अंकिय गणित किस भी राजनीतिक दल के लिए बहुत मायने रखता है और उसमें भी भाजपा शासित कर्नाटक राज्य की बात हो तो यह और भी महत्वपूर्ण बन जाता है। दक्षिण के राज्यों में पकड़ बनाने के लिए भाजपा के लिए उसका यह किला फ़तेह करना पुनः आवश्यक है। कर्नाटक की राजनीति लिंगायत पर निर्भर करती है, बी.एस. येदियुरप्पा के बाद बसवराज बोम्मई के मुख्यमंत्री बनने के बाद कई स्थितियां और घटनाक्रम बदल गए। राज्य की राजनीति में हिजाब विवाद उबाल मारता दिखा तो कभी नूपुर शर्मा के बयान पर राज्य में वैमनस्य फैलाने का षड्यंत्र रचा गया। इसी बीच भाजपा ने एमएलसी चुनाव में 9 साल बाद जीत दर्ज़ की और राज्य के विधानसभा चुनाव से पूर्व सेमीफइनल जीत राज्य का रुख किस ओर है उसका अनुमान जता दिया।
दरअसल, कर्नाटक भाजपा के लिए एक बड़ा अहम राज्य है और वहां हारना भाजपा कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती क्योंकि वहां हारना मतलब दक्षिण का दरवाज़ा और खुलने के बजाय उस पर ताला जड़ जाना। बी.एस. येदियुरप्पा के बीते वर्ष जुलाई माह में इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने बसवराज बोम्मई के नाम पर मुहर लगा उन्हें अगला मुख्यमंत्री बनाया था। बसवराज बोम्मई के आने के बाद ही मेन स्ट्रीम मीडिया और राजनीतिक हलकों से दूर रहने वाली कर्नाटक की भूमि रणभूमि में परिवर्तित हो गई। हिजाब से लेकर हलाल विवाद ने कर्नाटक की मीडिया सुर्ख़ियों में ला दिया और कुछ हो न हो आज कर्नाटक की कोई भी खबर हो मीडिया को प्रभावित करने लगी है क्योंकि राजनीतिक घटनाक्रम एकदम बदल गए हैं।
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विधान परिषद के बाद अब विधानसभा चुनाव पर नजर
इसी बीच भाजपा ने वो विजय हासिल की है जो राज्य की सत्ता में रहने के बावजूद उससे 9 साल तक दूर थी। नौ साल के लंबे अंतराल के बाद, सत्तारूढ़ भाजपा कर्नाटक विधान परिषद में स्पष्ट बहुमत हासिल कर पाई है। परिषद के द्विवार्षिक चुनाव में भाजपा और विपक्षी कांग्रेस ने एक-एक शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में जीत दर्ज की, जिसके लिए बुधवार को परिणाम घोषित किए गए। दो निर्वाचन क्षेत्रों में जीत के लिए तैयार, सत्तारूढ़ दल की संख्या 39 तक जाने की उम्मीद है, जो 75 सदस्यीय कर्नाटक विधान परिषद में 38 के बहुमत की संख्या से काफी अधिक है।
अब यह जीत इसलिए और भी बड़ी हो गई है क्योंकि अगले साल 2023 में राज्य में मई माह में विधानसभा चुनाव होने हैं उससे पूर्व एमएलसी चुनाव में जीत, 9 साल बाद पूर्ण बहुमत जीत की संभावनाओं को और पुख्ता कर रहा है। राज्य के हिजाब विवाद ने एक अहम राजनीतिक बिसात बिछा दी है क्योंकि यह यूपी के सियासी समीकरणों से मेल खाती है। और तो और कर्नाटक के निर्णायक वोट बैंक लिंगायतों का यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रति बढ़ता आकर्षण राज्य में भाजपा को और मजबूत कर रहा है।
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कर्नाटक में चुनाव मोड में आ चुकी है भाजपा
कर्नाटक और महत्वपूर्ण इसलिए भी बन जाता है क्योंकि पीएम मोदी की समयसारिणी हमेशा चुनाव प्रभावित राज्यों को देखते हुए बनती। अभी तक लगातार गुजरात का दौरा करने वाले मोदी विश्व योग दिवस पर कर्नाटक में होंगे। ऐसे में सन्देश स्पष्ट है कि पीएम मोदी कर्नाटक चुनाव को गंभीरता में लेते हुए उसके आगाज़ का मन बना चुके हैं।
हालिया घटनाक्रमों की बात करें तो राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मजबूती का बल इस चुनाव में वोट अपने पक्ष में करवाने को साधेंगे, इसको लेकर कुछ दिनों में सीएम बोम्मई और संघ की बड़ी बैठक का आयोजन होने जा रहा है। इसके तहत संघ कैसे राज्य में बढ़ रहे अराजक माहौल को बताने और उसके माध्यम से मत अपने पक्ष में करे उसपर वार्ता होगी। इसी के साथ संघ भी एक बड़ी भूमिका निभा रहा है क्योंकि राज्य में चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया अपने पैर पसार चुका है और इसके निस्तारण के लिए राज्य सरकार को और प्रमुखतः भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साथ मिल गया है जिससे PFI समर्थित गैर सामाजिक कार्यों पर नकेल कसी जा रही है।
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सभी बातों से यह प्रदर्शित होता है कि कर्नाटक में सभी चीज़ें योजनाबद्ध ढंग से क्रमानुसार चल रही हैं और इसका श्रेय बोम्मई सरकार को जाता है क्योंकि सीएम बनते ही बसवराज बोम्मई द्वारा राज्य में ऐसा माहौल और तंत्र निर्मित किया गया कि अब PFI और अन्य गैर सामाजिक उपक्रम सरेंडर मुद्रा में हैं और साथ ही विधानपरिषद की अप्रत्याशित जीत इस बात की तस्दीक करती है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी नतीजे भाजपा के पक्ष में ही जाने के आसार हैं।
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