क्या नसीरुद्दीन शाह और फरहान अख्तर पर हिंसा भड़काने का मामला दर्ज नहीं होना चाहिए?

'हिंसा भड़काने' में इनके जहरीले बयानों का भी बराबर का योगदान है!

शाह

Source- TFI

भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मी की टिप्पणी को लेकर कट्टरपंथी लगातार बवाल मचा रहे हैं. देश के कई राज्यों में इसे लेकर हिंसा देखने को मिल रही है. हर शुक्रवार को पत्थरबाजी भी देखने को मिल रही है! हाल ही में कुछ इस्लामिक देशों ने भी इसे लेकर सवाल उठाए थे, लेकिन उनके सवाल उठाने के मूल में तेल था. अब वो भी इस मामले पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं लेकिन भारत में इस्लामिस्टों को अभी भी चैन नहीं है. इस मामले पर कट्टरपंथियों के हिमायती कुछ अभिनेता भी अपनी कुंठा प्रदर्शित करते दिख रहे हैं. हाल ही में नसीरुद्दीन शाह और जावेद सुपुत्र फरहान अख्तर ने भी इस मामले पर अपनी ओछी मानसिकता जाहिर कर दी. ‘सर तन से जुदा गैंग’ के समर्थन में उतरे नसीरुद्दीन शाह और फरहान के बयान के बाद देश के कई हिस्से में बीते शुक्रवार को जबरदस्त हिंसा देखने को मिली.

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दरअसल, शुक्रवार की नमाज़ के बाद यूपी, रांची और बंगाल समेत देश के कई हिस्सों में भारी अराजकता देखने को मिली. कट्टरपंथियों ने जमकर आगजनी किया, पत्थरबाजी की और लोगों को निशाना बनाया. ऐसी परिस्थिति में किसी भी तरह का बयान देने से पहले लोगों को हजार सोचना चाहिए, लेकिन इन्हें तो मीडिया की लाइमलाइट में बने रहना है. ‘विवादों के राजा’ नसीरुद्दीन शाह ने नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “जहर को रोकने” के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए. अपने एक इंटरव्यू में शाह ने खानों की चुप्पी के बारे में कहा, “मैं उनके लिए नहीं बोल सकता. मैं उस स्थिति में नहीं हूं जिसमें वे हैं. मुझे लगता है कि उन्हें लगता है कि वे बहुत अधिक जोखिम उठा रहे होंगे. लेकिन मुझे लगता है कि वे ऐसी स्थिति में हैं जहां उनके पास खोने के लिए बहुत कुछ है. मेरे पास खोने को कुछ नहीं इसलिए में बोल सकता हूँ.”

उसके बाद हाल ही में कश्मीरी हिंदुओं के पलायन को उन्होंने काल्पनिक बता दिया. जिसके बाद भी जमकर बवाल देखने को मिला. हालांकि, इससे पहले इन्होंने ही मंझे हुए कलाकार अनुपम खेर को जोकर बताया था और मुगल आक्रांताओं को रिफ्यूजी! ऐसे में इस ‘मुल्ला’ नसीरुद्दीन से शांति और समझदारी की आशा कैसे की जा सकती है? लेकिन कोई इन महाशय से यह पूछे कि ऐसी परिस्थिति में उन्होंने जो जहरीले बयान दिए हैं, क्या वह आग में घी डालने जैसा नहीं है? और जिस आग में यह जनाब घी डाल रहे हैं उसमें कितनी जिंदगियां जलेगी, उसका अंदाजा इन्हें बिल्कुल भी नहीं है!

हालांकि, इस सूची में वह अकेले नहीं हैं. फरहान अख्तर ने भी नूपुर मामले पर जहर उगला. भाजपा द्वारा उन्हें सस्पेंड किए जाने और माफी मांगने के बावजूद इस महोदय ने ट्वीट किया, “ज़बरदस्ती की माफ़ी का क्या मतलब”. ध्यान देने वाली बात है कि फरहान के ट्विटर पर 12 मिलियन के करीब फॉलोवर्स हैं और जब ऐसा व्यक्ति अपनी ओछी मानसिकता को प्रदर्शित करते हुए ऐसा घटिया ट्वीट करे, तो दंगों को भड़काने के लिए यह भी उतना ही जिम्मेदार है जितना आगजनी और पथराव करने वाले. ऐसे में दंगे को भड़काने और देश की शांति और सौहार्द में आग लगाने वाले ऐसे विकृत मानसिकता वाले लोगों को इलाज जरूरी है. इन पर दंगा भड़काने के आरोपों के तहत मामला दर्ज कर ऐसी कार्रवाई करनी चाहिए कि देश की शांति से समझौता करने वाले ये कुंठित लोग दोबारा जहर उगलने से पहले 50 बार सोचें!

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