प्रिय अक्षय कुमार, भारत के अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान नहीं, सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य थे

आप सभी को सच जानने की आवश्यकता है !

अंतिम हिन्दू शासक

Source- TFIPOST.in

आप सभी जानते होंगे कि अक्षय कुमार की आगामी फिल्म पृथ्वीराज चौहान में उन्हें अंतिम हिन्दू शासक के रूप में चित्रित करती है। निस्संदेह, पृथ्वीराज चौहान भारत के गौरवशाली इतिहास के सबसे बड़े और लोकप्रिय हिन्दू राजाओं में से एक थे लेकिन, उनके बाद यह माटी शौर्यविहीन हो गयी, ऐसा नहीं था और यह बात समझने के लिए आपको किसी रॉकेट विज्ञान का ज्ञाता होने की आवश्यकता नहीं है बल्कि आपको अपने बुद्धि को हीनता के बेड़ियों से मुक्त कर व्यवहारिकता के तत्त्व से शुद्ध करना होगा।

हिंदुस्तान का अंतिम हिन्दू शासक कौन है? इस प्रश्न का एक निश्चित उत्तर निर्धारित करना शायद भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी विकृति को परिलक्षित करता है। यह भारतीय इतिहासकारों के बालपन और भारत के गौरवशाली संस्कृति के प्रति उनके पूर्वाग्रह को भी प्रदर्शित करता है, जबकि इस विराट संस्कृति के संवाहक होने के नाते इस उत्तर के प्रति आपकी स्वीकृति आपके हीन और गुलाम मानसिक प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करता है। इस हीन मानसिकता के कारण ही जब लाल या फिर हरा आत्मा लिए कोई मूर्ख प्राणी जब ऐसे तुच्छ से प्रश्न का आत्मविश्वास सहित तथ्यात्मक उत्तर देता है तो हम सिर्फ अपने ज्ञान ही नहीं बल्कि व्यावहारिक बुद्धि को भी उसके चरणों में नतमस्तक कर देते हैं। फिर धीरे-धीरे हमारी हीनता का वायरस पूरे समाज में कोढ़ की तरह फैलता है और इसी अभिव्यक्ति की स्वीकृति के रूप में हमारी पीढ़ियों को पढाया जाने लगता है की ‘पृथ्वीराज चौहान’ भारत के अंतिम हिन्दू शासक थे।

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व्यवहारिक बुद्धि से समझिये पृथ्वीराज नहीं थे अंतिम हिन्दू राजा

अंतिम हिन्दू शासक कौन था? इस प्रश्न की तार्किक और तथ्यात्मक विवेचना हम अपने लेख में तो करेंगे ही, लेकिन सर्वप्रथम हम आपको व्यावहारिक बुद्धि के उच्च मानदंडों से अवगत कराएंगे जिसके बल पर आप इस प्रश्न के प्रमाणिकता को ही ध्वस्त कर सकते हैं।

अंतिम हिन्दू शासक कौन था? अगर आप इस प्रश्न को नकारते नहीं है तो इसका तात्पर्य यह है कि आप यह स्वीकारते हैं कि मुस्लिम आतंकियों द्वारा भारत की विराट संस्कृति को अंतिम छोर तक जीत लिया गया था। शौर्य की इस धरती के अंतिम छोर तक ऐसा कोई शूरवीर नहीं बचा था जो अपने संप्रभुता, सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण के लिए संग्राम कर सकें।

अब आप स्वयं की अंतरात्मा से पूछिए कि क्या ऐसा है? और अगर ऐसा है तो आप हिंदू क्यों हैं? आपकी सांस्कृतिक परंपरा और प्रतिष्ठा अभी भी इतनी समृद्धि क्यों है? सोमनाथ अभी भी क्यों खड़ा है और भगवा हवाओं के झोंकों को धता बताते हुए गगन में क्यों अडा है? अगर अपने व्यवहारिक बुद्धि से उत्पत्ति इन प्रश्नों का प्रत्युत्तर देने में आप असमर्थ हैं तो यह एक स्थापित तथ्य है कि भारत का कोई अंतिम हिन्दू शासक नहीं था। हम इस तथ्य को नहीं नकारते की बर्बर और अतातायी इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा इस पावन धरती को खूब लूटा-खसोटा गया। इसका कारण यह भी था कि धर्म के लिए धर्म युद्ध करने वाली सभ्यता धर्म के नाम पर उन्माद फैलाने की मानसिकता से अपरिचित थी। किंतु, फिर भी उन्हें माटी के लाल और यहां के धर्म परायण शासकों द्वारा निरंतर चुनौती मिलती रही। दिल्ली सल्तनत, मुगल साम्राज्य निसंदेह भारत के इतिहास का अभिन्न अंग हैं किंतु वह कभी भी भारत के संपूर्ण भू-भाग पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में असफल रहा।

