एनर्जी ड्रिंक्स: जब समाधान बेचने के लिए समस्या बनाई गई, केस स्टडी

एनर्जी ड्रिंक्स के लिए आज लोग पागल क्यों हुए जा रहे हैं, इसके पीछे का पूरा खेल समझ लीजिए।

Energy Drinks Case Study

Source: TFI

टीएफ़आई प्रीमियम में आपका स्वागत है। संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं- एक जो समस्या बनाते हैं और दूसरे जो उस समस्या का समाधान बनाते हैं। परंतु बदलते समय के साथ एक नई प्रकार की प्रजाति भी उत्पन्न हुई है– समाधान को बेचने के लिए समस्या रचने वालों की। ऐसी ही एक समस्या से आप सबको परिचित कराते हैं, जिसका नाम है- एनर्जी ड्रिंक्स।

अब ड्रिंक्स तो भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं परंतु यह एनर्जी ड्रिंक भला क्या बला है? तो हम आपको बताते हैं कि यह एनर्जी ड्रिंक क्या है? जो न कॉफी या चाय जितनी तेज़ हो, न ही कोल्ड ड्रिंक जितनी ‘सॉफ्ट’ और न ही मदिरा की तरह ‘उत्तेजक’- वही एनर्जी ड्रिंक है। इसकी और सरल परिभाषा यह हो सकती है कि यह अलग-अलग उत्पादों की ख़िचड़ी है। लेकिन इन सभी में एक तत्व समान है- कैफ़ीन। आज जो रेड बुल, मॉन्स्टर, स्टिंग इत्यादि के पीछे लोग पागलों की भांति पड़े हुए हैं, एनर्जी ड्रिंक्स उसी बीमारी का नाम है।

परंतु आखिर यह समाधान किस समस्या को बेचने हेतु बनाया गया? कभी आपने लिस्टरीन से पूर्व प्लैक [Plaque] या मुंह से बदबू के बारे में सुना है? यदि नहीं तो इसलिए क्योंकि गिने-चुने लोग ही इस बीमारी का शिकार होते हैं। परंतु लिस्टरीन नामक माउथवॉश ने इसका प्रचार ऐसे किया मानो मुंह की बदबू से घातक संसार में कुछ है ही नहीं और जल्द ही अमेरिका के कोने-कोने में लिस्टरीन की एक बोतल पाई जाने लगी। ठीक इसी भांति शरीर में ऊर्जा की कमी की समस्या को ‘कम करने हेतु’ एनर्जी ड्रिंक्स का आविष्कार किया गया।

अब इस मुद्दे को थोड़ा विस्तार से समझते हैं। उपभोक्तावाद के दो महत्वपूर्ण स्तम्भ है– निरंतर इनोवेशन और धन का निरंतर बहाव। यदि इनोवेशन न हो तो धन का सृजन लगभग असंभव है। इनोवेशन के लिए लोगों को वैज्ञानिकों के निरंतर शोध पर निर्भर रहना पड़ता है। अब आप यह तो अच्छी तरीके से जानते हैं कि इनोवेशन चुटकियों में नहीं होता। ऐसे में अधीरता में कई लोग समाधान के लिए ही समस्या खड़ी कर देते हैं और एनर्जी ड्रिंक्स इसी का जीता जागता प्रमाण है।

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एनर्जी ड्रिंक्स का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितनी मानव सभ्यता। कहने को जल भी एनर्जी ड्रिंक है पर क्योंकि वह मुफ़्त में मिलता है इसलिए उसका कोई मोल नहीं। परंतु प्रथम एनर्जी ड्रिंक का उदाहरण कोका-कोला से बेहतर क्या हो सकता है? इसकी उत्पत्ति एक सॉफ्ट ड्रिंक के रूप में कम और एक एनर्जी ड्रिंक के रूप में अधिक हुई थी।

