बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों ने ब्रांडेड दवाइयों और पेटेंट के नाम पर बड़ा खेल खेलकर पूरी दुनिया के दवा उद्योग में अपना प्रभुत्व जमाया हुआ है। पेटेंट के सहारे यह कंपनियां अपने प्रतिद्वंद्वियों और छोटी कंपनियों को दबाकर रखती हैं और इसका प्रतिफल यह होता है कि इनकी दवाइयां बहुत अधिक महंगी होती हैं। इन दवा कंपनियों ने लाभ कमाने के लिए महंगी दवाइयां बेचकर अथाह धन कमाने का धंधा ही बना लिया। लोग मरते रहते हैं लेकिन इनका मुनाफाखोरी का धंधा बंद नहीं होता। परंतु अब बड़ी फॉर्मा कंपनियों के इस गोरखधंधे की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। अमेरिकी अरबपति मार्क क्यूबन ने (Mark Cuban) फॉर्मा कंपनियों के प्रभुत्व का अंत करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा दिया।
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मार्क ने जेनेरिक दवाइयों के लिए उठाया कदम
जनरवरी 2022 में मार्क ने अमेरिकी घरों में कम लागत वाली जेनेरिक दवाइयां लाने के उद्देश्य से एक कंपनी की स्थापना की। क्यूबन ने अपनी इस कंपनी का नाम द मार्क क्यूबन कॉस्ट प्लस ड्रग कंपनी (MCCPDC) रखा। मार्क की MCCPDC डायेरक्ट टू कंज्यूमर कंपनी है, जो 100 से अधिक जेनेरिक दवाइयां छूट वाले मूल्य पर मुहैया कराने का काम करती हैं। हालांकि उनकी यह कंपनी अभी प्रारंभिक चरण में ही है। मार्क क्यूबन कहते हैं- “मैं इससे धन कमा सकता था, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा। मेरे पास पर्याप्त पैसा है। मैं इसके बजाए दवा उद्योग को हर संभव तरीके से बढ़ावा देना चाहता हूं।“
कौन हैं मार्क क्यूबन?
मार्क क्यूबन एक अमेरिकन उद्यमी और निवेशक हैं। 100 से भी अधिक कारोबार में वे अब तक निवेश कर चुके हैं। मार्क एक बास्केटबॉल टीम के भी मालिक हैं, जिसका नाम डलास मेवरिक्स है। इसके साथ ही क्यूबन 2929 एंटरटेनमेंट के सह मालिक हैं। मार्क अमेरिकन टीवी चैनल एबीसी के रियलिटी शो शार्क टैंक में मुख्य ‘शार्क’ में से एक हैं। क्यूबन की नेटवर्थ फोर्ब्स के मुताबिक 4 अरब डॉलर से अधिक है।
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क्यों जेनेरिक दवाइयां होती हैं सस्ती?
दरअसल, कंपनियों के द्वारा दो तरह की दवाईयां बनाई जाती हैं, जिसमें पहली हैं ब्रांडेड और दूसरी जेनेरिक। इन दोनों तरह ही दवाईयों का निर्माण एक ही तरीके से किया जाता है। अंतर होता है तो केवल ब्रांड का। केवल और केवल ब्रांड का नाम जुड़ने भर से दवाइयों की कीमतों में बहुत बड़ा अंतर आ जाता है और यह काफी महंगी हो जाती हैं। पेटेंट दवा को बाजार में लाने के लिए शोध, विकास, विपणन एवं प्रमोशन पर बड़ी राशि खर्च की जाती है, जिसके कारण यह महंगी हो जाती है। वहीं जेनेरिक दवा इसके मुकाबले काफी सस्ती होती है।
वे दवाइयां जिनके निर्माण या वितरण के लिए किसी पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती जेनेरिक दवाइयां कहलाती हैं। कई लोग यह मानते हैं कि सस्ती होने के कारण जेनेरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों की अपेक्षा कम होती है लेकिन सत्य यह नहीं है। जो कंपनियां जेनेरिक दवाइयों का निर्माण करती हैं उनके शोध, विकास, विपणन और प्रचार पर खर्च नहीं करना पड़ता। वहीं जब उस दवाई को कई कंपनियां बनाकर बेचने लगती हैं, तो प्रतिस्पर्धा के कारण कीमत और भी कम हो जाती है। यह जेनेरिक दवाइयों के मूल्य कम होने के मुख्य कारण हैं। विशेषकर गरीबों के लिए जेनेरिक दवा किसी वरदान से कम नहीं होती।
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भारत दे रहा है जेनेरिक दवाइयों को बढ़ावा
भारत में भी जेनेरिक दवाइयों को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से देशभर में जगह-जगह पर जन औषधि केंद्र खोले गए, जहां 80 से 90 प्रतिशत तक कम मूल्य में लोगों को दवाई उपलब्ध कराई जाती है। इन जन औषधि केंद्रों के माध्यम से अब तक आम जनता के 13 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है।
इसके साथ ही भारत बड़ी संख्या में जेनेरिक दवाओं का निर्माण और निर्यात भी करता है। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाइयों की कुल खपत का 20% भारत से निर्यात किया जाता है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और ब्रिटेन जैसे देशों में भारत में बनी जेनेरिक दवाइयों की मांग है।
फिलहाल, मार्क क्यूबन ने जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराने वाली इस कंपनी की शुरुआत करके बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींदें उड़ा दी हैं जो लोगों की जिंदगियों से खेलकर मुनाफाखोरी का धंधा चलाती आ रही हैं। ऐसे में वो दिन अब दूर नहीं जब इन बड़ी दवाई कंपनियों के प्रभुत्व का अंत हो जाएगा।