विरोध बढ़ गए हैं. आये दिन ये देशव्यापी दंगो का रूप ले लेते हैं. अब ये खबरें हमारे दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनते जा रही हैं. सरकार ने किसी की बात नहीं सुनी तो विरोधियों ने मुंह उठा कर सड़क जाम कर दिया. अग्निपथ से समस्या है स्टेशन फूंक दी. पैगंबर से परेशानी हुई तो बस्तियां जला दी. CAA पसंद नहीं आया तो राजधानी को बंधक बना लिया. कृषि कानून नहीं जंचा तो दिल्ली बंद कर दिया. लोग या फिर भीड़ ऐसा क्यों कर रही है, इससे हमारा कोई लेना देना नहीं है. ये सरकार और उनलोगों के बीच की समस्या है. पर, किसी और की समस्या के कारण हमें समस्या नहीं होनी चाहिए. हमलोग तो गोरों से भी अपनी बात अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से मनवाते थे. सरकार तो फिर भी अपनी है. लोग अपने हैं, देश अपना है. संविधान और व्यवस्था अपनी है. फिर आखिर ऐसा क्या कारण है जो देश में आये दिन सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं. इसमें प्रथम दोष सरकार का है.
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सरकार का प्रथम दोष- संरचना समस्या
कोई भी कानून जनता पर लागू होने से पहले तीन प्रक्रियाओं से गुजरती है. प्रथम, कानून की बनावट. किसी चीज के लिए कोई कानून बनाना एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है. विधि स्वयं में पूर्ण होना चाहिए अन्यथा उसमें बहुत सारे ‘लूपहोल्स’ निकल आयेंगे जिसके न सिर्फ दूरगामी परिणाम होंगे बल्कि न्याय भी प्रभावित होता है. सरकार का पहला दोष यही है. केंद्र सरकार जो भी कानून बनाती है वो इतना अपूर्ण होता है कि समाज के कुछ वर्ग अपने भविष्य और उस कानून के परिणामों को देखकर सशंकित हो जाता है.
जब GST आया तब सरकार को मात्र एक साल के अन्दर ही उसमें 376 संशोधन करने पड़े. नोटबंदी के पहले 50 दिनों में ही 60 बार कानून बदलने पड़े. इसी तरह का बदलाव किसान आन्दोलन में करते हुए सरकार को भूमि विवाद का क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय तक करना पड़ा. अब अग्निपथ योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों की आयुसीमा भी 21 साल से बढाकर 23 साल तक करनी पड़ी. कहने का मतलब यह है कि सरकार को पहले यह समझना होगा कि कानून निर्मित कैसे करते हैं? इसके लिए सरकार को कानून मंत्रालय की कमान एक पेशेवर कानून के ज्ञाता राजनेता को सौंपनी होगी. अपने कानूनी पेशवरों को दुरुस्त करना होगा वरना ये समस्या तो आती रहेगी.
सरकार का दूसरा दोष- संवाद समस्या
कानून बनाने के बाद दूसरी समस्या उसे समझाने की समस्या है. CAA/NRC के कारण कितने लोग कंसंट्रेशन कैंप में भेजे गए? उत्तर है शून्य! लेकिन इसके कारण हुए दंगों में मारे गए लोगों का आंकड़ा कितना है? उत्तर है 50 से अधिक. दिल्ली में दंगे हुए. शाहीन बाग़ को बंधक बनाया गया. पूरे देश में जान माल की कितनी क्षति हुई इसका तो कोई आंकड़ा ही नहीं है. यही आलम किसान आन्दोलन में भी रहा और यही अब अग्निपथ में हो रहा है, बस आंकडे बदलते रहते हैं व्यथा सामान रहती है. कभी किसान नहीं समझते, कभी जवान नहीं समझते और अब युवा नहीं समझ रहे हैं. अतः सरकार को कानून पारित करते समय सभी वर्गों से राय लेनी चाहिए. उन्हें विश्वास में लेना चाहिए. जागरूकता कार्यक्रम चलने चाहिए और त्वरित रूप से उसके क्रियान्वयन हेतु नियम निर्मित होने चाहिए. उसको लागू करने वाले प्रशासकों को जनता के बीच जाना चाहिए. सरकार चाहे तो इसके लिए अपने पार्टी और घटक दलों के राजनीतिक संगठनों की सहायता ले सकती है. एक संतुलित मात्र में विपक्ष को भी विश्वास में लेना चाहिए.
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सरकार का तीसरा दोष- अनुपालन समस्या
हम चाहें कितनी भी मेहनत कर लें सभी को खुश नहीं रख सकते. अगर राम प्रजा को खुश रखेंगे, तो एक अच्छे पति नहीं बनेंगे और अगर एक अच्छा पति बनना है तो लोग उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे. सरकार को भी ये बात साफ़-साफ़ समझ लेनी चाहिए. एक बार अगर सबकी राय लेते हुए कानून बन गया तो उसका सम्मान होना चाहिए और जो न माने उसकी विधि सम्मत ‘ठुकाई’, क्योंकि अगर सरकार कानून वापस लेने का काम करती रहेगी तो लोग सरकार और संसद को सीरियसली नहीं लेंगे. उन्हें लगेगा कानून संसद में नहीं सड़क पर बनता है. इससे लोकतंत्र भीड़तंत्र बन जायेगा और सरकार रीढ़विहीन. विरोध के चलते कृषि कानून वापस हो गया. CAA/NRC भी वापसी के कगार पर हैं.
जनसंख्या नियंत्रण और सामान नागरिक संहिता भी इसी के डर से अधर में लटकी है. जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव का कानून भी इसी कारण दम तोड़ रहा है. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते सरकार की इस किंकर्तव्य वि मूढ़ता का क्या परिणाम होगा आप अंदाज़ा लगा सकते हैं? जनता सीधे सोचेगी कि सरकार डरपोक है और सड़क पर उतरकर, दंगे कर के, पुलिस स्टेशन फूंक के अपनी बात मनवाई जा सकती है. यहीं सोच खतरनाक है. इसी कारण दंगे और विरोध हमारे दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनते जा रहे हैं. लेकिन आपको नहीं पता इस भारत बंद, चक्का जाम, आगजनी और दंगों से देश को कितना नुकसान होता है. सरकार को त्वरित रूप से साहस, समन्वय और समझदारी का परिचय देते हुए इस प्रथा को रोकना चाहिए.
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