बेकार आदमी कुछ किया कर, कपडे उधेड़कर सिया कर। आज कांग्रेस की स्थिति यही हो गई है। देशभर में बुरी हार झेल रही कांग्रेस मुद्दाविहीन होने पर अब सेक्युलर शब्द को ही भूल गई है। सत्य बात तो यह है कि अब कांग्रेस ‘हिन्दू-मुस्लिम’ भूल सिर्फ ‘मुस्लिम-मुस्लिम’ वाली राजनीति करने में जुट चुकी है। हालिया उदाहरण हैदराबाद से आया है। तेलंगाना कांग्रेस का एक नेता चारमीनार में नमाज़ अदा करने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चला रहा है।
कांग्रेसी नेता की मांग है कि चारमीनार पर नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। एक तरफ जहां कांग्रेस हिंदुओं के उनके मंदिरों में पूजा करने के विरुद्ध खड़ी दिखती है, वहीं दूसरी तरफ वही कांग्रेस ASI संरक्षित इमारत में नमाज करने की बात करती है। ऐसे में कांग्रेस की दोहरी मानसिकता साफ प्रदर्शित होती है। इससे एक बार फिर यह साबित होता है कि कांग्रेस तुष्टीकरण करना बंद नहीं कर सकती।
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दरअसल, हैदराबाद के एक स्थानीय कांग्रेस नेता राशिद खान ने कहा कि, “मुसलमान पहले 16वीं शताब्दी के स्मारक (चारमीनार) पर नमाज पढ़ते थे, लेकिन दो दशक पहले उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया था।’’ कांग्रेस नेता ने अब एक हस्ताक्षर अभियान की शुरूआत की है। जिसमें मांग की जा रही है कि दोबारा से चारमीनार पर नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। इसके साथ ही कांग्रेसी नेता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय से नमाज पढ़ने के लिए चारमीनार को खोलने का अनुरोध किया है। कांग्रेसी नेता ने कहा कि मैं सभी हस्ताक्षर लेकर तेलंगाना के धर्मनिरपेक्ष सीएम के पास जाऊंगा। अगर हमारे अनुरोधों का समाधान नहीं किया गया, तो हम प्रगति भवन में धरना देंगे।
कांग्रेसी नेता यही नहीं रुका बल्कि उसने चारमीनार के पास में स्थिति प्राचीन भाग्य लक्ष्मी मंदिर पर भी ज़हर उगला। उसने भाग्य लक्ष्मी मंदिर को ‘अनाधिकृत अतिक्रमण और अवैध निर्माण’ बताया। इसके साथ ही उसने कहा कि अगर मंदिर में पूजा हो रही है तो ASI संरक्षित स्मारक के अंदर भी मुसलमानों को नमाज अदा करने की अनुमति दी जानी चाहिए।’
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यूँ तो एएसआई संरक्षित इमारतों पर कोई भी पूजा वर्जित होती है पर नौसिखियों की भांति कांग्रेस के नेता अपने राग अलाप रहे हैं। यह वही कांग्रेस है जो ज्ञानवापी से लेकर क़ुतुब मीनार वाले मुद्दों पर बूत बनी बैठी थी पर जैसे ही बात हैदराबाद की आई उसके नेता फट पड़े। यह सिर्फ कांग्रेस या एक धर्म विशेष की बात ही नहीं है, हाल ही में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा अनंतनाग के मट्टन में आठवीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहरों में प्रार्थना में भाग लेने के एक दिन बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी चिंता व्यक्त की थी।
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ऐसे में जब एएसआई समान रूप से सभी पर ज़रुरत पड़ने पर सवाल उठा रही है तो कांग्रेस के नेता अचानक से मस्जिद का राग उठाकर कहाँ से आ गए? सवाल यह भी है कि कांग्रेस इतनी संकीर्ण सोच से ग्रसित हो गई है कि तेलंगाना और उससे सटे राज्यों में जहाँ भी चुनाव हैं वहां की रणनीति वहां के निर्णायक वोट प्रतिशत को साधकर ऐसी तुच्छ राजनीति कर रही है जो अस्वीकार्य है। अपनी इस तुच्छ मानसिकता के कारण ही आज कांग्रेस की यह स्थिति है। जितना बुरा हाल सभी राज्यों में कांग्रेस का है उतना ही बुरा तेलंगाना में भी है। ऐसे में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए चारमीनार में नमाज का मुद्दा उठाकर अगर कांग्रेस तेलंगाना जीतने का स्वप्न देख रही है तो उसे भूल जाना चाहिए। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि भाग्य लक्ष्मी मंदिर जोकि हिंदुओं का पवित्र मंदिर है उसको एक कांग्रेस नेता अतिक्रमण कैसे बता सकता है?
अपने कर्म न देखते हुए जिस मंदिर के अस्तित्व को लोग सदा से पूजते आए हैं उसे ‘अतिक्रमण’ कहने वाली यह वही कांग्रेस है जो मंदिरों को सदा से हर एक निर्णय में पीछे रखती आई है। हालिया हस्ताक्षर अभियान और कांग्रेस नेताओं के बयान ने यह सिद्ध कर दिया कि कांग्रेस तुष्टिकरण के प्रति अपना प्यार नहीं छोड़ सकती और चारमीनार की यह घटना इसे साबित करती है।
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