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विदेश नीति और भू राजनीति भारत के आम आदमी के लिए कैसे महत्वपूर्ण बनी?

वैश्विक राजनीति को लेकर भारत के लोगों में इतनी दिलचस्पी क्यों है?

TFIPOST News Desk
द्वारा TFIPOST News Desk
20 January 2023
in समीक्षा
0
how geopolitics became so prevalent among all over india

Source- TFI

61
व्यूज़
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2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन आया है। आज किस देश में क्या चल रहा है यह भारत के लोगों को भी जानने में काफी दिलचस्पी रहती है। एक समय ऐसा था जब लोगों के लिए दुनिया उनके आसपास के ही  कुछ लोगों तक ही सीमित थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह परिदृश्य ऐसा बदला है कि विदेश मंत्री ने यूएन की किसी बैठक में कैसे पाकिस्तान के साथ चीन को कैसे धोया है, इसकी चर्चा यूपी के देवरिया में भी होती है, और झारखंड के दुमका में भी। विदेश नीति में बदलाव आखिर कैसे आया है, चलिए इसे समझते हैं।

और पढ़ें: रुपया-रुबल में होगा भारत-रूस का व्यापार, मुहर लग गई है

ऐसा नहीं है कि भारत कभी वैश्विक स्तर पर कमजोर रहा है। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश के गठन से लेकर पाकिस्तान को बर्बाद करने में उनकी कुशल राजनीतिक इच्छाशक्ति काम आई थी। उस दौरान भी अमेरिका भारत का विरोधी था और रूस उसका समर्थन करता था। कुछ वैसी ही स्थिति आज भी है लेकिन अब अमेरिका के सुर बदले-बदले नजर आते हैं। जब पोखरण में परमाणु विस्फोट कर सफल परमाणु परीक्षण किया तो भारत का दम पूरी दुनिया ने देखा। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजेपयी ने  अमेरिकी धमकियों को न केवल ठेंगा दिखाया बल्कि स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत अपनी रक्षा करने को लेकर स्वतंत्र है। इसी तरह करगिल युद्ध के दौरान जब अटल जी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि यदि पाकिस्तान के पास न्यूक्लियर बम है तो भारत के पास भी है।

विदेश नीति का बदलता स्वरूप

अब अहम बात यह कि पहले भी भारत अपनी ताकत दिखाता था लेकिन इसकी चर्चा अधिक नहीं होती थी। भारत का एक एलीट वर्ग ही विदेश विभाग के मुद्दों पर राय देता था और उनके लेखों के आधार पर ही यह तय होता था कि कौन सी विदेश नीति गलत है और कौन सी सही। बदलते समय के साथ यह सबकुछ बदला। इंटरनेट पहुंच के तेजी से विस्तार और स्मार्टफोन के प्रसार के साथ ही अधिक से अधिक भारतीय वैश्विक घटनाओं के बारे में सूचित रहने और भू-राजनीतिक मुद्दों के बारे में चर्चाओं में शामिल होने में सक्षम हुए। ऐसे में जो लोग पहले दूसरे प्रदेश की खबर प्राप्त नहीं कर पाते थे वे ही लोग धीरे-धीरे  न केवल देश बल्कि विदेश की खबरें तक ध्यान देने लगे।

मोदी सरकार ने भारत में विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच विभाजन को पाटने पर ध्यान केंद्रित किया है। विदेश नीति के महत्व को समझते हुए युवाओं को राष्ट्रीय और भू-राजनीतिक विषयों में शामिल करने को प्राथमिकता दी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान विशेष मंत्री की जिम्मेदारी सुषमा स्वराज को मिलीं। सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय विदेश नीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता था। उन्होंने अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने और कई देशों के साथ विवाद सुलझाने के प्रयास करने के साथ ही भारत की वैश्विक स्थिति पर स्थायी प्रभाव छोड़ा है।

और पढ़ें: “भारत एक महाशक्ति है”, अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर स्वीकार कर लिया भारत का पक्ष

