भारत का कद विश्व में लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है। मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत दुनियाभर में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है। हमें देखने मिला कि कैसे विकसित देश हमेशा ही भारत को अपने पाले में लाने के लिए दबाव बनाने का प्रयास करते आ रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी ऐसा ही हुआ। जब रूस और अमेरिका दोनों भारत पर एक खेमा चुनने का दबाव बनाते रहे। परंतु भारत ने भी अपना सख्त रूख अपनाए रखा और किसी भी खेमे को चुनने के बजाए तटस्थ रहा और युद्ध रोककर शांति से बातचीत करने की बात कहता रहा।
भारत के इस कदम ने साबित किया कि वो किसी भी मामले में अपना पक्ष मजबूती से रखने में सक्षम है और किसी भी दबाव में झुकेगा नहीं। उसे मजबूती से खड़े रहने के लिए किसी भी दूसरे देश के साथ जाने की जरूरत नहीं। विदेश मंत्री एस जयशंकर के अमेरिका को तमाम मुद्दों पर दिए गए जवाब भी इसका उदाहरण देते हैं। चाहे वे रूस से तेल खरीदने का मुद्दा या फिर मानवाधिकार उल्लंघन के ज्ञान पर दो टूक जवाब देना…भारत आज अमेरिका के आगे आंख झुकाकर नहीं बल्कि आंख में आंख डालकर जवाब देने की हिम्मत रखता है।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर का रूख साफ
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीते दिनों अपने एक बयान में कहा था- “भारत को लेकर अपनी राय रखने के लिए हर कोई स्वतंत्र हैं। परंतु यह भी ध्यान रखें कि भारत को भी अपनी बातें रखने का पूरा अधिकार है। अमेरिका में मानवाधिकारी के मामलों पर हम नजर बनाए हुए हैं। खासतौर पर भारतीय समुदायों के हितों को लेकर हम चिंतित हैं।” ऐसा पहली बार था जब अमेरिका के मानवाधिकार ज्ञान पर भारत ने इस तरह का करारा जवाब दिया हो।
साथ ही जयशंकर ने यूरोप को आईना दिखाते हुए यह भी कहा कि यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि उसकी समस्याएं पूरी दुनिया की समस्याएं हैं। लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की नहीं। इसके अलावा बीते दिनों एक साक्षात्कार में जयशंकर ने यह भी साफ किया कि भारत के लिए यह आवश्यक नहीं कि वो किसी धड़े में शामिल हो। एक सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा- “भारत का अमेरिका या चीन के नेतृत्व वाली किसी धुरी या खेमे में शामिल होना आवश्यक नहीं। हमें अपनी पसंद चुनने का अधिकार है, जो हमारे मूल्यों व हितों पर आधारित हो। यह आप भारत पर थोप नहीं सकते। देश के लिए यह जरूरी नहीं है कि वो किसी धड़े में शामिल हो।”
भारत की ओर से साफ शब्दों में आज दुनिया को बताया जा रहा है कि वे आज के समय में किसी एक खेमे को चुनने के लिए मजबूर नहीं हैं। बल्कि अब तो भारत दुनिया में तीसरा लीडर बनकर उभरने लगा है, जो विकासशील और कम विकसित देशों की आवाज भी बन रहा हैं और उनका नेतृत्व करता हुआ नजर आ रहा हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के द्वारा ऐसे देशों के लिए उठाए जा रहे तमाम मुद्दे इसका उदाहरण हैं।
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भारत ने (WTO) में अपना दबदबा बनाया
हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अपना लोहा मनवाया। WTO की बैठक में पीयूष गोयल ने भारत के पक्ष को मजबूती से रखा और तमाम देशों को अपनी मांगे मानने के लिए मजबूर किया। WTO में भारत ने किसानों, मछुआरों और गरीबों के हितों की रक्षा के लिए जोरदार आवाज उठाई।
WTO सम्मेलन में भारत ने पांच सालों तक बिना पेटेंट धारक की सहमति के कोरोना वैक्सीन का उत्पादन करने की अपनी मांग मनवा ली। दरअसल, कोरोना वैक्सीन पर दुनिया की बड़ी कंपनियों का पेंटेट हैं। इन कंपनियों पर कब्जा होने की वजह से छोटी कंपनियां वैक्सीन बनाने में असमर्थ रहती हैं। परंतु वैक्सीन पेंटेट से छूट से पांच सालों तक बिना किसी रोक टोक के वैक्सीन का निर्माण किया जा सकेगा। इसका फायदा दुनियाभर के विकासशील देशों को मिलेगा। वहीं, कोरोना महामारी के दौरान विकसित देशों ने जिस तरह की भूमिका निभाई वो बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण थीं। वहीं भारत ने महामारी के दौर में 150 से भी अधिक देशों को दवाईयां और विभिन्न स्तर की मदद मुहैया कराई।
भारत पिछले कुछ समय से जिस तरह से विकासशील देशों और अविकसित देशों को ध्यान में रखकर कदम उठा रहा है, उनकी मदद कर रहा हैं, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी आवाज बन रहा हैं, उससे साफ हो गया है कि आज का भारत, अमेरिका, रूस या फिर चीन जैसे किसी देश के साथ चलने को मजबूर नहीं हैं। इसके विपरीत वो अपना ही एक अलग खेमा बना चुका है, जो अविकसित और विकासशील देशों का नेतृत्व कर रहा हैं और इन देशों की आवाज बन रहा हैं।
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