498A जैसे मामलों पर कोर्ट का बड़ा आदेश, अब ‘वास्तविक पीड़ितों’ को मिल सकेगा न्याय

अब 'कूलिंग पीरियड' के दौरान नहीं होगी कोई गिरफ्तारी !

498 ए

Source- TFIPOST.in

देश में हर दिन दहेज़ उत्पीड़न के हज़ारों केस दर्ज होते हैं लेकिन इनमें से कितने केस सच्चे होते हैं? कितने केस में वाकई में पति और ससुराल पक्ष के लोग जिम्मेदार होते हैं? क्या महिला पक्ष हर बार सही होता है? पिछले कुछ समय की खबरों को देखकर इस तरह के कई प्रश्न समय समय पर उठे हैं। भारत के संविधान में महिलाओं के अधिकार और सम्मान की रक्षा के लिए कई क़ानून लिखे और बनाये गए हैं जिनमें से एक है आर्टिकल 498 ए। भले  इस नियम के तहत कई महिलाओं को दहेज़ जैसी कुप्रथाओं से रक्षा हुई है और न्याय भी मिला है लेकिन ऐसी भी कुछ महिलाएं हैं जो उनके हक़ और सुविधा के लिए बनाये गए क़ानून के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूकतीं। ऐसी भी कुछ महिलाएं हैं जिनके इन कानूनों की आड़ में बोले गए दो झूठ किसी निर्दोष की ज़िंदगी बर्बाद कर देते हैं।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 498 ए के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए

हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए का दुरुपयोग, जो एक महिला पर उसके पति और उसके परिजनों द्वारा की गई क्रूरता को अपराध मानता है, “हमारे सामाजिक ताने-बाने पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।” न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने आईपीसी की धारा के “दुरुपयोग” को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए, जिनमें से एक में कहा गया है कि धारा 498 ए के तहत मामला दर्ज होने की स्थिति में, दो महीने की “कूलिंग अवधि” के दौरान पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कोई गिरफ्तारी या दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इन दो महीनों के दौरान, मामले को संबंधित जिले की परिवार कल्याण समिति (एफडब्ल्यूसी) को भेजा जाना चाहिए।

न्यायाधीश का कहना था कि आज के समय में युवा बिना विवाह के बंधन में बंधे एक साथ रहने लगते हैं और उनके बीच के रिश्तों में जब दरार आने लगती है या फिर किसी वैवाहिक जोड़े में तनाव होता है तो कई बार लड़की के पक्ष से ससुराल वर्ग पर दहेज़ उत्पीड़न के मामले दर्ज करवा दिए जाते हैं जो कि कई बार गलत भी साबित हुए हैं। इस क़ानून का गलत इस्तेमाल इसलिए भी बढ़ गया क्योंकि पुलिस केवल महिला के एक बार कह देने पर ही ससुराल पक्ष और उसके पति को दोषी मान गिरफ्तार करने लगी है। केस पर केस चलने लगे और जब तक ससुराल पक्ष अपनी निर्दोषता सिद्ध नहीं कर देता तब तक उन्हें दोषी माने जाने लगा।

वर्ष 2021 में केस सामने आया

जहां लुधियाना में 60 वर्षीया एक आदमी ने आत्मदाह कर लिया। कारण था कि उनकी नई नवेली बहु को ससुराल के साथ नहीं रहना था लेकिन जब सास-ससुर ने अलग होने से मना कर दिया तो बहु और उसके मायके वाले बार-बार बूढ़े पति पत्नी को प्रताड़ित करने लगे और दहेज़ के झूठे आरोपों में फंसाने की धमकी देने लगे। आखिर में इन सब से परेशान होकर बूढ़े आदमी ने लोक लाज के चलते अपने प्राण दे दिए। इस तरह महिलाओं की रक्षा के लिए बनाये गए इस अधिनियम ने एक बूढे निर्दोष की जान ले ली।

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वर्ष 2012 में केस सामने आया

एक दूसरा मामला जो सामने आया उसमें वर्ष 2012 में दहेज़ उत्पीड़न में गिरफ्तार किये गए IIT कानपूर के टोपर दीप्तांशु शुक्ल पर उनकी पत्नी प्रज्ञा देवी ने केस कर दिया। प्रज्ञा का कहना था कि उनके माता-पिता ने शुक्ल के परिवार को 15 लाख रूपए दहेज़ में दिए लेकिन शुक्ल और उनका परिवार और पैसे मांगने के लिए उन्हें परेशान करने लगा। शुक्ल को गिरफ्तार कर लिया गया। जब कोई उनका केस लड़ने को तैयार नहीं हुआ तो शुक्ला ने स्वयं अपनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया और प्रज्ञा के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे किये। यहाँ तक की न्यायलय में बैंक स्टेटमेंट भी सबूत के रूप में दिखाई जिससे यह साबित हुआ कि प्रज्ञा के परिवार ने कभी कोई पैसे शुक्ल परिवार को दिए ही नहीं थे।

इतनी लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार एक निर्दोष व्यक्ति अपनी बेगुनाही साबित कर पाया। हालाँकि ये दो ही अकेले ऐसे मामले नहीं हैं जहाँ 498 ए का दुरूपयोग किया गया हो। कुछ महिलाएं विवाह के बंधन में नहीं बंधना चाहती है लेकिन परिवार के दबाव में शादी के लिए हाँ कहकर शादी तो कर लेती हैं लेकिन फिर उस शादी से छुटकारा पाने के लिए इस तरह से रक्षा के लिए बनाए गए क़ानून का दुरूपयोग करती हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब वाकई में पीड़ित महिला न्याय के लिए तरसती रह जाएगी और उसकी पुकार झूठ समझकर अनसुनी कर दी जाएगी।

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