एक होते हैं वचनबद्ध, फिर आते हैं वचन के लिए अपने भाग्य तक को चुनौती देने वाले व्यक्ति और फिर आते हैं नसीरुद्दीन शाह। अरे नहीं बंधुओं, इन्हें ऐसा वैसा न समझिए, इनके सामने तो असदुद्दीन ओवैसी और अखिलेश यादव फेल हैं भैया, जे न हो तो भाईजान इस्लाम की हिंदुस्तान में पैरवी कौन करेगा? इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे नसीरुद्दीन शाह ने अपने बड़बोलेपन से एक बार फिर अपनी और पूरे बॉलीवुड की नाक कटवाने में कोई प्रयास बाकी नहीं छोड़ा है।
नसीरुद्दीन को मिला मौके पर चौका लगाने का अवसर
हाल ही में भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान के पीछे काफी बवाल मचा था, जिस पर काफी इस्लामिक देशों ने रोष प्रकट किया था। ऐसे में हमारे बॉलीवुड के मुस्लिम प्रेमी कलाकार कैसे पीछे रहते? पहले फरहान अख्तर ने नूपुर शर्मा के क्षमा याचना पर तंज कसते हुए ट्वीट किया, “जबरदस्ती निकलवाई हुई माफी दिल से निकली हुई माफी के सामने कुछ नहीं होती!” –
A forced apology is never from the heart.
— Farhan Akhtar (@FarOutAkhtar) June 5, 2022
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अब मौके पर चौका लगाने का अवसर हमारे नसीरुद्दीन मियां कैसे हाथ से जाने देते? महोदय ने बॉलीवुड के खान तिकड़ी पर निशाना साधते हुए कहा, “मैं भला कैसे उनके लिए [खानों] के लिए बोल सकता हूं। मैं उनकी जगह तो ले नहीं सकता, पर मुझे नहीं पता वे क्या दांव पे लगाना चाहते हैं। जाने किस चीज़ को खोने से डरते हैं, परंतु मुझे लगता है कि वे उस जगह हैं जहां उनके पास खोने को बहुत कुछ हैं”।
परंतु नसीरुद्दीन महोदय उतने पर ही नहीं रुके। फिर से पीएम मोदी पर घृणा को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा, “वह [नूपुर शर्मा] कोई आई गई व्यक्ति नहीं है। ऐसे नफरत करने वालों को चुप कराना ही होगा और केवल प्रधानमंत्री ही कुछ कर सकते हैं, अन्यथा अनर्थ हो जाएगा”।
देखो नसीर चचा, हम आपकी मजबूरी समझते हैं, आपने बड़ी अच्छी बात भी कही, पर दूसरे साइड की मजबूरी भी तो समझो, आपकी तरह तो हैं नहीं कि तलवार लेके टूट पड़ो! खान तिकड़ी को भी घर संभालना है, अन्यथा आपकी बात टालने की हिम्मत है किसी में?
नसीरुद्दीन शाह काफी पुराने खिलाड़ी
अब इस क्षेत्र में भी नसीरुद्दीन शाह काफी पुराने खिलाड़ी हैं। द वायर से जुड़े पत्रकार करण थापर को दिए साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह ने कहा, “मुगल यहां पर बसने के लिए आए थे। उन्होंने भारत की संस्कृति और संगीत को अपना अप्रतिम योगदान दिया था। उन्हें आप शरणार्थी भी कह सकते हैं, बड़े धनाढ्य शरणार्थी थे वे!”
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परंतु ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। पिछले ही वर्ष महोदय हिन्दुस्तानी इस्लाम और रेगिस्तानी इस्लाम में अंतर रेखांकित करते हुए जनाब बता रहे थे, “अल्लाह ऐसा समय न लाए जब यह इतना बदल जाए कि हम इसे पहचान भी न सकें। मैं एक भारतीय मुसलमान हूं और जैसा कि मिर्जा गालिब ने सालों पहले कहा था, ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता अनौपचारिक है। मुझे राजनीतिक धर्म की जरूरत नहीं है।”
ऐसे में नसीरुद्दीन शाह को समझ लेना चाहिए कि संसार इनके इशारों पर नहीं चलता है। या तो धन से चलता है, और यदि विचारों से चलता है तो संख्याबल के आधार पर ही चलता है जो इस समय इनके पास कतई नहीं है।
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