बिहार में 17 साल के नीतीश राज के बावजूद शिक्षा का स्तर कितने निचले स्तर पर है, यह किसी से छिपा नहीं है। समय-समय पर ऐसे मामले सामने आ ही जाते हैं जो बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलते हैं। पिछले दिनों ही बिहार के सोनू कुमार नाम के एक बच्चे का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, वो वीडियो तो आपको याद ही होगा। कैसे 12 साल के एक बच्चे ने बड़े ही साहस के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने सरकारी स्कूल की शिक्षा गुणवत्ता की सच्चाई उजागर कर दी थी।
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अब इसके बाद बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता एक और वीडियो सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल है। वीडियो में एक शिक्षिका क्लासरूम में बड़े ही आराम से कुम्भकर्णी नींद लेती हुई नजर आ रही हैं। वीडियो में साफ दिख रहा है कि एक शिक्षिका पैर फैलाकर सो रही है और एक छात्रा उनकी सेवा में लगी हुई है। छात्रा नींद लेती हुई टीचर को पंखे से हवा कर रही है। मैडम साहिबा ने उसे अपनी सेवा में लगा रखा है, जिससे उन्हें गर्मी ना लगे और सोने में कोई तकलीफ ना हों।
वायरल वीडियो बिहार के बेतिया के एक सरकारी स्कूल का है। वीडियो सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोग बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशाना दाग रहे हैं। लेकिन यहां सवाल यही है कि आखिर एक शिक्षिका की नींद पर इतना बवाल क्यों हो रहा? जबकि बिहार का तो पूरा का पूरा शिक्षातंत्र ही सोया हुआ है। यह वीडियो तो महज एक उदाहरण ही है। ऐसे कई मामले बीच-बीच में देखने को मिल ही जाते है। फर्जी टॉपर से लेकर बिहार के जर्जर स्कूल, शिक्षकों की भारी कमी, सुविधाओं की भारी कमी, आधुनिक संसाधनों की भारी कमी यह सभी बताने के लिए बहुत है कि बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर क्या है?
बिहार का 2016 का टॉपर घोटाला तो आपको याद होगा ही। जब अपने विषय पॉलिटिकल साइंस का ठीक से नाम नहीं लेने वाली और इस विषय में खाना बनाना सिखाया जाता है कहने वाली रुबी राय ने बिहार बोर्ड में टॉप कर लिया था। अब अगर टॉपर ऐसे होंगे तो इस पर बवाल तो मचना ही है। 2016 में टॉपर घोटाले को लेकर बिहार में भारी बवाल मचा और फिर बाकी टॉपर का भी टेस्ट हुआ, जिसमें तीनों टॉपर ही फेल निकले। इस पूरे बवाल ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को और ज्यादा कलंकित कर दिया।
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इसके बावजूद इतने बड़े घोटाले से कोई सबक नहीं लिया गया और अगले साल भी ऐसा ही घोटाला उजागर हुआ। 2017 का ऑर्ट्स टॉपर गणेश कुमार उम्र छिपाने और संगीत विषय की मूलभूत जानकारी हासिल नहीं करने के चलते विवादों में घिरा, जिसकी वजह से उसका रिजल्ट रद्द कर दिया गया। इन और ऐसी तमाम घटनाओं की वजह से बिहार की शिक्षा व्यवस्था हमेशा ही कटघरों में खड़ी रहती है।
बिहार में 2005 से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। 17 साल से वे बिहार की सत्ता पर काबिज हैं, बावजूद इसके बिहार की शिक्षा व्यवस्था का जो हाल है, वो दर्शाता है कि शिक्षा व्यवस्था को संभालने के मोर्चे पर नीतीश सरकार अब तक बुरी तरह से असफल साबित हुई है।
नीतीश राज में सुशासन के तमाम बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। साथ ही शिक्षा व्यवस्था में सुधार की भी तमाम बातें कही जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत ही नजर आती है। साक्षरता दर के मामले में भी बिहार काफी पिछड़ा हुआ है। भारत के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की वर्ष 2020 में जारी की गई रिपोर्ट पर गौर करें तो कम साक्षरता दर वाले राज्यों में बिहार तीसरे स्थान पर आता है। 70.9 फीसदी साक्षरता दर के साथ बिहार, राष्ट्रीय औसत 77.7 फीसदी से 6.8 फीसदी कम है।
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यही नहीं बिहार शिक्षकों की कमी के मामले में भी पहले नंबर पर है। बिहार में शिक्षकों के लाखों पद रिक्त हैं, जो सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की कमी का एक बड़ा कारण है। बिहार के स्कूलों में पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है और इसके बावजूद अगर शिक्षक यूं क्लासरूम में आकर आराम फरमांगें, तो यह मासूम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही है।
लेकिन इसका पूरा दोष हम उस सो रही महिला शिक्षिका को नहीं दे सकते क्योंकि बिहार में शिक्षा व्यवस्था से संबंधित हर व्यक्ति सो ही तो रहा है, ऐसे में वो महिला शिक्षक भी वही कर रही है जो दूसरे कर रहे हैं। सोकर ही वो बिहार की शिक्षा व्यवस्था के नियमों का पूरी तरह से पालन कर रही है।