एक देश जो पूरी दुनिया में स्वयं को बाप समझता है लेकिन उसकी हरकतें हर वैश्विक मामले में किसी पंचायती चाची की तरह कूद पड़ने की हैं। अपने आप को यह देश अधिक महत्व तो देता ही है बल्कि उसे यह भ्रम भी है कि वो जैसा कहेगा पूरी दुनिया वैसा ही करेगी लेकिन भारत के सामने इस वैश्विक पंचायती चाची की धज्जियां उड़ जाती है। अब आप भी सोच रहे होंगे कौन है यह देश जो इतना बिलबिलाता रहता है, चीन? नहीं, पाकिस्तान? बिल्कुल नहीं, तुर्की? नहीं, हम बात कर रहे हैं खोखली आर्थिक महाशक्ति अमेरिका की, जिसे भारत एक के बाद एक झटके देता जा रहा है और भारत इस कथित महाशक्ति को नया झटका AMCA इंजन को लेकर भी दे सकता है।
अमेरिका की हरकतें सभी को पता है- उसका ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे उसने ठगा नहीं। इसका अंजाम रूस-यूक्रेन युद्ध में भी विश्व ने देख ही लिया, जहां अमेरिका और नाटो देशों ने यूक्रेन को अकेला छोड़ रखा है। अमेरिका दक्षिण-एशिया में भारत के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है लेकिन भारत इसको लेकर सतर्क है। दरअसल, अमेरिका ने जेट इंजन प्रौद्योगिकी के विकास पर भारत के साथ सहयोग करने के लिए एक बार फिर प्रस्ताव दिया है जिसका उपयोग भारत के भविष्य के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) को शक्ति प्रदान करने के लिए किया जा सकता है।
जेट इंजन के दुनिया के अग्रणी निर्माताओं में से एक अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रिक (GE) ने भारतीय एजेंसियों के साथ 110kn थ्रस्ट इंजन के सह-विकास के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। खबरों की मानें तो AMCA इंजन पर सहयोग के लिए अमेरिका की GE, फ्रांस के Safran और UK के Rolls Royce के साथ विचार किया जा रहा है और तीनों में से किसी एक के साथ करार हो सकता है। अब यहीं से शुरू होती है वैश्विक चाची की हार की कहानी।
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बाइडन हाथ मलते रह जाएंगे
अमेरिका और राष्ट्रपति जो बाइडन चाहते हैं कि यह डील हो जाए जिससे भारत के डिफेंस सिस्टम में अमेरिका की दखलंदाजी बढ़े लेकिन एक बात ध्यान रखनी होगी कि भले ही अमेरिका डील कर ले लेकिन उसकी मंशा किसी बनिए की तरह है, न कि मित्र की। अमेरिका चाहता है कि उसका माल बिके, भले कोई देश उसका शत्रु क्यों न हो और भारत भी यह बात अच्छे से समझता है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि 99 फीसदी संभावनाएं हैं कि भारत AMCA इंजन को लेकर अमेरिका की डील को नमस्ते कह दे।
इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि भारत का यूरोप में एक सच्चा मित्र फ्रांस है जिसे अमेरिका लगातार नीचा दिखाता रहा है। फ्रांस की ऑस्ट्रेलिया के साथ न्यूक्लियर पावर डील होने वाली थी लेकिन अंत समय में अमेरिका ने अपने सगे वाले चाटुकार यानी UK के साथ मिलकर ऑस्ट्रेलिया को एक ऑकस नामक संगठन के आधार पर ट्रैप में फंसाया और नतीजा ये हुआ कि वो ऑस्ट्रेलिया की डील फ्रांस से हटकर अमेरिका के पास चली गई। इसी तरह लगातार अमेरिका फ्रांस के डिफेंस सिस्टम के व्यापर को कम करने की कोशिश कर रहा है जिससे फ्रांस गुस्से में है।
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फ्रांस के साथ हो सकती है डील
वहीं, AMCA जेट इंजन के प्रस्ताव में एक नाम फ्रांस की कंपनी Safran का भी है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भारत अमेरिका के प्रस्ताव को ठुकराते हुए फ्रांस के साथ डील कर सकता है। इसकी एक अहम वजह यह भी है कि जब पूरी दुनिया कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ थी उस वक्त फ्रांस भारत के साथ खड़ा था। इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर फ्रांस खुलकर भारत का समर्थन करता दिखाई देता है और यह दिखाता है कि फ्रांस असल में भारत का एक सच्चा मित्र है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी समय-समय पर यह साबित भी करते रहे हैं।
फ्रांस ने हमेशा भारत के साथ दोस्ती निभाई है। इसी का नतीजा है कि अमेरिकी लड़ाकू विमानों के सामने भारत ने फ्रांस के राफेल विमानों को अधिक महत्व दिया। वहीं, अनेकों विवादों के बावजूद फ्रांस ने भारत को कम कीमत में अधिक फीचर्स के साथ राफेल बेचे। अमेरिका की नीति बस व्यापार की रही। भारत को फ्रांस एक व्यापारिक राष्ट्र की तरह देखता है, जबकि अमेरिका भारत को एक उपभोक्ता मुल्क ही समझता है। ऐसे में भारत प्रत्येक मुद्दे पर फ्रांस को अमेरिका के बदले ज्यादा तरजीह देता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि भले बाइडन पीएम मोदी के सामने झुक जाएं और कहें कि- जहांपनाह तुस्सी ग्रेट हो, AMCA कबूल करो, तब भी भारत अमेरिका के साथ डील नहीं करेगा बल्कि उसकी प्राथमिकता उसका सच्चा साथी फ्रांस ही होगा।
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