बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। शिवसेना के संजय राउत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। राष्ट्रीय प्रवक्ता, शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक और अनेकानेक फजीहत कराने के बाद मिले राज्यसभा सांसद के लॉलीपॉप को लिए संजय राउत शिवसेना की डूबती नाव का सबसे बड़ा कारक बन गए। बगावती होना उद्धव ठाकरे के बस की बात नहीं थी, ये तो राउत जैसे नेताओं की छत्रछाया थी जो उन्हें इस बुद्धि तक ले पहुंची कि “महाविकास अघाड़ी” बना सरकार बनाई जाए।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे शिवसेना की ऐसी स्थिति आन पड़ी है कि अब आपसी सरफुटव्वल के परिणामस्वरूप अंततः चार ही लोग पार्टी में बचे रह जाएंगे और गाएंगे “जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे।”
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सियासी उठापटक से बहुत कुछ साफ हो गया है
दरअसल, महाराष्ट्र में चल रही सियासी उठापटक ने एक बात प्रमाणित कर दी है कि संजय राउत जैसे नेताओं की अवसरवादी सोच ने अब उन्हें शिवसेना समेत ख़त्म करने का फुलप्रूफ प्लान बना लिया है। जिस बड़ी संख्या में धड्ड्ले से हर सुबह शिवसेना के विधायक गुवाहाटी कूच कर रहे हैं उससे यह तो प्रदर्शित हो रहा है कि महाविकास अघाड़ी सरकार अपने अस्तित्व को अब बचाने में संभव नहीं है। एकनाथ शिंदे उन सभी बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे हैं जो हिंदुत्व की जड़ों को खोखला कर चुकी उद्धव ठाकरे की आज की शिवसेना से रुष्ट हैं।
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2019 के बाद शिवसेना के मुखपत्र सामना को विषैला पत्र बनाने वाले इन्हीं राउत ने पूरी शिवसेना की मूल वैचारिक शक्ति पर घात कर उसका समूल नाश कर दिया था। यह शिवसेना के अस्तित्व का नाश करने और उसे सत्ताविहीन करने की ओर उसी दिन से अग्रसर हो चुके थे जब से सावरकर को कोसने वाले बयानों को शह देने वाले यही शिवसेना के नेता सामने आए थे। एक के बाद एक विचार सेक्युलर हो चला था, बालासाहेब ठाकरे की हिंदुत्व के स्तम्भों पर बनी शिवसेना इतनी बुरी तरह बदलेगी इसका अनुमान किसी को नहीं था।
अघाड़ी गठबंधन के पहले दिन से शिवसेना का एक धड़ा उसके विपक्ष में ही रहा। पार्टी में रहने की विवशता के चलते यह उबाल इतना जगजाहिर नहीं हुआ पर आंतरिक रूप से एकनाथ शिंदे जैसे नेता और उनके सरीके कार्यकर्ता विरोधभासी होते अमूमन दिख ही जाते थे। इस पूरे घटनाक्रम में मूल दुःख यही था कि वैचारिक अस्तित्व से समझौता कर शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा से गठबंधन कर सरकार बना ली केवल और केवल मुख्यमंत्री बनने के लिए। यह स्वार्थ निहित राजनीति लंबे समय तक नहीं टिकती यही कारण है कि देर सवेर ही सही शिवसेना में बंटे दो धड़े अब सरेआम हो गए हैं।
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अनेक घटनाक्रम का जुड़ाव शिवसेना वाली सरकार से रहा
आदित्य ठाकरे का दिशा सालियान मर्डर केस में नाम आना, फिर सुशांत सिंह राजपूत की असामयिक मृत्यु और उस जांच पर महाराष्ट्र सरकार का रुख, कंगना रनौत के घर पर बुलडोज़र की द्वेषपूर्ण कार्रवाई ऐसे अनेक घटनाक्रम रहे जिसका जुड़ाव शिवसेना वाली सरकार से रहा। यह सभी मुद्दे कई बार शिवसेना और राज्य की सरकार में टूट का कारक बने पर तब यह नहीं हो पाया।
अब शिवसेना के हाथ से स्थिति बड़ी बदतर ढंग से निकलती जा रही है, यही कारण है कि सीएम उद्धव ठाकरे ने बीती शाम अपना सरकारी आवास “वर्षा” खाली कर अपने निज निवास “मातोश्री” शिफ्ट हो गए। शिवसेना की हार सुनिश्चित करने वाले यही नेता जिनमें प्रमुख रूप से उद्धव, आदित्य ठाकरे और संजय राउत शामिल हैं, अंततः यही तीन और एक प्रियंका चतुर्वेदी बचेंगी और साथ ही सारे विधायक और सांसद बागी हो चुके होंगे। यही कारण है कि संजय राउत विद 3 अदर्स के साथ “एकला चोलो रे” गाते जल्द ही दिखेंगे क्योंकि पार्टी में बचेंगे ही उतने जन।
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