19वीं सदी में जॉन पेम्बर्टन ने कोका कोला का आविष्कार किया था तो इसे एक एनर्जी ड्रिंक के रूप में प्रसारित किया था, क्योंकि कंपनी ने जब पेय उत्‍पाद को पहली बार लॉन्च किया तो इसमें कोकीन डाली थी। यह कोकीन कोक की पत्तियों से निकाला जाता था। इसमें दूसरा सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल किया जाने वाला पदार्थ कैफीन था, जिसे कोला नट से निकाला जाता था। यही वजह है कि इस उत्‍पाद का नाम कोका कोला रखा गया। शुरुआत में एक बोतल में कोकीन की मात्रा करीब 3.5 ग्राम रहती थी।

ठीक इसी भांति 1890 के दशक में लॉन्च की गई पेप्सी भी एक ‘एनर्जी बूस्टर’ के रूप में प्रसारित की गई थी।   कुछ लोगों ने इसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई भी की और यहाँ तक आरोप लगाया कि ये दोनों नशीले पदार्थ मिलाकर लोगों को इसकी लत लगवाते हैं और इन्हे तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित करना चाहिए। अब भले ही यह आरोप निराधार निकले, परंतु उस दिन के पश्चात पेप्सी और कोका कोला को ‘एनर्जी ड्रिंक्स’ के रूप में बेचना बंद करना पड़ा था।

परंतु शेर के मुंह जब खून लग जाए तो वह रुकेगा क्या? एनर्जी ड्रिंक्स के मार्केट में अब नए खिलाड़ियों ने दांव लगाने प्रारंभ किए। 1927 में Newcastle के एक फार्मेसिस्ट विलियम वॉकर ने एक नए ड्रिंक का ‘आविष्कार’ किया। इसमें दावा किया गया वह उसके मरीजों को विभिन्न विपदाओं से रिकवर करने में जल्द सहायता करेगा। इसका नाम उन्होंने Glucozade Energy रखा। ठीक इसी प्रकार से जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड में भिन्न-भिन्न प्रकार के एनर्जी ड्रिंक्स के विचार निकले। परंतु कुछ भी नहीं चला क्योंकि तब किसी को न इसकी आवश्यकता थी और न ही इन्हे अपना उत्पाद बेचने की कला पता थी।

परंतु शीघ्र ही उन्हे एक अवसर मिला और यह अवसर मिला ग्लोबल वार्मिंग की कृपा से। थाइलैंड में एक उद्योगपति Chaleo Yoovidhya ने देखा कि एक जापानी ड्रिंक Lipovitan D एक औसत उद्योग कर्मचारी को काफी स्टैमिना देता है। उन्होंने इसका एक नया वर्जन तैयार किया, जो इससे तनिक मीठा और दमदार था– Krating Daeng।

2 वर्षों में ही इस एनर्जी ड्रिंक ने सम्पूर्ण थाइलैंड के एनर्जी ड्रिंक उद्योग पर अपना नियंत्रण जमा लिया क्योंकि उसका कस्टमर बेस था थाइलैंड का औसत औद्योगिक कर्मचारी- जिसे उसका ड्रिंक काफी पसंद आया, और शीघ्र ही ये Muay Thai से भी जुड़ गया। परंतु क्या आपको पता है कि इस लोकप्रिय ड्रिंक के कारण Red Bull का भी आविष्कार हुआ?

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एक जर्मन टूथपेस्ट निर्माण कंपनी Blendax के ऑस्ट्रिया से संबंधित कर्मचारी Dietrich Mateschitz ने जब थाइलैंड की यात्रा की तो उसने भी Krating Daeng का सेवन किया। वह जानकर चकित रह गया कि उसका जेट लैग तुरंत ठीक हो गया। उन्होंने तुरंत इस कंपनी के बारे में और जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास किया। उसने उद्योगपति Chaleo Yoovidhya को अपने साथ लिया और फिर दोनों ने Red Bull GmbH की स्थापना की, जिसे अंग्रेज़ी ग्राहकों की सुविधा हेतु Red Bull में परिवर्तित किया गया। फिर क्या था Krating Daeng से कब Red Bull को पंख लग गए, पता ही नहीं लगा।

