यूरोप वैश्विक समाज का ठेकेदार न बने– जयशंकर ने यूरोप को छठी का दूध याद दिलाया

सुनो यूरोप, मुंह बंद ही रखो!

जयशंकर यूरोप

Source TFIPOST

एक होते हैं वीर, फिर आते हैं भौकाल और फिर आते हैं सुब्रह्मण्यम जयशंकर। भय और प्रोटोकॉल इनके शब्दकोश में मानो है ही नहीं। कभी अमेरिका को हड़का देते हैं तो कभी यूरोप को स्पष्ट रूप से सुना देते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने एक बार फिर यूरोप को छठी का दूध याद दिला दिया है और कैसे उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि यूरोप समस्त संसार का ठेकेदार नहीं है।

जयशंकर का करारा जवाब

भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर अमेरिका और रूस किस प्रकार से नथुने फड़का रहा है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। इसी विषय पर हाल ही में स्लोवाकिया की यात्रा के समय एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि यूरोप को उस मानसिकता से बाहर निकालना होगा कि उसकी समस्याएं पूरी दुनिया की समस्याएं हैं परंतु दुनिया की समस्या, यूरोप की समस्या नहीं है।

जयशंकर की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब यूरोपीय देशों एवं अमेरिका द्वारा भारत को लगातार इस बात के लिए मनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वह यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के खिलाफ कड़ा रूख दिखाए, क्योंकि उनका यह तर्क है कि भविष्य में भारत को चीन से ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

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इस पर विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘आप जिस जुड़ाव की बात कर रहे हैं, हमारे चीन के साथ संबंध असहज हैं और हम इनके प्रबंधन में पूरी तरह से सक्षम हैं। अगर मुझे इस बारे में वैश्विक बोध और समर्थन प्राप्त होता है तब स्वभाविक रूप से इससे मुझे मदद मिलेगी।’’ उन्होंने आगे ये भी कहा कि “लेकिन यह विचार कि मैं एक संघर्ष में शामिल हो जांऊ क्योंकि इससे मुझे दूसरे संघर्ष में मदद मिलेगी…इस प्रकार से दुनिया नहीं चलती है।”

परंतु जयशंकर इतने पे नहीं रुके। उन्होंने कहा कि “चीन और भारत के बीच जो कुछ हुआ है, वह यूक्रेन से काफी पहले हुआ और चीन को इस विषय में कहीं और से मिसाल लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एशिया के कई घटनाक्रम पर यूरोप ने चुप्पी साधे रखी थी।”

इससे पूर्व में जयशंकर ने मानवाधिकार के विषय पर बार बार पटर पटर करने वाले अमेरिका की भी बोलती बंद कर दी। लगभग दो माह पूर्व जब अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मानवाधिकार के विषय पर भारत को धमकाने का प्रयास किया था तो जयशंकर ने भी प्रत्युत्तर में अमेरिका में मानवाधिकारों के हनन पर प्रश्न उठा दिया।

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एस जयशंकर ने पलटकर मानवाधिकार पर सुनाया था

एस जयशंकर ने प्रेस वार्ता में कहा, “मानवाधिकार का मुद्दा मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान चर्चा का विषय नहीं था, देखिए, लोगों को हमारे बारे में विचार रखने का अधिकार है। लेकिन हम भी समान रूप से उनके विचारों और हितों के बारे में विचार रखने के हकदार हैं। इसलिए, जब भी कोई चर्चा होती है, तो मैं कर सकता हूं। आपको बता दें कि हम बोलने से पीछे नहीं हटेंगे, मानवाधिकार का मुद्दा मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान चर्चा का विषय नहीं था।”

ऐसे में सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने यूरोप को दर्पण दिखाकर स्पष्ट किया है कि वह वैश्विक समाज का ठेकेदार नहीं है, कि वह जो बोले, वही ब्रह्मवाक्य होगा। अब सबकी सुनी जाएगी और वैश्विक समाज में पुनः भारत का प्रभाव बढ़ रहा है, जिसका प्रमाण स्वयं डॉक्टर एस जयशंकर हैं।

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