भारतीय राजनीति के समीकरण बदलने चले थे ओवैसी, और फिर बिहार में खेला हो गया

पार्टी का विस्तार छोड़कर ओवैसी को हैदराबाद बचाने पर ध्यान देना चाहिए!

Once, Owaisi was ready to change the dynamics of Indian politics. Then happened Bihar

Source: Amar Ujala

कहते हैं कि यथार्थ से अपरिचित मनुष्य जब ज्यादा बड़े सपने देखता है तो वो धड़ाम से नीचे गिर जाता है और उसके सपने चकनाचूर हो जाते हैं। देश की राजनीति में कुछ ऐसा ही AIMIM के साथ हुआ है। पार्टी के मुखिया और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी पार्टी के विस्तार के सपने संजोए बैठे हैं लेकिन एक अहम सत्य यह है कि उनके अपने ही नेता और विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दलों के अस्तबलों की शान बढ़ा रहे हैं और कुछ ऐसा ही बिहार की राजनीति में ओवैसी के साथ हुआ है।

दरअसल, बिहार में असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी में एक बड़ी टूट हो गई है और पार्टी के 5 में से 4 विधायक राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम चुके हैं और इसके साथ ही ओवैसी के AIMIM को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के सपने को बड़ा झटका लगा है। इसके बाद लालू यादव की पार्टी आरजेडी बिहार विधानसभा में नंबर वन पार्टी बन गई है।

जानकारी के मुताबिक तेजस्वी यादव खुद गाड़ी चलाकर चारो विधायकों शाहनवाज, इजहार, अंजार नाइयनी और सैयद रुकूंदीन को लेकर विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के चैंबर में ले गए। इसके बाद उन्होंने अपना समर्थन पत्र सौंप दिया। आपको बता दें कि अब AIMIM में सिर्फ उसके प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल ईमान ही रह गए हैं।

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हालांकि, इस टूट का असर नीतीश सरकार पर नहीं पड़ेगा। राज्य में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन जरूरी है। अभी NDA के पास 127 विधायक हैं। BJP (77 MLA) और JDU (45 MLA) को मिलकर ही 122 MLA हैं। जीतनराम मांझी की पार्टी HAM के 4 और एक निर्दलीय विधायक का भी समर्थन है, अगर वह वापस भी ले लेते हैं तो भी सरकार पूरी तरह सुरक्षित है लेकिन इस पूरे प्रकरण से सबसे ज्यादा असुरक्षित यदि कोई है तो वो AIMIM नेता असद्दुदीन ओवैसी ही हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार के पूर्वी इलाकों में 5 सीटें जीतकर ओवैसी की पार्टी ने RJD की मुसीबतें बढ़ाई थीं साथ ही कई सीटों पर RJD का वोट भी काटा था जिसके चलते ओवैसी की पार्टी वोटकटुआ से लेकर अनेकों आलोचनात्मक संज्ञाओं से संबोधित किया गया था। हालांकि बिहार चुनाव में ओवैसी एक बड़ा फैक्टर बन कर उभरे थे लेकिन एक कहावत है कि इंसान अपनी हद में रहे तो ही अच्छा है लेकिन ओवैसी कहा हद में रहने वाले।

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असद्दुदीन ओवैसी ने बिहार में मिली इस सफलता को अपनी शुरुआत बता दिया था और यह दावा किया था कि वो अपनी पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करेंगे। इसके बाद उन्होंने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों में भी अपने प्रत्याशियों को भी उतारा, हालांकि यहां ओवैसी का फैक्टर तनिक भी काम नहीं आया। इसके बावजूद ओवैसी बिहार की जीत से उत्साहित थे। उनकी प्लानिंग गुजरात से लेकर राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी चुनाव लड़ने की है लेकिन अब उनकी इस मुहिम को बिहार से ही झटका मिल गया है।

ओवैसी जिस बिहार की सफलता के दम पर फूल रहे थे और राष्ट्रीय राजनीति में जाने का दंभ भर रहे थे, अब उनके बिहार के उन्हीं विधायकों ने ओवैसी के प्लान की हवा निकाल दी है। बिहार के इस राजनीतिक प्रकरण ने ओवैसी को एक यह सबक भी दे दिया है कि ओवैसी साहब हैदराबाद के मुहल्ले के सांसद रहें और वहीं यह नफरत का बीज बोते रहे क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें कोई सफलता नहीं मिलने वाली है। इसके साथ सबक ये भी है कि आने वाले वक्त में उनके हाथ से उनका वो मोहल्ला भी छिन सकता है, इसलिए सबसे पहले ओवैसी को अपना किला यानी हैदराबाद बचाने पर ही ध्यान देना होगा।

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