जिस तरह आपको अस्तित्व बचने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है उसी तरह विश्व चलाने के लिए नागरिकों को संसाधन और सुविधा मुहैया करने के लिए तेल की आवश्यकता होती है। तेल पर करीब करीब अरब देशों का एकाधिकार है और तेल के इस क्रय-विक्रय पर पश्चिमी देशों का। भले ही वैश्विक तेल व्यापार का केंद्र पश्चिम से एशिया में स्थानांतरित हो गया हो, किन्तु तेल व्यापार अभी भी पश्चिमी मुद्रा मुख्यतः डॉलर के माध्यम से संचालित होता है।
इसका मतलब है कि कीमतें पश्चिमी बेंचमार्क का उपयोग करके निर्धारित की जाती हैं और विनिमय का माध्यम भी डॉलर रहता है। यह विसंगति एशियाई देशों को नुकसान में डालती है जो समय के साथ और भी बदतर होती जाएगी क्योंकि तेजी से विकास की सीढ़ी चढ़ते एशियाई देशों में अब तेल की मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।
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मुद्रा की मजबूती अमेरिकी डॉलर से पता लगाया जाता है
इसके साथ साथ मुद्रा कितनी मजबूत है इसका माप इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी डॉलर के सामने इसका मूल्य कैसा है? इसके साथ ही दुनिया भर के तेल व्यापार में इसके प्रभुत्व का माप कितना बड़ा है? इन दोनों घटनाओं ने मिलकर पेट्रो डॉलर नामक शब्द को जन्म दिया। पिछले कुछ दशकों से, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पेट्रो डॉलर को हटाना लगभग असंभव सा था। लेकिन, अमेरिका और पश्चिमी देशों के इस डॉलर जनित आर्थिक वर्चस्व को ताड़ने के लिए एक शानदार योजना है।
इस लेख में जानेंगे कि कैसे नमो सरकार विश्व के आर्थिक व्यवस्था डॉलर के वर्चस्व को ध्वस्त करने वाले है। इसके लिए उन्होंने भारत की वित्तीय प्रणाली में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की क्षमता का उद्घोष भी कर दिया हैं।
भारत आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस उद्देश्य के लिए, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालयों ने एक सप्ताह तक चलने वाले समारोह का आयोजन किया गया है। आयोजन के उद्घाटन के दौरान, पीएम मोदी ने जोर देकर कहा विश्व बाजार में भारत की वित्तीय प्रणाली के उत्पादों की स्थिति को बढ़ाने के लिए, भारत को अपने वित्तीय समावेशन प्लेटफार्मों के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। उन्होंने अन्य देशों में अपनी सेवाओं का विस्तार करके भारत की घरेलू सफलता को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बदलने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब हमारे मजबूत वित्तीय बाजारों और संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार की रीढ़ बनने का प्रयास करना चाहिए। पिछले 8 वर्षों में भारत की सफलता का हवाला देते हुए, पीएम मोदी ने कहा- “इस पर ध्यान देना आवश्यक है कि कैसे हमारे घरेलू बैंकों, मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला और व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए। हमने पिछले 8 सालों में दिखाया है कि अगर भारत सामूहिक रूप से कुछ करने का फैसला करता है, तो भारत दुनिया के लिए एक नई उम्मीद बन जाता है। आज, दुनिया हमें न केवल एक बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में देख रही है, बल्कि एक सक्षम, गेम-चेंजिंग, क्रिएटिव, इनोवेटिव इकोसिस्टम के रूप में हमें आशा और विश्वास के साथ देख रही है।“
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किसी भी समाचार संगठन ने पीएम मोदी के भाषण के बड़े अर्थ को डिकोड नहीं किया। जब से यूक्रेन-रूस संकट सामने आया है, पेट्रो डॉलर की वैधता प्रभावित हुई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रूस और दुनिया भर के अन्य देश अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए डॉलर का उपयोग करते हैं। जाहिर है, रूस पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका ने सोचा था कि वह रूस के चारों ओर अपना शिकंजा कसने में सक्षम होगा।
लेकिन, इस बार मामला अलग था। रूस ने अन्य विकल्पों की तलाश शुरू कर दी। डॉलर को दरकिनार करने के लिए मोदी सरकार ने रुपये-रूबल व्यापार और रूस के साथ व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली के बारे में बातचीत शुरू की। इसी तरह रूस ने भी चीन को भी युआन-रूबल व्यापार में शामिल किया। दरअसल, डॉलर को पीछे छोड़ते हुए चीन और रूस ने अपने युआन-रूबल व्यापार में 1067 फीसदी की बढ़ोतरी की है।
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पेट्रो डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इंजन है
रूस, चीन और भारत के प्रतिरोध को देखते हुए, अमेरिका के लिए पेट्रो डॉलर की कमाई पर अपनी अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेट्रो डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था का इंजन है। तथ्य यह है कि अधिक से अधिक देश अब द्विपक्षीय व्यापार के लिए डॉलर को त्याग रहे हैं, इसका मतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका डॉलर के व्यापार से उत्पन्न होने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा खो देगा। इस नुकसान का एक बड़ा हिस्सा पेट्रो डॉलर के रूप में होगा, क्योंकि आधुनिक समय में एशिया पश्चिमी देशों के बजाय वैश्विक तेल व्यापार का केंद्र है। और वह भारत ही होगा जो इस खेल के नियम को निर्धारित करेगा।
हालांकि भारत के लिए आगे की राह आसान नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा खाली की जा रही जगह को भरने के लिए चीन से लड़ने के अलावा वित्तीय बाजार में भारत की वैधता अभी भी देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। वर्तमान में, भारतीय वित्तीय बाजार में UPI और Rupay Debit card जैसे अन्य उत्पादों का डंका बज रहा है लेकिन हमने अंतरराष्ट्रीय बाजार में खुद का विज्ञापन नहीं किया है। हालांकि रुपे ने कुछ पहल की है, लेकिन विश्व यूपीआई की मार्केटिंग अभी भी अज्ञात है। इसके लिए जब भारत के वित्तीय स्पेक्ट्रम के उत्पादों को उचित बाजार हिस्सेदारी हासिल करनी होगी, भारत अपनी शर्तों पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार को चलाने की स्थिति में होगा। और मेरा विश्वास करिए, यह बहुत तेजी से हो सकता है।
आगे का रास्ता आसान है। सबसे पहले, भारत को अपने वित्तीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में धकेलने की जरूरत है। तब उसे अपने उपभोक्ता आधार का लाभ उठाना चाहिए। देशों को डॉलर व्यापार में शामिल न होने के लिए भारत को नेतृत्व और लॉबिंग दोनों करने की जरूरत है। आरम्भ से ही डॉलर का तेल व्यापार में उपयोग किया गया है, जिससे यह पेट्रो डॉलर बन गया है। यह तभी रुकेगा जब देश डॉलर को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की योजना शुरू करेंगे। भारत ने इसकी शुरुआत कर दी है, अन्य देशों को इसका पालन करने की आवश्यकता है।