्रवासियों के नाम पर और अब हिन्दुत्व के नाम पर Raj Thackeray यदा कदा अपनी राजनीतिक सक्रियता दर्ज कराना चाहते हैं, मानो वो सबको जताना चाहते हैं कि हां, वह भी राजनीति में ज़िंदा हैं। वर्ष 2020 में MNS का फ्लेवर भी बदल गया, ताकि सबको ये प्रतीत हो कि बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत को उद्धव ठाकरे ने जो लात मारी, उसे सहेजने राज ठाकरे आए हैं, परंतु समय बड़ा बलवान है। जिस प्रकार से अक्षय तृतीया की महाआरती को रद्द करवाया गया है, अब वो लाख बहाने दे, परंतु Raj Thackeray पर अवसरवादी होने का ठप्पा फिर से हट नहीं पाएगा। इस अवसरवाद पर राज ठाकरे के लिए किसी भी प्रकार की निंदा अपर्याप्त ही रहेगी।

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