बिहार विधानसभा चुनाव में “बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है” के नारे लगे। लेकिन, बिहार में घोर अराजकता ने सर्वांगीण विकास (बहार) की इन सभी आशाओं को चकनाचूर कर दिया है। राज्य पहले से ही स्वास्थ्य और शिक्षा के बुनियादी ढांचे की भारी कमी से जूझ रहा था। अब, इसमें भ्रष्टाचार और प्रशासनिक संवेदनहीनता का घुन भी लग रहा है जो इसे अन्दर से खोखला कर रहा है। एक बार फिर नीतीश कुमार के सुशासन की धज्जियां उड़ाने वाली खबर सामने आई है, जिसको जानने के बाद हर किसी का दिल पसीज जाएगा, लेकिन लगता है कि वहां के घूसखोर अधिकारियों के माथे पर इस बार भी कोई शिकन नहीं आएगी।
और पढ़ें: नीतीश कुमार की राजनीति का संपूर्ण अंत किसी भी वक्त हो सकता है
तबाह माता-पिता से रिश्वत
एक पिता के जीवन का सबसे बड़ा दुःख क्या है? एक पिता के लिए जीवन का सबसे बड़ा दुःख है अपने पुत्र के शव को कन्धा देना। लेकिन, बिहार में कुछ इससे भी बुरा हो रहा हैं। रोते हुए माता-पिता जिनके प्यारे बेटे की अभी-अभी मृत्यु हुई थी उनसे रिश्वत मांगा जा रहा है। यह मानवीय संवेदना और प्रशासनिक अक्षमता का सबसे निकृष्टतम स्तर है। ऐसा करने वाले लोग या व्यवस्था दोनों को ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए। किन्तु, यह कोई दुखद फिल्म की कहानी नहीं है बल्कि वास्तव में सुशासन बाबू की नाक के नीचे हुई एक वास्तविक घटना है।
शर्म करो सरकार
बिहार के एक अस्पताल ने एक दंपति से उनके बेटे के शव को अस्पताल से छोड़ने के लिए 50,000 रुपये की रिश्वत की मांग की। इसका एक वीडियो हाल ही में वायरल हुआ था। सरकारी अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग के एक कर्मचारी ने युवक के शव को छोड़ने के लिए कथित तौर पर 50 हजार रुपये की मांग की थी। अब सबसे बड़ी विडम्बना देखिये। समस्तीपुर के सिविल सर्जन डॉ एसके चौधरी ने इसे जायज ठहरा दिया। उन्होंने कहा- “कर्मचारी पैसे मांग सकता है, लेकिन वह 50,000 रुपये नहीं मांग सकता।” हालांकि अस्पताल कर्मी ने पैसे मांगने से इनकार किया है। अतीत में भी पैसे मांगने का इतिहास रहा है। आरोपितों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। हमने मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई है।”
डीएम का बयान
वीडियो वायरल होने के कुछ देर बाद समस्तीपुर सदर अस्पताल प्रशासन ने चौकीदार के साथ शव को परिवार के घर भेज दिया। प्रभारी डीएम विनय कुमार ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि यह प्रशासन को बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने कहा- “मेरी पहली जांच में, यह मामला सच्चाई से बहुत दूर लगता है।“ किन्तु, इस मामले की लीपापोती से जोड़कर देखा जा रहा है।
नीतीश कुमार ने कहा- 6 जून को शव मुसरीघरारी थाने को मिला था। अगले दिन परिजन आए और शव की शिनाख्त की। पुलिस के माध्यम से शव सौंपना पड़ा। इसलिए आरोप सामने आए। मैं वैसे भी मौत की जांच के लिए अधिकृत नहीं हूं। उसका शव थाने के माध्यम से परिजनों को सौंप दिया गया है। मुझे लगता है कि यह वीडियो प्रशासन को बदनाम करता है या फिर ऐसा करने की कोशिश की तरह लगता है।
और पढ़ें: सीएम नीतीश कुमार की अवसरवादी राजनीति के ताजा शिकार हुए हैं आरसीपी सिंह
मामला
महेश ठाकुर का मानसिक विक्षिप्त पुत्र संजीव ठाकुर 25 मई को ताजपुर थाना क्षेत्र के आहर गांव से लापता हो गया था। 7 जून को जब परिजन शव की शिनाख्त करने गए तो पोस्टमार्टम विभाग के कर्मचारी नागेंद्र मलिक ने शव दिखाना तो दूर बल्कि शव सौंपने से भी इनकार कर दिया और 50 हजार रुपये की मांग की। फिर थक हार के परिवार के लोग घर चले आए’
निष्कर्ष
यह मामला सरकार के संवेदनहीनता का प्रत्यक्ष परिचायक है। यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है। यह दर्शाता है की प्रशासन का अपने लोगों से कोई सरोकार नहीं है। यह पशुता है। अगर सरकार सही में इस मामले में कार्रवाई करने के बजाए लीपापोती कर रही है तो नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बने रहने की कोई नैतिकता नहीं बचती है।
और पढ़ें: शराबबंदी ने बिहार पुलिस को शराब के धंधे में धकेल दिया है!