2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान  एस जय शंकर को नया विदेश मंत्री नियुक्त किया। तब से वह अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के हितों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। कोई भी अंतरराष्ट्रीय मंच हो आज भारत हर जगह मजबूती से अपना पक्ष रखता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर बिना किसी के डर के हर मुद्दे पर बड़ी ही बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। सामने कोई भी हो जयशंकर उन्हें हर बार अपने अनोखे अंदाज में जवाब देते नजर आते हैं।

हमारे वर्तमान विदेश मंत्री जब विदेश सचिव थे, तब से ही भारतीय उनके प्रशंसक थे। विदेश मंत्री बनने के बाद वे आक्रामक नीति अपना रहे हैं। रूस से कच्चा तेल लेना हो या अमेरिका को लताड़ लगानी हो या सऊदी अरब और इजरायल जैसे देशों को जोड़े रखना हो, ये सारे काम करने में विदेश मंत्री एस जयशंकर की अहम भूमिका है। अब जब विदेश मंत्री ही इतने आक्रामक होंगे तो  विदेश विभाग की लोकप्रियता भी बढ़ेगी ही।

इसके अलावा देखा जाये तो पीएम मोदी मन की बात कार्यक्रम के जरिए देश के आम मुद्दों पर तो बात करते ही हैं लेकिन वे विदेश नीति को लेकर भी खूब मुखर रहे। पाकिस्तान से लेकर चीन तक को पीएम मोदी ने जनता के बीच से लताड़ा है। ऐसे में लोगों का सीधा जुड़ाव भारतीय विदेश नीति से बनने लगा। आज की स्थिति में लोग टीवी के माध्यम से नहीं बल्कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिए सबसे ज्यादा सूचनाओं से रूबरू होते हैं। उन्हें पता है कि कि आखिर कैसे भारत आज वैश्विक स्तर पर अपनी धाक जमा रहा है। डोकलाम का मसला हो या उरी सर्जिकल स्ट्राइक या फिर बालाकोट एयर स्ट्राइक भारत ने कब कहां कैसे किसकी कुटाई की, भारतीय जनता को सब पता है।

और पढ़ें: अमेरिका की कुटिल चाल: चीन पर भारत के साथ रहो, पाकिस्तान पर ज्ञान दो

ORF विदेश नीति सर्वेक्षण 2022 

इसको लेकर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) ने भारत की विदेश नीति और वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को कैसे समझते हैं यह जानने के लिए एक सर्वे किया। ORF विदेश नीति सर्वेक्षण 2022 में 19 शहरों से 18 से 35 वर्ष के बीच के 5,000 भारतीयों को शामिल किया गया था और इसे 10 भाषाओं में आयोजित किया गया था। सर्वेक्षण से पता चला है कि 77 प्रतिशत लोगों ने भारत की विदेश नीति को या तो अच्छा या बहुत अच्छा माना है।

सर्वेक्षण के निष्कर्षों ने आगे पता चला कि इसमें उत्तर देने वाले लोगों को पोखरण परमाणु परीक्षण, भारत-चीन युद्ध और गालवान घाटी संघर्ष जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं को भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण मोड़ माना गया। सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों ने भारत के चीन के साथ सीमा संघर्ष को  सबसे अधिक दबाव वाली विदेश नीति चुनौती (84%) के रूप में देखा, जोकि पाकिस्तान के साथ संघर्ष (82%) से भी अधिक था। इसके अतिरिक्त 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने रूस को भारत का सबसे विश्वसनीय माना।  हालांकि आजादी के बाद से अमेरिका को दूसरे सबसे भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन उनमें से 85 प्रतिशत का मानना ​​है कि अमेरिका अगले दशक में भारत का अग्रणी भागीदार होगा। भारत का आगामी दशक में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक मजबूत साझेदारी होने का अनुमान है, जिसमें रूस तीसरे स्थान पर है।

विदेश नीति को इतना सरल, सहज और लोकप्रिय बनाने में मोदी सरकार की अहम भूमिका रही और कुछ इसी तरह विदेश नीति और भू राजनीति भारत के आम आदमी के लिए महत्वपूर्ण बन गई।

और पढ़ें: प्रचंड की कम्युनिस्ट सरकार ने आते ही खोले भारत विरोधी घोड़े, नेपाल का अब क्या होगा?

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