‘अराजकता’ और ‘कुशासन’ की ओर बढ़ता बिहार, प्रदर्शन पर प्रदर्शन, कुछ तो गड़बड़ है

हर बिहारी का दिल दुखता होगा यह सब देखकर!

Bihar

SOURCE TFIPOST.in

देश में अग्नीपथ के विरोध में काफी हो हल्ला हुआ, लोग सड़कों पर उतर आए। जहां बाकी राज्यों में केवल इसका विरोध किया गया वहीं नीतीश सरकार वाले बिहार राज्य में लोगों ने जमकर बवाल काटा। लोग सरकारी संपत्तियों को क्षति पहुंचाने पर उतारू हो गए थे, और तो और विरोध के नाम पर आगजनी करना, उपद्रव मचाना, बिहार सरकार में आम बात लगने लगी थी जोकि किसी प्रशासन के लिए बेहद चिंताजनक है। हालांकि, उपद्रव और हिंसा पर काबू पाने के लिए धारा 144 का सहारा लिया गया था और माहौल को शांत करने का भरपूर प्रयास भी किया गया था। लेकिन यहां प्रश्न ये है कि बिहार में स्थिति ही ऐसी क्यों आती है कि धारा 144 का सहारा लिया जाए, इंटरनेट बंद किया, और भी कई रास्ते अपनाए जाएं?

सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए केंद्र सरकार द्वारा लायी गयी ‘अग्निपथ योजना’ के विरोध में बिहार में हर तरफ अराजकता का माहौल देखा गया। इन उपद्रवी तत्वों को किसने शह दिया, इनको किसने बहकाया ये जांच का एक अलग विषय है पर इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि ऐसा पहली बार नहीं है जब बिहार सरकार में, विशेषकर नीतीश सरकार में हिंसा और उपद्रव किया गया हो बल्कि इसकी सूची लंबी है जिस पर इस लेख में हम आपका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करेंगे।

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एक-एक घटनाएं एक-एक वर्ष के नाम होती चली गयीं

बिहार में यह पहला विरोध या फिर विरोध के नाम पर हिंसा करने की पहली घटना नहीं है। वर्ष बीतते गए और प्रदर्शन की आड़ में ट्रेन जलाने और उपद्रव करने जैसी घटनाएं एक-एक वर्ष के नाम होती चली गयीं।

चलिए अधिक दूर नहीं, 2020 तक ही चलते हैं जब बिहार लोक सेवा आयोग का पेपर कथित रूप से लीक हो जाने के बाद छात्रों ने औरंगाबाद के एक परीक्षा केंद्र पर धरना दिया था। सौरभ जोरवाल, जिला आयुक्त (DM), औरंगाबाद की माने तो तब हुआ ये था कि कथित रूप से पेपर के वितरण से पहले ही प्रश्नपत्र की सील टूट जाने के विरुद्ध छात्रों में बहुत रोष था और वे विरोध प्रदर्शन पर उतर आए।

थोड़ा और पीछे चलते हैं साल 2019 में, जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में RJD द्वारा बिहार बंद के दौरान प्रदर्शन जुलूस निकाला गया था। इस दौरान राज्‍य में कई जगहों से भारी हिंसा की घटनाएं सामने आयी थीं। पटना के फुलवारीशरीफ में तो मुस्लिम भीड़ पर ये तक आरोप लगाया गया था कि हनुमान मंदिर में घुसकर तोड़-फोड़ की गयी। पथराव से स्थिति और बिगड़ गयी थी। आरोप लगा कि उपद्रवियों ने CAA विरोध के नाम पर मंदिर में घुसकर तोड़फोड़ तक की थी।

 

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साल 2018 की बात करें तो स्टाफ सिलेक्शन कमीशन यानी एसएससी के कथित पेपर लीक को लेकर बहुत प्रदर्शन किया गया। हुआ ये कि सीजीएल 2017 के टियर 2 की परीक्षा के पेपर और आंसर की लीक होने की बात सामने आयी थी। ये परीक्षा एसएससी द्वारा आयोजित की जाती है।

साल 2015 में जब बिहार में शिक्षा प्रणाली के पूर्ण पतन के विरुद्ध एक मार्च निकाला गया उस दौरान  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कई सदस्य घायल हुए थे। यहां तक की विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित करना मुश्किल प्रतीत होने लगा था और स्थिति को नियंत्रित करने के उद्येश्य से पुलिस ने गोलियां तक चला दी थीं।

2007 में क्या हुआ आइए इसे भी जान लेते हैं। उस साल सैकड़ों लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतर गए थे और मार्च कर रहे थे। यहां तक ​​कि असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के पुतले भी जलाये गये थे। यह असम में उग्रवादियों द्वारा बिहार राज्य के 50 से अधिक प्रवासी मजदूरों की हत्या के विरुद्ध किया गया था। प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि सरकार को असम में बिहारी श्रमिकों और परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

राज्य की सुरक्षा के लिए कभी आगे नहीं आए नीतीश कुमार

बिहार में जब तक लालू यादव की सरकार थी तब तक ये सुनना कि ‘बिहार में जंगल राज है’ बहुत सामान्य सी बात लगती थी लेकिन जब नीतीश कुमार ने इस राज्य की सत्ता संभाली तब जनता की असंख्य आशाएं नीतीश कुमार से जुड़ी थीं। कानून व्यवस्था हो या फिर रोजगार की बात हो या फिर बात हो शिक्षा की, सबको लगा नीतीश कुमार सब बदल देंगे और सब उच्च कोटी का कर देंगे लेकिन बिहार के लोगों के साथ क्या हुआ उसे आज की स्थितियों को देखकर भलीभांति आंका जा सकता है। शिक्षा व्यवस्था तो जरजर है ही बात-बात पर वरगलाए गए युवा हिंसायुक्त प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतर आते हैं, उपद्रवी ट्रेन जला देते हैं, सरकारी संपत्ति को एक रत्ती का भाव नहीं देते और इन सारी गतिविधियों पर नीतीश सरकार का कोई कंट्रोल ही नहीं दिखाता। अंततः वही प्रश्न पुनः दोहराना पड़ रहा है कि बिहार और बिहार की जनता का होगा क्या?

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