महत्वपूर्ण तथ्य

अपने अस्तित्व के 30 वर्षों के भीतर, इस्लाम ने दुनिया के दो प्रमुख साम्राज्यों पश्चिम में बीजान्टिन साम्राज्य और पूर्व में ससानिद साम्राज्य को हराकर इस्लामी क्रूरता का अद्वितीय अध्याय आरम्भ किया। 650 ईस्वी तक इस्लाम आधुनिक अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक आ चुका था। हालांकि, अगले 350 वर्षों तक इससे आगे नहीं बढ़ सके क्योंकि हिन्दू योद्धा वर्षों तक आक्रमणकारियों से जमकर लोहा लेते रहे। इस्लाम जहाँ भी गया, उसने तलवार की नोक पर वहां की संस्कृति और सभ्यता को मिटाकर इस्लाम का शासन स्थापित कर दिया। मिस्र, रोम, यूनान, ईरान, इराक और अफ्रीकी सभ्यता मिट गयी इस जहाँ से लेकिन कुछ तो बात है जो भगवा शान से खड़ा रहा, लहराता रहा। इस्लाम के कारण दुनिया में कई साम्राज्यों का पतन हुआ लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इतने आक्रमणों के बाद भी, भारतीय संस्कृति दुनिया के बाकी देशों के विपरीत अभी भी जीवित है। 11वीं शताब्दी की शुरुआत में महमूद ग़ज़नवी के समय के बाद ही मुसलमानों ने वर्तमान भारत में प्रवेश करना शुरू किया। भारत का वास्तविक मुस्लिम शासन 1192 के बाद प्रारंभ होता है जब मुहम्मद गोरी ने तराईन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हराया था।

दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश की स्थापन हुई और कुतुबुद्दीन ऐबक गद्दी पर बैठा। यह धारणा गलत है कि भारत मुसलमानों द्वारा जीतने के लिए तैयार बैठा था। मुसलमानों को सदियों तक संघर्ष करना पड़ा और फिर भी, वे कभी भी पूरे भारत को जीतने में सक्षम नहीं थे। इसके अलावा 1700 के दशक तक हम देखते हैं कि सिख, मराठा और जाट सत्ता में आए और मुसलमानों को उखाड़ फेंका।

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हेमू का प्रमुखता के लिए उदय

हुमायूँ के दिल्ली पर विजय प्राप्त करने से पहले, उत्तराधिकार में तीन सूर राजा थे, लेकिन असली शक्ति हेमू के हाथों में थी। हेमू रेवाड़ी, हरियाणा के लोकप्रिय शासक थे। उनका उदय तेज और साहसी था। हुमायूँ ने नवंबर 1554 में काबुल छोड़ दिया और 1555 में लाहौर पर कब्जा कर लिया। उसका उद्देश्य भारत पर अपनी पकड़ फिर से हासिल करना था। अफगानों ने मुगल हमले का विरोध किया, लेकिन 23 जुलाई, 1555 को हुमायूँ एक बार फिर दिल्ली की गद्दी पर बैठा। लगभग छह महीने बाद, हुमायूँ की अपने पुस्तकालय की छत से उतरते समय मृत्यु हो गई। इसके तुरंत बाद पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई। जब हुमायूँ की मृत्यु हुई तब हेमू बंगाल में था और उसने तेजी से मुगलों के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया, जो बीच में पड़ी रियासतों को भी जीतते हुए दिल्ली बढ़ रहा था। हेमू के आगे बढ़ने पर आगरा का मुगल गवर्नर दिल्ली भाग गया। हेमू उसके पीछे तुगलकाबाद गया, जहां दिल्ली का मुगल गवर्नर तारदी बेग उससे लड़ने के लिए निकला। कुछ प्रारंभिक जीत के साथ, मुगल सेना तितर-बितर हो गई। तुगलकाबाद की लड़ाई में अपनी जीत के साथ, हेमू भारत का सम्राट बन गया और ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। हेमू ने करीब एक महीने तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया।

इतिहासकार एसएए रिज़वी किताब द वंडर दैट वाज़ इंडिया वॉल्यूम 2 में लिखते हैं “इतिहासकार अबुल फ़ज़ल हिमू की प्रशासनिक और सैन्य प्रतिभा के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और सुझाव देते हैं कि यदि उनका (हेमू) जीवन बख्शा गया होता, तो वह अकबर का प्रशिक्षक बना होता और मुगल साम्राज्य के वास्तुकारों में से एक होता।” किन्तु, अकबर के विपरीत हेमू तो युद्ध में आगे बढ़कर अपने सैनिकों का नेतृत्व करने वाला योद्धा था अतः दुर्भाग्यवश उसकी निर्भीक आँखें उड़ते तीर का शिकार हो गयी और अकबर बच गया। किन्तु, अगर हेमू अंतिम हिन्दू शासक था तो महाराणा प्रताप कौन थे? जब मुग़ल सत्ता अपने शीर्ष पर थी तब छत्रपति शिवाजी, संभाजी, बाजीराव कौन थे? इस्लाम का बर्बर और संकीर्ण सिद्धांत भारतीय पूर्वजों को पसंद नहीं आया। इसीलिए, जब इस्लाम भारत पहुंचा तो धर्मांतरण के लिए बल का प्रयोग करना पड़ा। यह स्पष्ट रूप से भारतीय संस्कृति की ताकत को दर्शाता है। कई सदियों के दमन के बाद भी भारतीयों ने अपना विश्वास नहीं खोया। यह गर्व की बात है। इस्लाम की एक अजेय शक्ति के लिए भारत के हिन्दू शासकों नें महान प्रतिरोध प्रस्तुत किया और कई सदियों की गुलामी के बाद भी, भारतीय संस्कृति और पहचान बनी रही और अभी भी दृढ़ और ठोस रूप से जमी हुई है।

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