राज्य सभा चुनाव के नतीजों ने कर्नाटक में भाजपा की वापसी सुनिश्चित कर दी है

सीएम बसवराज बोम्मई के नेतृत्व पर संदेह नहीं करते!

PM Modi and Bommai

Source- TFI

कर्नाटक में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अभी से ही अपनी तैयारियों में लगी हुई हैं। भाजपा राज्य में वर्ष 2019 से सरकार में है लेकिन राज्य ईकाई में अंदरुनी कलह की खबरें सामने आती रहती है। अंदरुनी कारणों से ही बीएस येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और बसवराज बोम्मई को पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद भी कर्नाटक भाजपा में अंदरुनी कलह की खबरें सामने आती रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज एस बोम्मई अपनी पहली परीक्षा में सफल हुए हैं और इसके साथ ही आगामी चुनाव में सीएम फेस के लिए अपनी स्थिति मजबूत कर ली है।

दरअसल, कर्नाटक राज्यसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए उत्साहजनक रहे। प्रदेश की चार राज्यसभा सीटों में से तीन पर भाजपा अपना कब्जा जमाने में सफल रही। BJP के प्रत्याशी निर्मला सीतारमण, सीटी रवि और जग्गेश जीत दर्ज कर उच्च सदन में पहुंचने में कामयाब हुए। चौथी सीट कांग्रेस के खाते में गई। कांग्रेस के जयराम रमेश ने चौथी सीट पर अपना कब्जा जमाया। वहीं, जेडीएस को खाली हाथ ही रहना पड़ा। ध्यान देने वाली बात है कि कर्नाटक में तीसरी सीट पर भाजपा की जीत चौंकाने वाली रही, क्योंकि संख्या के हिसाब से भाजपा के खाते में दो ही सीटें आ रही थी। लेकिन बोम्मई के नेतृत्व में तीन सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी ने कमाल कर दिखाया। इस दौरान कांग्रेस और जेडीएस की खींचतान का सीधे तौर पर फायदा भाजपा को मिलता दिखा।

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कर्नाटक के 4 में से 3 सीटों पर भाजपा का कब्जा

कर्नाटक की चार राज्यसभा सीटों में दो पर भाजपा और एक पर कांग्रेस की जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी। असली जंग थी चौथी सीट को लेकर, जिसके लिए तीनों पार्टियां बीजेपी, जेडीएस और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर थी। इस दौरान कांग्रेस और जेडीएस एक रहते, तो वे इस सीट पर जीत हासिल कर सकते थे। परंतु इनके बीच की आपसी तनातनी की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। दोनों पार्टियों की आपसी लड़ाई में भाजपा बाजी मार ले गई।

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विधानसभा सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 45 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता थी। चौथे उम्मीदवार को जिताने के लिए तीनों ही पार्टियों के पास पर्याप्त संख्याबल मौजूद नहीं था। हालांकि, क्रॉस वोटिंग के कारण भाजपा के लहर सिंह सिरोया ने बढ़त बना ली। दरअसल, वोटिंग के दौरान जनता दल (सेक्युलर) के दो विधायकों ने ‘क्रॉस वोटिंग’ की। कोलार से विधायक श्रीनिवास गौड़ा और गुब्बी से विधायक एस आर श्रीनिवास पर पार्टी को धोखा देने के आरोप लगाए गए । यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गौड़ा पहले ही जेडीएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने की बात कह चुके हैं।

राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से एक दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने जेडीएस विधायकों को एक खुला पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवार मंसूर अली खान के पक्ष में वोट डालने की अपील की थी। पत्र में कहा गया कि उनकी जीत दोनों पार्टियों की ‘धर्मनिरपेक्ष विचारधारा’ की जीत होगी।

कांग्रेस-जेडीएस की तनातनी से होगा भाजपा को लाभ

बताते चलें कि राज्यसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए अच्छे संकेत लेकर आए हैं। येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने और बोम्मई को कमान सौंपे जाने के बाद राज्य में किसी भी तरह का हुआ यह पहला चुनाव था, जिसमें पार्टी के प्रदर्शन ने केंद्रीय नेतृत्व को भी खुश कर दिया। तीन सीटों पर कब्जा जमाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की राजनीतिक रणनीति और सूझबूझ की सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्यसभा के लिए तीन सदस्यों को निर्वाचित कराने में आपके प्रयास अनमोल थे। कर्नाटक का यह योगदान अच्छे कार्यों को प्रेरित करेगा। इसके अलावा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह ने भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री को जीत के लिए बधाई दी।

गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा चुनावों में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है। सात से आठ महीनों में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में इससे पहले हुए यह राज्यसभा चुनाव, विधानसभा चुनावों के लिए बड़ा संदेश लेकर आए हैं। राज्यसभा चुनावों में जिस तरह से कांग्रेस और जेडीएस के बीच तनातनी देखने को मिली है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विधानसभा चुनाव में यह दल एक साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे और भाजपा फिर से बाजी मार ले जाएगी।

कांग्रेस और जेडीएस के बीच जारी अंदरुनी कलह को भाजपा एक अवसर के तौर पर देख रही है। राज्यसभा चुनावों में तो भाजपा को इसका लाभ मिला ही। वहीं, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और जेडीएस अलग राहों पर चली, तो वोट बंटने के कारण भाजपा के लिए सत्ता में वापसी का रास्ता और आसान हो सकता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की सियासत आने वाले समय में क्या मोड़ लेती है?

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