चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भागीदार हैं भारत के PPP

भारत में बैठकर फैला रहे है चीनी एजेंडा !

ppp

Source- TFIPOST.in

केंद्र सरकार ने 400 चार्टर्ड एकाउंटेंट और कंपनी सचिवों (सीएस) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है, जिन पर मानदंडों और नियमों का उल्लंघन करने और मेट्रो शहरों में चीनी मुखौटा कंपनियों को पुनः जिन्दा करने का आरोप है। यह कार्रवाई 2020 की गलवान झड़प के बाद चीन और चीनी कंपनियों के खिलाफ भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का नतीजा है। लेकिन, देश के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर आपका इस तथ्य से अवगत होना बहुत जरुरी है की देश में चीनी जासूसों का जाल बहुत गहरे तक पैठ बना चुका है। ये जासूस तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं। जरूरी नहीं की इन क्षेत्रों से आनेवाले लोग सामरिक स्तर पर चीन के हक़ में जासूसी कर रहें हैं लेकिन कहीं न कहीं ये सभी लोग चीन के पक्ष में नैरेटिव अवश्य बनाते हैं।

और पढ़ें: चीन को पड़ी दुलत्ती, भारत-रूस ने तैयार कर लिया है अपना ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार कॉरिडोर’

मुख्यधारा की मीडिया

2016 से, चीन के विदेश मंत्रालय ने एशिया और अफ्रीका के प्रमुख समाचार नेटवर्कों के कम से कम सौ पत्रकारों की मेजबानी की है। पत्रकारों को आलीशान अपार्टमेंट, 50,000 रुपये का मासिक वजीफा और विभिन्न चीनी प्रांतों में महीने में दो बार मुफ्त पर्यटन जैसे काफी महत्वपूर्ण आकर्षण मिले हैं। इन पत्रकारों ने एक चीनी विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भाषा की कक्षाएं और डिग्री भी प्राप्त की। कार्यक्रम में भाग लेने वाले तीन भारतीय समाचार नेटवर्क द इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता और इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) थे। एक पत्रकार ने कथित तौर पर कहा कि अगर वे इस कार्यक्रम का लाभ पाना चाहते हैं, तो उन्हें चीन के बारे में केवल सकारात्मक कहानियां ही लिखनी चाहिए। कार्यक्रम में भाग लेने वाले इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता नरेंद्र अपूर्वा ने दावा किया कि भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद पर चीन को सकारात्मक रूप से चित्रित करते रिपोर्टिंग करने का निर्देश दिया गया।

भारतीय मुख्यधारा के मीडिया ने हाल के दिनों में विवादास्पद मुद्दों पर चीनी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए चीनी मुख्यपत्रों द्वारा प्रचार लेख प्रकाशित किए हैं। उदाहरण के लिए, हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने 13 दिसंबर, 2019 संस्करण में चीन सरकार के मुखपत्र चाइना वॉच डेली के प्रायोजन के तहत एक युआन शेंगगाओ द्वारा दो लेख प्रकाशित किए। लेखों का शीर्षक “दशकों की प्रगति पर प्रकाश” और “पीढ़ी के एक स्थान के भीतर अनुभव किए गए अद्वितीय परिवर्तन” थे। लद्दाख संघर्ष के दौरान, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) ने चीनी प्रतिष्ठान के लिए नैरेटिव बनाया, जिसके कारण संस्थान को भारतीय जनता के साथ-साथ सरकार से भी बड़ी फटकार मिला. हालांकि, महीनों बाद प्रसार भारती ने कहा कि वह संघर्ष के समय चीनी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए पीटीआई के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगा। ‘द हिन्दू’ का साम्यवादी प्रेम तो किसी से छुपा नहीं है। कभी-कभी मीडिया हाउस चीन की प्रत्यक्ष रूप से मदद करने के बजाय परोक्ष रूप से करते हैं। इस मॉडल में पाक के खिलाफ नरम रुख अपनाना, रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाना, खाड़ी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध खराब करने वाले लेख प्रसारित करना आदि शामिल हैं।

और पढ़ें:  चीनी रक्षा मंत्री ने आखिरकार वही स्वीकार किया जोकि हम पहले से जानते थे

पेशेवर लोग और संस्थाएं

पेशेवर लोगों के सम्मेलनों और बड़े दान के माध्यम से, चीन मानवता के खिलाफ अपने अपराधों को सफेद करने, अपनी स्वच्छ छवि पेश करने और भविष्य के विचारकों को चीनी विश्व-दृष्टिकोण के साथ प्रेरित करने का इरादा रखता है। उदहारण हेतु एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली थिंक टैंक को 2016 में कोलकाता में चीनी वाणिज्य दूतावास से लगभग 1.26 करोड़ रुपये के तीन अनुदान तीन चरणों में मिले- 29 अप्रैल 2016 को 7.7 लाख रुपये; 4 नवंबर 2016 को 11.55 लाख रुपये; और 31 दिसंबर 2016 को 10,683,761 रुपये। ओआरएफ को 1 दिसंबर 2017 को 50 लाख रुपये का अनुदान मिला।

ओआरएफ साउथ ब्लॉक में अपने दबदबे और ताकत के लिए जाना जाता है। हर साल यह “रायसीना डायलॉग” आयोजित करता है, जो मंत्रालय द्वारा प्रायोजित भारत का प्रमुख सुरक्षा संवाद है। इसी लीग में राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) आता है, जो सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व वाला एक गैर सरकारी संगठन है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरजीएफ को 2006-07 में चीनी दूतावास से 90 लाख रुपये का दान मिला था। कथित तौर पर, आरजीएफ ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार को समझाने के लिए कई शोध पत्र तैयार किए। आरजीएफ द्वारा किए गए अध्ययनों ने तर्क दिया कि भारत को चीन से ज्यादा एफटीए की जरूरत है, इसलिए, सरकार को मामले को आगे बढ़ाने में कोई देरी नहीं करनी चाहिए।

और पढ़ें:  ASEAN को चीन के जबड़े से निकाल लाया है भारत

राजनेता

अगर राजनेताओं का नाम लिया जाए तो उसमें सबसे बड़े नाम कांग्रेस और वामपंथी दलों से निकलकर आते हैं। वामपंथी दलों के लिए तो चीन एक आदर्श राष्ट्र की संकल्पना है और माओ पितामह स्वरुप वर्षों से चीनी प्रभाव धीरे-धीरे भारत के राजनीतिक वातावरण में भी प्रवेश कर गया है।

लॉ एंड सोसाइटी की रिपोर्ट द्वारा उजागर किए गए कुछ उदाहरणों में बताया गया कि कैसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (CPI-M) ने चीन की आलोचना या फटकार लगाने से परहेज करती है। गाँधी परिवार का चीनी प्रेम भी किसी से छुपा नहीं है। चाहे NGO के द्वारा फंडिंग का मामला हो या फिर उनके विषैले विचारों से प्रभावित होने की संभावना, कांग्रेस हमेशा चीनी साम्यवाद से संक्रमित दिखी है। सरकार को सजग हो जाना चाहिए अन्यथा ये लोग चीन को एक भारत में एक सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्थापित कर देंगे जो भारत की संप्रभुता के लिए खतरनाक होगा.

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFISTORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version