नूपुर शर्मा का विवाद इस समय चर्चाओं के केंद्र में है। कुछ भारतीय तो पैगंबर को प्राथमिकता देते हुए राष्ट्र को अपमानित करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। नये-नये प्रकार के टूलकिट और ट्रेंड को अपनी बातों को सही साबित करने का हथियार बना चुके हैं। नूपुर शर्मा न केवल बीजेपी की प्रखर प्रवक्ता रह चुकी हैं बल्कि देश की साहसी बेटी भी हैं। उन्होंने किसी के भी धर्म, मत, पंथ या फिर संप्रदाय का कोई अपमान नहीं किया है। यह भारत के डीएनए में नहीं है। किन्तु, जो लोग ज्ञानवापी मुद्दे पर पूरे देश की जनता के सामने बहुसंख्यक समाज के आराध्य महादेव को अपमानित कर रहे थे वह यह बात कभी नहीं समझ पाएंगे।
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है और कोई भी व्यक्ति चाहे वह दैवीय हो या फिर राजनीतिक, सकारात्मक आलोचना से परे नहीं है। किंतु भारत यह भी मानता है कि सकारात्मक आलोचना अपनी सीमा को पार कर नकारात्मक या फिर निंदा का स्वरूप ना ले ले। विचारों के इन महीन रेखाओं के बीच का अंतर समाज का एक वर्ग भली-भांति जानता है तो वहीं दूसरा वर्ग इससे बिल्कुल ही अपरिचित है। नूपुर शर्मा के मामले में मुस्लिम राष्ट्रों और मुस्लिम राष्ट्र के दासों को लगा था कि वह भारत को झुका लेंगे लेकिन यह मामला उल्टा उनको ही भारी पड़ गया। आइए जानते हैं कैसे?
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बीजेपी ने नूपुर शर्मा पर तत्काल कार्रवाई की
पहली बात तो यह है कि बीजेपी ने नूपुर शर्मा पर कार्रवाई करते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से पार्टी से निलंबित कर दिया। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि उन्हें बर्खास्त नहीं किया गया। इससे बीजेपी देश में यह संदेश देने में कामयाब रही की पार्टी सभी के धार्मिक भावनाओं का पूर्ण रूप से ध्यान रखती है। लेकिन, इसके विरोध में उपजे विवाद पर भी बीजेपी ने सख्त रवैया अपनाया और नूपुर शर्मा के मसले पर इस्लामिक राष्ट्र के बयानों को भारत में संकरण और बेबुनियाद बताते हुए पूरी तरह से नकार दिया। इसके साथ ही उन्हें नसीहत भी दी कि हमारे आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश न करें। भाजपा ने त्वरित कार्रवाई करते हुए नूपुर शर्मा की सुरक्षा में भी कोई ढिलाई नहीं बरती। उन्हें पार्टी के पदाधिकारियों, आलाकमान और राज्य की पुलिस से पूर्ण रूप से सुरक्षा प्रदान की गयी है।
इतना ही नहीं इसके बाद जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने इस्लामी चरमपंथियों का वह चेहरा भी उजागर कर दिया जिसमें वह अन्य धर्म के आराध्या के बारे में अपमानजनक बातें कर रहे थे। सबा नकवी, राना अय्यूब, आरफा खानम शेरवानी, जुबेर और अन्य धार्मिक उलेमाओं सहित होमी जहांगीर परमाणु अनुसंधान केंद्र को शिवलिंग बताने वाले पोस्ट भी राष्ट्रीय पटल पर आ गए।
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कट्टरपंथियों की विकृत मानसिकता का हुआ प्रदर्शन
इससे इस्लामिक कट्टरपंथियों की विकृत और दोगली मानसिकता राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गयी। देशभर में एक सर्व सामान्य प्रश्न सबके मन में कौंधा कि आखिर किसी के आराध्य की निंदा या आलोचना करना गलत है या नहीं है? अगर यह गलत है तो उन सारे कट्टरपंथी इस्लामी लोगों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने हमारे आराध्य महादेव का अपमान किया और अगर गलत नहीं है तो फिर नूपुर शर्मा पर भी कार्रवाई का कोई तुक नहीं बनता। यह कैसा मानसिक दोगलापन है कि एक औरत जिसने इस्लाम की सच्चाई को उजागर किया उसे मौत से लेकर बलात्कार तक की धमकी मिलने लगे। कानपुर में दंगे हो गए, पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो गए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को असहिष्णु राष्ट्र बताकर उसकी छवि धूमिल की जाने लगी।
वहीं दूसरी ओर ढेरों वामपंथी मीडिया हाउस पत्रकार और इस्लामिक कट्टरपंथी सरेआम राष्ट्रीय न्यूज चैनल पर आकर हमारे आराध्य महाराज महादेव को अपमानित करते रहे, लेकिन प्रतिकार स्वरूप देश की बहुसंख्यक आबादी ने सार्वजनिक संपत्ति और किसी के जान-माल को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाया। यह भारत के बहुसंख्यक समाज के सहिष्णुता का प्रतीक बना। इस्लाम की कलई खुली, बीजेपी के निष्पक्ष कार्रवाई और राष्ट्र सर्वोपरि सिद्धांत का पुनः प्रतिस्थापन हुआ। शायद इन्हीं सारी परिस्थितियों और घटनाओं को देख कर हम कह सकते हैं कि नूपुर शर्मा के मुद्दे पर राष्ट्रवादी लोगों की जीत हुई जबकि अराजक और अलगाववादी लोग मुंह छुपाते फिर रहे हैं।
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