अग्निपथ के विरोध की अग्नि में धूं-धूं कर जलता बिहार कई बातें कहना चाह रहा है, सत्ताधीश से सवाल कर रहा है बस स्वर नहीं मिल रहे। बिहार जिसे ज्ञान का केंद्र माना गया है, ऐसे बिहार में अज्ञानता का वास लिए एक तबका आया है जो “अग्निपथ” योजना को रोशनी देने वाला कम और जला देने वाला अधिक बता रहा है। उन सपनों और भविष्य के स्वर्णिम काल को जला देने का दावा कर रहे ऐसे लोगों को “अग्निपथ” वास्तव में अग्नि से भरा पथ ही प्रतीत हो रहा है और तो और, वो चाहते हैं कि जिन्हें ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है उन्हें भी यह प्रतीत हो। अब इस जलते बिहार का कारक बने “अग्निपथ” में जिस व्यक्ति का योगदान सबसे अधिक माना जा रहा है वो कोई और नहीं, वो हैं राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।
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‘कुशासन’ कुमार से भी कई बार संदर्भित हुए नीतीश कुमार का रुख इस बार हमेशा की तरह अपने गठबंधन धर्म से परे है। भाजपा के साथ इस बार छोटे भाई की भूमिका में बिहार की सत्ता के सत्ताधीश बने नीतीश कुमार सभी मायनों में भाजपा के धूर-विरोधी प्रतीत हो रहे हैं। यूं तो उनके लिए यह कोई नई बात नहीं है पर जिस समय बिहार एक योजना के लिए जल रहा है या प्रायोजित ढंग से जलाया जा रहा है तो यह जवाबदेही नीतीश कुमार की ही बनती है कि इस प्रायोजित ‘जलाओ तंत्र’ के विरुद्ध या तो कार्रवाई करें या अपना रुख स्पष्ट करें।
गठबंधन का एक धर्म होता है जिसको निभाना सभी घटक दल के लिए महत्वपूर्ण होता है। लेकिन नीतीश कुमार अपने ही गठबंधन NDA की केंद्र सरकार द्वारा लाई गई अग्निपथ योजना के लिए न ही कुछ बोल रहे हैं और न ही स्पष्ट रूप से यह जता रहे हैं कि वो या उनकी पार्टी “जेडीयू” इस योजना के विरोध में है। अन्य राज्यों में यदि अग्निपथ को लेकर तांडव हो रहा है तो वहां कार्रवाई सख्त ढंग से हो रही है। चाहे भीड़ को तितर-बितर करना हो या वॉटर केनन का इस्तेमाल करना हो, सरकार पुलिस को दंगा और उपद्रव न बढ़ पाए, उस पर ध्यान देने और निगरानी रखने की हिदायत दे रही है।
दंगाइयों को मौन समर्थन दे रहे हैं नीतीश कुमार!
बिहार में ऐसा बिल्कुल नहीं है! NDA में भाजपा और जेडीयू दोनों हैं, पर प्रदर्शनकारी और उपद्रवी केवल भाजपा से जुड़े कार्यालयों और निवासों को निशाना बना रहे हैं। खबरों की मानें तो हिंसा फैलाने में आरजेडी के कार्यकर्ता प्रमुख रूप से बताए जा रहे हैं और यही कारण भी है कि नीतीश न ही बयान दे रहे हैं और न ही पुलिस को ऐसे तत्वों पर गंभीर कार्रवाई करने का निर्देश दे रहे हैं। इससे यही प्रतीत होता है कि नीतीश कुमार गठबंधन धर्म भूलकर फिर से पाला बदलने की ओर अग्रसर हैं। आरजेडी से बात बनी रहे इसलिए न ही कार्रवाई हो रही हैं और न ही नीतीश हिंसा और उपद्रव को नाजायज़ ठहरा रहे हैं।
बताते चलें कि ऐसी चुप्पी से नीतीश कुमार कुछ भी हासिल करने में अक्षम हैं। यदि उनका मन अब आरजेडी से मेल खाता है तो भी नीतीश को अपने राजनीतिक भविष्य में अब कोई लाभ तो हासिल नहीं होने वाला है। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का यह अंतिम क्षण माना जा रहा है क्योंकि अब भाजपा सीटों के मामले में भी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है और भाजपा का नीतीश के प्रति घटता विश्वास भी उनकी राजनीतिक विदाई का पुख्ता इंतज़ाम कर रहा है। ऐसे में अब बिहार को अग्निपथ के नाम पर अग्नि में झोंकने वालों पर नीतीश कुमार की चुप्पी या यूं कहें कि उनका मौन समर्थन उनके ‘राजशाही’ के अंतिम दिनों को पूर्ण कर रहा है।
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