इससे एक और बात स्पष्ट हुई कि जैसे-जैसे मार्केट बदलता है, आपको उसके अनुसार बदलना पड़ता है और पाश्चात्य मार्केट में जरूरी नहीं कि मौलिकता ही हर बार आपकी नैया पार लगाए। यही बात रेड बुल पर भी लागू होती है। Red Bull न केवल एक आकर्षक नाम था, अपितु लोगों को लुभाता भी था। ग्राहकों को अधिक से अधिक लाभ देने हेतु Red Bull ने मूल तत्वों के साथ समझौता करने की ठान ली। भले ही उन्होंने मूल Ingredients नहीं हटाए परंतु उन्होंने कार्बोनटेड जल और सीमित मात्रा में मदिरा अवश्य मिलाई।

इसके बाद भी रेड बुल को प्रारंभ में सफलता नहीं मिल रही थी। फिर उन्होंने एक युक्ति निकाली। वो जानते थे कि अधिकतम लोग ऐसे थे जो उच्च वर्ग या उच्च मध्यम वर्ग से आते थे, जिसमें काफी स्ट्रेस आधारित कार्य करना पड़ता है। ऐसे में उन्होंने स्ट्रेस को अपना हथियार बनाया। उन्होंने यह प्रचार किया कि रेड बुल आपके स्ट्रेस को दूर भगाएगा। बस, फिर क्या था- लोगों ने न आव देखा और न ताव देखा- किसी हॉलीवुड फिल्म के जॉम्बी की भांति सभी टूट पड़े Red Bull पर और ये प्रवृत्ति आज भी खत्म नहीं हुई है। Red Bull ने केवल वर्किंग क्लास में ही नहीं परंतु कॉर्पोरेट सेक्टर के उस वर्ग में भी सेंध लगाई, जो पार्टी तो करना चाहता है परंतु अधिक शराब नहीं पीना चाहता है। Red Bull ने यहाँ पर भी जबरदस्त सेंध लगाई।

आज Red Bull अकेले 172 से अधिक देशों में प्रचलित है और उसके वार्षिक सेल्स डबल डिजिट की दर से बढ़ते जा रहे हैं। परंतु ये लोग इतने पर ही नहीं रुके। जब लोगों को पता चला कि इनके ड्रिंक्स में शुगर की मात्रा दबाकर भरी गई है, जिससे मधुमेह जैसे रोग की संभावना बढ़ जाती है तो इन्होंने शुगर फ्री और जीरो कैलोरी जैसे ड्रिंक्स लॉन्च करने के दावे किए परंतु वे बिल्कुल भी प्रभावी साबित नहीं हुए।

एनर्जी ड्रिंक्स प्रारंभ में केवल ‘बीमारों का ड्रिंक’ था, परंतु अब ये किसी सोशल स्टेटस से कम नहीं है। वैश्विक एनर्जी ड्रिंक्स मार्केट का वार्षिक टर्नओवर यदि आप देख लें तो आपकी आँखें चौंधिया जाएंगी। इसी वर्ष में इसका मार्केट लगभग 53.1 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है और लगभग पाँच वर्षों के भीतर ये अनुपात 86.1 बिलियन तक भी पहुँचने की पूरी पूरी संभावना है। भारत में ही इसका व्यापार 9.98 प्रतिशत की अप्रत्याशित दर से बढ़ रहा है।

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परंतु कई लोग यह भूल जाते हैं कि जो दिखता है, वो होता नहीं। एक भारतीय व्यक्ति एक गिलास सत्तू पीकर भोजन से पूर्व 4 से 5 घंटे तक निरंतर कार्य कर सकता है और वही एनर्जी देने में बड़े से बड़े कार्बोनटेड ड्रिंक्स की आँतें ऐंठ जाएंगी। ऐसे में एनर्जी ड्रिंक्स कुछ नहीं अपितु छलावा है, जिसका एक ही उद्देश्य है– कैसे भी करके ग्राहक से पैसे निकलवाना।

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