कश्मीर से कानपुर तक हिंसा के साथ ‘शांतिप्रिय समुदाय’ के ‘प्रयोग’

कानपुर हिंसा की ‘इनसाइड स्टोरी’ और उसके मायने समझ लीजिए।

कानपुर हिंसा

Source: TFI

अब कानपुर में मज़हबी दंगाइयों ने आग लगाने की कोशिश की है। कानपुर को अपने ‘प्रयोग’ का हिस्सा बनाने की कोशिश की है। जुमे की नमाज के बाद कानपुर की सड़कों पर ‘शांतिप्रिय समुदाय’ ने पत्थर बरसाए हैं। पुलिस पर पत्थरबाजी की है। दूसरे समुदाय के लोगों के ऊपर पत्थर फेंके हैं। पहचान कर-करके निशाना बनाया गया है। मज़हबी दंगाई कानपुर को जलाना चाहते थे लेकिन वो अपने षड्यंत्र में बुरी तरह नाकामयाब रहे।

उनकी कोशिशें धरी की धरी रह गईं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने मज़हबी दंगाइयों को कानपुर की गलियों में सिखाया कि यूपी में दंगे करने का परिणाम क्या होता है! कानपुर की गलियों से कुटाई की आवाजें सोशल मीडिया पर वायरल हैं। दंगाई भूल गए थे कि यह उत्तर-प्रदेश है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने दंगाइयों के षड्यंत्र पर पानी फेर दिया, लेकिन कानपुर की हिंसा को हम ऐसे ही नहीं जाने दे सकते। कानपुर की हिंसा कोई ‘संयोग’ या फिर कोई ‘घटना’ नहीं थी- बल्कि पूर्वनियोजित ‘प्रयोग’ था। यह वही ‘प्रयोग’ है जो कश्मीर से कानपुर तक पहुंचा है। हम इसे प्रयोग इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि कानपुर की हिंसा के पीछे का सच सामने आ गया है। कानपुर हिंसा की इनसाइड स्टोरी सामने आ गई है।

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कानपुर हिंसा के पीछे PFI का कनेक्शन भी है। सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूफी कैसर हसन मजीदी ने कहा है कि हिंसा करवाने के पीछे PFI का हाथ है। चरमपंथी इस्लामिक संगठन PFI का नाम आते ही इस पूरे मामले का सच भी सामने आ जाता है। PFI का नाम इससे पहले दिल्ली दंगों में आ चुका है- राजस्थान दंगों में आ चुका है- बैंगलोर दंगों में आ चुका है।

इसके साथ ही कानपुर हिंसा का मास्टरमाइंड हयात जफर हाशमी को बताया जा रहा है। हाशमी एमएमए जौहर फैन्स एसोसिएशन का अध्यक्ष है। इसकी तलाश भी पुलिस कर रही है। PFI का कनेक्शन और एक स्थानीय इस्लामिस्ट का साथ- यही वो प्रयोग है जो कश्मीर से निकलकर कानपुर तक पहुंचा है।

कश्मीर में आतंकवादियों को पाकिस्तान पैसे खिलाता था और स्थानीय इस्लामिस्ट रोटी- इस तरह से आतंकियों ने घाटी में कितनी ही घटनाओं को अंजाम दिया। हमने वो दौर भी देखा है जब धारा 370 हटने से पहले कश्मीर में सेना के ऊपर पत्थरबाजी होती थी। हर जुमे की नमाज के बाद भारतीय सुरक्षाकर्मियों के ऊपर दंगाई पत्थर फेंकते थे। वहां कोई दूसरा समुदाय तो उन्होंने रहने नहीं दिया, इसलिए सेना को ही निशाना बनाते थे।

पत्थरबाजी करने की जो परंपरा कश्मीर से निकली वो दिल्ली भी पहुंची। नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में दंगों के दौरान हमने देखा कि दंगाइयों ने किस तरह से पत्थरबाजी की। किस तरह से हिंसा की। किस तरह से दूसरे समुदाय के लोगों को मारा।

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इसी तरह की हिंसा हमने राजस्थान में देखी- इसी तरह की हिंसा हमने बैंगलोर में देखी- और अब इसी तरह की हिंसा कानपुर में हुई है। जुमे की नमाज के बाद पूरी की पूरी भीड़ सड़कों पर उतरती है और दंगा शुरु कर देती है। कानपुर में जो हिंसा हुई उसकी पूरी योजना पहले से तैयार थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिंसा से पहले ही मौलानाओं ने एक बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में हयात जफर हाशमी भी मौजूद था। इस बैठक के बाद ही हजारों की भीड़ सड़कों पर निकल पड़ी।

इस बैठक के बाद ही ठेलों पर पत्थर रखकर सड़कों पर लाए गए। इस बैठक के बाद ही कानपुर की सड़कों पर हिंसा हुई। तो क्या इन मौलानाओं ने इस बैठक में हिंसा की स्क्रिप्ट लिखी? तो क्या इन मौलानाओं ने धर्म विशेष के युवाओं को हिंसा के लिए भड़काया? इसी तरह से धर्म विशेष के युवाओं को कश्मीर में भड़काया जाता था! दिल्ली में भी इसी तरह से धर्म विशेष के युवाओं को हिंसा के लिए भड़काया गया!

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ऐसे में संशय यह भी पैदा होता है कि क्या अराजकता फैलाने का- हिंसा फैलाने का- दंगे करने का- यह ‘प्रयोग’ इस्लामिस्ट धीरे-धीरे पूरे देश तक लेकर जा रहे हैं? यह संशय इसलिए भी पैदा होता है क्योंकि कानपुर में जो भी हुआ वो पूरी तरह से अराजकता थी- पूरी तरह से अपनी ताकत का प्रदर्शन करना था- क्योंकि जिस मुद्दे को लेकर दंगाइयों ने हिंसा फैलाने की कोशिश की, वो तो दरअसल कोई मुद्दा है ही नहीं। भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के एक बयान को लेकर दंगाई सड़कों पर निकले थे- उनका कहना है कि नूपुर शर्मा के बयान से उनकी भावनाएं आहत हुईं हैं।

ऐसे में एक सवाल यह भी है कि क्या इस देश के बहुसंख्यकों की कोई भावनाएं नहीं हैं- जब शिवलिंग को फव्वारा कहा जा रहा था तब तो किसी ने हिंसा नहीं फैलाई? जब शिवलिंग पर तमाम तरह की टिप्पणी की जा रही थी तब क्या बहुसंख्यक की भावनाएं आहत नहीं हो रही थी? बेशक, हिंदुओं को तकलीफ पहुंच रही थी। बेशक हिंदुओं को उनके आराध्य का मजाक बनाए जाने पर दुख हो रहा था लेकिन कोई भी हिंदू हथियार लेकर सड़क पर नहीं निकला। ऐसे में एक बयान पर हजारों की संख्या में भीड़ जमा हो जाए और हिंसा करने लगे इससे साफ पता चलता है कि यह ‘कश्मीर मॉडल’ है जिसे कानपुर में ‘प्रयोग’ किया गया है।

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