अप्रैल 2018 में, भारत में फिनटेक भुगतान के पोस्टर बॉय विजय शेखर शर्मा ने पेटीएम मॉल के लिए सॉफ्टबैंक और अलीबाबा से 445 मिलियन डॉलर (लगभग 2,900 करोड़ रुपये) जुटाए। इसने पेटीएम को ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस दिया, जिसने वर्ष 2017 में परिचालन शुरू किया था और जिसका मूल्यांकन $2 बिलियन था। पर, समय दर समय इसमें गिरावट देखी गई और अब स्थिति ऐसी हो गई है कि यह डूबने के कगार पर पहुंच गया है। इस आर्टिकल में विस्तार से जानेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ, जो PayTm मॉल की स्थिति ऐसी हो गई है?
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गलाकाट प्रतिस्पर्धा बना प्रथम कारण
भारत में ऑनलाइन खुदरा व्यापार पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो रही है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। भारत के ई-कॉमर्स बाजार में अमेजन और फ्लिपकार्ट का दबदबा है। लेकिन देश में PayTm के बढ़े यूजर बेस ने इसके ई-कॉमर्स स्टार्टअप PayTm Mall के आकांक्षाओं को पंख लगा दिए। लोग भी बढ़ चढ़कर PayTm Mall का उपयोग करने लगे। इस मुख्य कारण कैशबैक भी था। ई-कॉमर्स बाजार में एक ओर फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्नैपडील और शॉपक्लूज ने जहां छूट पर ध्यान केंद्रित किया, वहीं पेटीएम मॉल ने कैशबैक कार्ड का उपयोग करके सभी को मात देने की कोशिश की। लेकिन यह प्लेटफॉर्म इनके मुकाबले प्रतिस्पर्धा में काफी पीछे छूट गया और अब स्थिति दयनीय हो गई है।
कैशबैक बना काल
मई 2018 में सॉफ्टबैंक और अलीबाबा द्वारा पेटीएम मॉल को वित्त पोषित करने के एक महीने बाद, भारत में ई-कॉमर्स परिदृश्य अचानक बदल गया। स्नैपडील और शॉपक्लूज अपने-अपने मुद्दों से जूझ रहे थे और इसी बीच फ्लिपकार्ट का वॉलमार्ट द्वारा $16 बिलियन में अधिग्रहण कर लिया गया। पेटीएम मॉल ने 2018 के अंत तक जीएमवी लक्ष्य को 9 अरब डॉलर से बढ़ाकर मार्च 2019 तक 10 अरब डॉलर कर दिया। कैशबैक, वैल्यूएशन और कैश बर्न का खेल अत्यधिक तीव्र हो गया । मार्च 2019 में इनका घाटा 1,171 करोड़ रुपये रहा, लेकिन पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा को जरा भी फर्क नहीं पड़ा। वर्ष 2019 में जब इसको लेकर सवाल पूछा गया तब पेटीएम के एक शीर्ष अधिकारी ने अलीबाबा के जैक मा और सॉफ्टबैंक के मासायोशी सोन का जिक्र करते हुए कहा था कि “हमारे पास मां और बाप हैं” (हमारे पास माता और पिता दोनों हैं)।
मार्केटप्लेस का मतलब नहीं समझ पाए
एक ओर जहां अमेज़न और फ्लिपकार्ट ने एंड-टू-एंड अनुभव को नियंत्रित किया, वही इस प्लेटफॉर्म ने ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस का समर्थन किया जिसने कुछ साल पहले दुकान बंद कर दी। मार्केटप्लेस का मतलब केवल खरीदारों और विक्रेताओं को मिलवाना नहीं होता है। पेटीएम मॉल चाहता था कि विक्रेता और ब्रांड परिचालन लागत में कटौती करने के लिए उत्पादों को स्टॉक और वितरित करे, पर ऐसा हुआ नहीं।
एक बार जब घाटा बढ़ने लगा, तो मॉल के पास कैशबैक में कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। कंपनी के डिप्टी चेयरमैन ने कहा, “उपयोगकर्ता की ब्रांड के प्रति वफादारी अनुभव और सेवा पर नहीं, बल्कि कैशबैक पर बनी थी।” नतीजतन, उपभोक्ताओं ने मॉल छोड़ना शुरू कर दिया। कंपनी ने कथित तौर पर बी 2 सी कारोबार को कम करना शुरू कर दिया, पूर्ति केंद्रों को बंद कर आकार कम कर दिया। हाई-प्रोफाइल बिकवाली ने स्थिति को और खराब कर दिया।
वित्त वर्ष 2019 से ही पेटीएम मॉल ने डिलीवरी हेतु तीसरे पक्ष के नेटवर्क पर भरोसा करके रसद लागत में कटौती की। पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह कदम एक बड़ी भूल साबित हुई। PayTm मॉल ने तीन स्तंभों पर अपने व्यापारिक साम्राज्य का निर्माण किया। उसके लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म राजा था, भुगतान रानी थी और पूर्ति राजकुमार था। किन्तु, शर्मा के पास रानी थी, राजा बनने के लिए मॉल शुरू किया, लेकिन दुख की बात है कि उसने राजकुमार को नजरअंदाज कर दिया। फंडर का मानना है कि ई-कॉमर्स व्यवसाय केवल नकदी के भार पर नहीं बनाया जाता और यही इसके डूबने का मुख्य कारण बना।
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