कहते हैं न कि जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है, वैज्ञानिक शक्ति ने एक बार पुनः इस बात को चरितार्थ कर दिया है। जानलेवा और हीन दृष्टि से देखी जाने वाली एड्स बीमारी के इलाज के लिए आज तक कोई दवा और इलाज नहीं बन पाया है। यह दुर्भाग्य की बात है कि बीते 10 साल में केवल भारत में कुल 17 लाख लोग एड्स के शिकार में आए हैं। वहीं लाइलाज बीमारी एड्स का रामबाण इलाज अब शायद दूर नहीं क्योंकि शोधकर्ताओं ने इसके खात्मे के लिए लगभग वैक्सीन बना ही ली है। इजराइल के शोधकर्ताओं की मुहिम और भरसक प्रयास अब रंग लाते नजर आ रहे हैं क्योंकि अब वो होता दिख रहा है जिसकी आस विश्व को लंबे समय से थी।
एड्स का होगा समूल नाश
कोरोना तो अब आया है, विश्व ऐसे कई संकटों और त्रासों से एक लंबे समय से जूझ रहा है जो इतने लोगों को तो प्रभावित नहीं करती जितनी कोरोना जैसी महामारी ने कर दिया। यूं तो कोरोना जैसी महामारी का भी इलाज और उससे लड़ने के लिए देर सवेर ही सही वैक्सीन तो आ ही गयी पर HIV एड्स एक ऐसी बीमारी है जिसके इलाज का आज तक न तो कोई शोध हो पाया और न ही उससे बचाव के लिए कोई दवाई बन सकी। इस पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस्राइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक टीके का निर्माण किया जिसकी एक खुराक एड्स का समूल नाश कर सकती है।
दरअसल, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने शरीर में मौजूद टाइप-बी वाइट ब्लड सेल्स के जीन Gene) में कुछ बदलाव किए, जिससे HIV वायरस पस्त हो गया। इस सफलता ने एक दिशा अवश्य दिखाई है कि एड्स जैसी बीमारी का भी इलाज अब दूर नहीं है। इज़राइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय (TAU) के बायो-इंजीनियरों ने एक नई तकनीक का प्रदर्शन किया है जिसका उपयोग मानव इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस (HIV) से संक्रमित रोगियों के इलाज के लिए किया जा सकता है। एचआईवी, जैसा कि हम जानते हैं, शरीर की एंटी-बॉडी निर्माण करने की शक्ति पर घात करता है जिसके बाद व्यक्ति एक्वायर्ड इम्यूनो डिफीसिअन्सी सिंड्रोम (एड्स) से संक्रमित होता है।
इस पूरे परीक्षण को डॉ. आदि बार्गेल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने टाइप-बी व्हाइट ब्लड सेल्स का इस्तेमाल किया। प्रक्रिया की बात करें तो इसमें मौजूद ये कोशिकाएं हमारे शरीर में वायरस और खतरनाक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करती हैं। ये व्हाइट ब्लड सेल्स अस्थि मज्जा में बनती हैं। व्यस्क होने पर रक्त के माध्यम से शरीर के अंगों तक पहुंचते हैं। वैज्ञानिकों ने इन बी कोशिकाओं के जीन को संशोधित करके एचआईवी वायरस के कुछ हिस्सों से संपर्क किया। इससे उनमें कुछ बदलाव आया। उसके बाद इन तैयार बी कोशिकाओं का एचआईवी वायरस से मुकाबला किया गया, तो वायरस टूटता हुआ दिखाई दिया।
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‘उपचार का परीक्षण भी किया गया’
डॉ. बरजेल ने कहा कि लैब में जिन मॉडलों पर इस उपचार का परीक्षण किया गया, उन्होंने बहुत अच्छे परिणाम दिखाए। उनके शरीर में एंटीबॉडी की संख्या भी काफी बढ़ गई और एचआईवी वायरस को खत्म करने में सफल रहे। यह शोध नेचर मैगजीन में प्रकाशित हुआ है। मेडिकल जर्नल ने अपने निष्कर्ष में इन एंटीबॉडी को सुरक्षित, शक्तिशाली और काम करने योग्य बताया है।
ऐसे में प्रथम दृष्टया यह तो तय है कि यह समूचे विश्व के लिए एक बड़ी खबर है क्योंकि बीमारी से उसमें भी ऐसी जानलेवा बीमारी से कोई भी दो चार होना नहीं चाहेगा। सभी निरोग रहें इसलिए तो स्वस्थ निरोगी काया का वरदान माँगा जाता है, ऐसे में एड्स जैसी बीमारी जो अब तक कई लोगों के प्राण निगल चुकी है उसका इलाज आना बहुत बड़ी बात है। यूं तो अभी परिक्षण का दौर है पर परिक्षण में सफलता से जो आशा जगी है वो महत्वपूर्ण है और निश्चित रूप से इस बार HIV AIDS के भी अंतिम दिन शेष हैं जैसे पोलियो के एक समय पर थे, वो भी ख़त्म हुआ और अब यह भी होगा।
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