यह सत्य है कि पश्चिमी देश सभी मानकों में हमेशा पुरुष प्रधान देश की आड़ में महिला विरोधी भारत को खूब ट्रोल करते हैं। इस ट्रोलबाज़ी को भारतीय रहवासियों ने भी जमकर सराहा। लेकिन अब स्वयं न्यायलय ने एक ऐसी बात कह दी है जिसके बाद वर्षों से चली आ रही पुरुषों के प्रति जबरन आरोप मढ़ने की कवायद पर पूर्ण विराम लगता दिख रहा है। केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि सभी बलात्कारों को लिंग तटस्थ अपराध माना जाना चाहिए, न कि उसे केवल महिला पीड़ित-पुरुष आरोपी परिदृश्य में देखना चाहिए।
दरअसल, केरल उच्च न्यायालय में एक बच्चे की कस्टडी को लेकर तलाक की सुनवाई के विवाद के दौरान जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक ने अदालत में मौखिक रूप से यह टिप्पणी की। विषय तब सामने आया जब महिला ने दावा किया कि उसके पूर्व पति पर भी एक बार बलात्कार का आरोप लगाया गया था, इसी को आधार बनाते हुए महिला ने यह सुझाव देते हुए कहा कि वह बच्चे की देखभाल करने के लिए उपयुक्त नहीं है। जिस पर, उस पुरुष पक्ष के वकील ने कहा कि, “वह इस समय जमानत पर बाहर हैं और उन बलात्कार के आरोपों की कभी पुष्टि नहीं हुई। उन पर शादी का झांसा देकर एक महिला से शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था।”
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उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान
इसी के बाद जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक ने सुनवाई के दौरान कहा कि, “धारा 375 एक लिंग-तटस्थ प्रावधान नहीं है। यदि कोई महिला शादी के झूठे वादे के तहत किसी पुरुष को धोखा देती है, तो उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन एक पुरुष पर उसी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। यह किस तरह का कानून है? इसे लिंग-तटस्थ होना चाहिए।”
यह बात सच है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए Feminism वाली नौटंकी शुरू होती है पर जब बात वास्तविकता में समानता की आती है तो इन मुद्दों पर एकतरफा पुरुष पर आरोप मढ़ दिए जाते हैं। इसी को संदर्भित करते हुए जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक ने अपनी बात कही कि समान रूप से न्याय मिलना आज के समय की मांग है।
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रिपोर्ट के मुताबिक
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अनुसार, एक पुरुष एक महिला के साथ बलात्कार करने का दोषी है यदि वह उसका पति नहीं है और उसकी सहमति इसलिए दी गई है क्योंकि वह मानती है कि वह एक और पुरुष है जिससे वह कानूनी रूप से विवाहित है या खुद को कानूनी रूप से विवाहित मानती है। इसे आमतौर पर “शादी के बहाने बलात्कार” के रूप में रिपोर्ट किया जाता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने जस्टिस मुस्ताक ने इसी तरह की टिप्पणी की थी, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी महिला की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन होता है, तो शादी के वादे पर शारीरिक संबंध स्थापित करना बलात्कार के बराबर होगा। 2018 में, एक एनजीओ, क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बलात्कार के खिलाफ मौजूदा कानूनों को चुनौती दी थी जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और पुरुषों को बलात्कार पीड़ित नहीं मानते हैं। वर्तमान कानूनों के अनुसार, केवल महिलाओं को बलात्कार का शिकार माना जाता है।
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न्यायिक व्यवस्था में तब ही विश्वास सुदृढ़ हो पाता है जब वो न्योचित ढंग से काम कर रहा हो। चूंकि, न्यायिक व्यवस्था संविधान अनुरूप चलती है तो इसमें सबसे बड़ा कारण वो कानून हैं जो पुरुष के लिए तो एप्लीकेबल होते हैं पर महिला वर्ग के नाम के आगे आते ही कुछ बाध्यता आड़े आ जाती हैं जिस पर जस्टिस मोहम्मद मुस्ताक ने अपनी बात रखी और बेहद प्रभावी ढंग से रखी।