कर्नाटक की राजनीति में पिछले काफी समय से बवाल मचा हुआ है। राज्य में बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही है और कर्नाटक विकास की बुलंदियों पर पहुंच रहा है। लेकिन विपक्षी पार्टियों को तो राज्य के विकास से कोई मतलब नहीं है, उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति करनी है और उसके लिए वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं। कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां जोर-शोर से अपनी तैयारियों में लगी हुई है।
हाल ही में कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विदेशी बता दिया था और उन्होंने यह भी कहा था कि ये लोग आर्यन हैं जो कभी भारतीय थे ही नहीं। उससे पहले उन्होंने बीफ का मुद्दा उठाया था और कहा था कि वो हिंदू हैं और उन्होंने अभी तक बीफ नहीं खाया लेकिन चाहें तो वो बीफ खा सकते हैं, यह उनकी मर्जी है। अब इसी सिद्धारमैया ने कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य संचालित स्कूलों के पाठ्यक्रम बदलाव पर बनाई गई समीक्षा समिति को भंग किये जाने पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है।
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समीक्षा समिति को कर दिया गया भंग
दरअसल, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने 4 जून को पाठ्यपुस्तक समीक्षा समिति को भंग कर दिया। साथ ही कहा है कि पाठ्यपुस्तक समीक्षा के लिए नई समिति के गठन का सवाल ही नहीं उठता। बता दें कि इस विवाद के पीछे की वजह यह है कि पाठ्यपुस्तक में 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना को लेकर त्रुटिपूर्ण सामग्री शामिल करने और कवि कुवेम्पु का अपमान करने का भी आरोप है। इसे लेकर संतों ने सीएम बोम्मई को पत्र भी लिखा था। वहीं, सीएम बोम्मई के फैसले की आलोचना करते हुए कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने कहा, “यह संशोधित पाठ्यपुस्तक है जिसे वापस लेने की जरूरत है, न कि उस समिति ने जो पहले ही अपना एजेंडा पूरा कर चुकी है। यदि पूर्वाग्रह से ग्रस्त अध्यक्ष को हटा दिया जाता है, तो हम उनकी समिति द्वारा संशोधित पाठ्यपुस्तक को कैसे स्वीकार कर सकते हैं?”
ध्यान देने वाली बात है कि कर्नाटक में कक्षा 1 से 10 तक की स्कूली पाठ्यपुस्तकों को पिछली बार 2017-18 में संशोधित किया गया था, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तहत 2014 में शुरू हुई एक व्यापक कवायद के बाद हुई थी। विषय विशेषज्ञों की कम से कम 27 समितियां उस प्रक्रिया का हिस्सा थी। वर्ष 2021 में, वर्तमान भाजपा सरकार ने उन पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया। कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसाइटी के अनुसार, इस अभ्यास में कक्षा 1 से 10 के लिए कन्नड़ भाषा की पाठ्यपुस्तकों और कक्षा 6 से 10 के लिए सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करना शामिल था।
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राज्य सरकार पर लगे थे कई तरह के आरोप
ज्ञात हो कि समिति का गठन रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता में सामाजिक विज्ञान और भाषा की पाठ्यपुस्तकों की जांच और उन्हें संशोधित करने के लिए किया गया था। भगवाकरण विवाद के मद्देनजर चक्रतीर्थ को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी थी। आलोचकों का कहना था कि पाठ्य सामग्री का “भगवाकरण” करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे आरोप लगे थे कि इस पाठन सामग्री से कर्नाटक के कई प्रसिद्ध कवियों, लिंगायत आस्था के संस्थापक और आजादी की लड़ाई लड़ने वालों आदि के बारे में दी गई जानकारी या तो पूरी तरह हटा दी गई या फिर उसमें कई खामियां डाल दी गई और इसके बदले आरएसएस के संस्थापक का भाषण इस पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया ताकि कर्नाटक के बच्चों का भगवाकरण किया जा सके।
ऐसे तुच्छ आरोपों पर कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश का कहना है कि संशोधित पुस्तकों के उपलब्ध होने से पहले ही लगाए गए कई शुरुआती आरोप निराधार थे। भगत सिंह, टीपू सुल्तान और श्री नारायण गुरु जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक आंकड़ों पर कोई सबक नहीं छोड़ा गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि कक्षा 4 के पर्यावरण अध्ययन पाठ में कवि कुवेम्पु पर संक्षिप्त प्रोफ़ाइल के बारे में भी शिकायत थी, लेकिन वह पुस्तक समीक्षा का हिस्सा नहीं थी।
पूरा हो गया था समीक्षा समिति का कार्य
अब आप सोच रहे होंगे कि पाठ्यपुस्तकों में इतने छोटे-मोटे संशोधनों से इतना बवाल क्यों उठ रहा है? दरअसल, हालात उस समय बिगड़ गए जब 1 जून को पुलिस ने तुमकुर जिले के तिप्तूर में शिक्षा मंत्री के घर को कथित रूप से आग लगाने का प्रयास करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (कांग्रेस की छात्र शाखा) के समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया। हालात देखते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई ने शिक्षा मंत्री से पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी और 3 जून को एक बयान जारी किया, जिसमें बोम्मई ने कहा कि सरकार उस सामग्री की समीक्षा करने के लिए तैयार है, जिस पर आपत्तियां उठाई गई थी, इसलिए सरकार ने बसवन्ना पर धारा को उचित रूप से संशोधित करने का निर्णय लिया है जिससे किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। हालांकि, अब समीक्षा समिति को भंग किया जा चुका है।
सिद्धारमैया ने प्रश्न उठाया कि क्यों सरकार ने समीक्षा समिति को भंग कर दिया। इसके जवाब में सरकार ने बताया कि समीक्षा समिति का कार्य पूरा हो चुका था और इसलिए उसे भंग कर दिया गया। अब पाठ्यपुस्तक में ईसाई धर्म और इस्लाम के परिचय के साथ हिंदू धर्म का परिचय भी शामिल किया गया है, ताकि हिंदु बच्चों को दूसरे धर्मों के साथ-साथ अपने धर्म का भी ज्ञान हो। खबरों की मानें तो राज्य में लगभग 76% नई पुस्तकें प्रिंट हो चुकी है, 66% पुस्तकें विद्यार्थियों तक पहुंच गई है। लेकिन अपने राजनीतिक स्वार्थ में अंधी हो चुकी विपक्षी पार्टियां और उनके नेताओं के पास मुद्दों का अभाव हो गया है और ऐसे में वे ऐसी उल-फिजूल टिप्पणी कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं। सिद्धारमैया जो भविष्य में कर्नाटक का सीएम बनने का सपना संजोए बैठे हैं, उनका यह सपना हमेशा के लिए सपना ही रह जाएगा, क्योंकि उनके हालिया बयानों ने हमेशा के लिए कर्नाटक में उनका पता साफ कर दिया है।
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