कैसे कैडबरी डेरी मिल्क ‘चॉकलेट उद्योग’ का फेसबुक बन गया, यहां समझिए

'डेरी मिल्क' के वर्चस्व में सेंध लगाना नामुमकिन है!

डेरी मिल्क

Source- Google

सोशल मीडिया बोले तो फेसबुक,
टूथपेस्ट बोले तो कोलगेट,
चॉकलेट बोले तो डेरी मिल्क,

नहीं समझे?

ये वो ब्रांड हैं, जो इतने प्रसिद्ध हो चुके हैं कि अपने उत्पाद का प्रतिबिंब बन चुके हैं और इस क्षेत्र में इन्हीं का सिक्का चलता है। इसके अतिरिक्त किसी अन्य का नाम सोचना भी हास्यास्पद प्रतीत होता है, प्रतिस्पर्धा तो बहुत दूर की बात रही। ऐसा ही एक क्षेत्र है डेरी मिल्क, जिसने चॉकलेट के लुभावने लोक में अपना एकाधिकार जमा रखा है और जिसकी प्रतिस्पर्धा में दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता।

परंतु ये संभव कैसे हुआ? यूं कहिए तो इसकी कथा कुछ कुछ धीरुभाई अंबानी से कम नहीं है। चॉकलेट के मूल स्त्रोत कोको (Cocoa) के व्यवसाय में लीन जॉन कैडबरी ने अपने भाई बेंजामिन के साथ ड्रिंकिंग चॉकलेट के व्यापार में उतरने का निर्णय लिया। परंतु इस निर्णय को तब सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब 1847 में उनके प्रतिद्वंदी जोसेफ फ्राई ने विश्व का सबसे प्रथम चॉकलेट बार तैयार किया।

1860 आते आते कैडबरी दिवालिया होने के मुहाने पर आ चुकी थी और इस समय जॉन के बेटों, रिचर्ड और जॉर्ज ने व्यवसाय को अपने हाथ में लिया। उन्होंने धीरे-धीरे ही सही, परंतु एक मजबूत नींव स्थापित करने का निर्णय किया और सर्वप्रथम अपना समस्त ध्यान कोको और अन्य व्यवसाय से हटाकर केवल चॉकलेट पर केंद्रित करने का निर्णय किया। वर्ष 1897 में कैडबरी ने अपने चॉकलेट बार की श्रृंखला निकालने का निर्णय किया और अथक परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता। आखिरकार उन्होंने डेरी मिल्क चॉकलेट को 1905 में  लॉन्च किया और बॉर्नविल को 1906 में लॉन्च किया, जो बर्मिंघम के ही एक गांव के नाम पर पड़ा है।

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डेरी मिल्क की सफलता की कहानी

अब इन दोनों चॉकलेट्स में ऐसी क्या विशेषता है, विशेषकर कैडबरी डेरी मिल्क में, जिसके कारण आज भी विश्व की कोई चॉकलेट पानी कम चाय समान है? उसका उत्तर उनके उत्पाद के विवरण और उनके विज्ञापन की रणनीति में मिलता है। वो कैसे? सर्वप्रथम इसके उत्पाद के विवरण पर जाते हैं। जब इस उत्पाद को लॉन्च किया गया, तो इसके अनेक नाम सुझाए गए, किंतु प्लाईमाउथ में एक ग्राहक की बेटी के सुझाव पर ये नाम स्वीकृत किया गया। परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। पुराने चॉकलेट में मिठास कम और कोको की कड़वाहट अधिक होती थी। ‘डेरी मिल्क’ उन लोगों के लिए थी, जिन्हें कड़वे चॉकलेट से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रखना था। इसमें ब्रांड के नाम अनुसार दूध की मात्रा भी अधिक होती थी और जल्द ही इसकी लोकप्रियता केवल इंग्लैंड तक सीमित नहीं रही। यह उन चंद विशुद्ध अंग्रेजी उत्पादों में से एक था, जो टिकाऊ भी था और लोकप्रिय भी।

परंतु इसके विज्ञापन रणनीति से कैसे पता चलता है कि कैडबरी डेरी मिल्क का कोई तोड़ नहीं? आज पूरे विश्व में भारत से टक्कर ले सके, ऐसी अर्थव्यवस्था विरले ही मिलेगी और चॉकलेट के परिप्रेक्ष्य में भी डेरी मिल्क का भारत से दशकों पुराना नाता रहा है। यूं तो ब्रिटिश शासन के कारण ब्रिटिश उत्पादों का प्रभाव अवश्य रहा है, परंतु 80 के दशक के पश्चात जिस प्रकार से पहले दूरदर्शन और फिर विभिन्न माध्यमों से विज्ञापनों का लाभ डेरी मिल्क ने भारत में उठाया, उतना किसी भी अन्य चॉकलेट ने नहीं उठाया। विश्वास नहीं होता तो बस इन्हीं विज्ञापनों को देख लीजिए –

 

डेरी मिल्क के मार्केटिंग का मूल मंत्र यहीं रहा है कि यदि उत्पाद को सफल बनाना है, तो जनता की नब्ज पकड़ो। भारत में आत्मीयता बड़ी महत्वपूर्ण है और जहां पर नेस्ले, हर्षी (Hershey) जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियां चूक गई, वहीं पर डेरी मिल्क ने गर्दा उड़ा दिया और आज स्थिति ये है कि भारत में चॉकलेट उद्योग में कम से कम कोई भी उसे टक्कर देने योग्य तो है ही नहीं, वैश्विक चॉकलेट उद्योग में भी हालत कुछ ऐसी ही है। ‘कुछ मीठा हो जाए’ से लेकर ‘शुभारंभ’ जैसे ‘टैगलाइन’ किसी अन्य चॉकलेट में आपने देखे हैं? यही तो प्रभाव है करिश्माई मार्केटिंग का और इसीलिए डेरी मिल्क का जादू सिर चढ़ कर बोलता है।

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