दुनिया के पास विज्ञान है, तकनीक है, उद्यम है, कला और संस्कृति हैं, अरबीयों के पास क्या है? अरबीयों के पास तेल है। लगता है दीवार मूवी के इस संवाद को अरबीयों ने दिल पर ले लिया। एक सभ्यता और समाज के तौर पर अरब राष्ट्र ने मानवता के उत्थान में कोई उल्लेखनीय योगदान शायद ही दिया हो। अरबी प्रकृति कैसे संतान है? अरब समाज शायद प्रकृति की वो संताने हैं जो मानव विकास में बिना कोई योगदान दिए सिर्फ उसकी तेल संसाधनों पर पल रहे हैं।
तेल दोहन पर चल रहा है अरब राष्ट्र
तेल विश्व की आवश्यकता है जो अरब देशों के पास प्रचुर मात्रा में है और इसी के दोहन पर उनका राष्ट्र चल रहा है अन्यथा उनके पास आतंकवाद, धर्मांधता, रूढ़िवादिता, कट्टरता और प्रोपेगेंडा के अलावा कुछ भी देने को नहीं रहता। परंतु, उनके पास जो तेल है वह संपूर्ण विश्व की एक दुखती रग है। अमेरिका ने अरबीयों को अपने पाले में मिलाकर स्वयं को ब्लैकमेल होने से बचा लिया किंतु भारत जैसा सहयोग और सद्भाव के सिद्धांतों पर संबंध बनाने वाला देश खुद को नहीं बचा पाएं। दुनिया भर के मुसलमानों के साथ सबसे ज्यादा गलत अमेरिका, पाकिस्तान, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन जैसे देशों ने किया है लेकिन, अरबीयों की मजाल है जो इन देशों को एक शब्द भी कह दे क्योंकि वो यह जानते हैं कि दुनिया भर के मुसलमानों के साथ सबसे ज्यादा गलत भले ही पश्चिमी देशों ने किया हो किंतु उसमें शामिल मुस्लिम राष्ट्र भी रहे।
पर, भारत की बात अलग है। हिन्दूत्व ने यहां सहिष्णुता, सद्भाव और भाईचारा के इतने उच्च मानदंड स्थापित किए हैं कि वो प्रोपेगेंडा के माध्यम से भी भारत को एक इस्लामोफोबिक राष्ट्र के रूप में नहीं दिखा पाते। किंतु, नूपुर शर्मा के प्रकरण में उन्हें एक मौका दिया या अगर इसे इस प्रकार कहें कि नूपुर शर्मा की राई जैसे मामले को अरबीयों ने जानबूझकर पहाड़ बना दिया। 15 से अधिक मुस्लिम देशों ने भारत की आलोचना की। भारतीय सामान का बहिष्कार किया। हालांकि, भारत ने OIC के बयान को संकीर्ण और बेबुनियाद बता कर पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन फिर भी दबाव के कारण भाजपा को नूपुर शर्मा को निलंबित और नवीन जिंदल को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा। इस तुच्छ से विवाद को मुद्दा बनाकर मुस्लिम उम्माह की झलक दिखाई गई। जिहाद के नारे बुलंद किए गए। लेकिन अब हमें ये समझ में आने लगा है कि अरब राष्ट्रों की नाराजगी का मुख्य मुद्दा नूपुर शर्मा का बयान नहीं बल्कि भारत द्वारा ध्वस्त किए जा रहे उसका वर्चस्व और अभिमान था। नूपुर शर्मा के विवाद को लेकर अरब राष्ट्रों ने भारत को तेल न बेचने की परोक्ष रूप से धमकी दी। लेकिन, क्या आपको पता है कि एक ओर जहां अरब राष्ट्रों ने भारत को तेल न बेचने की धमकी दी वहीं दूसरी ओर अरबीयों के पिता श्री अंकल सैम ने दुनिया को एक देश से तेल न खरीदने की धमकी दी। उस राष्ट्र का नाम है- रूस।
अरब राष्ट्र रूस पर लगे प्रतिबंध से बहुत खुश थे। उन्हें लगा की अब वो जमकर मनमाने दाम पर अपना तेल बेचेंगे और खूब मुनाफा कमाएंगे। किन्तु, भारत और रूस ये दोस्त एक साथ मिलकर अरब और अमेरिका के तेल वर्चस्व को सदा सर्वदा के लिए खत्म करने की सुनियोजित योजना पर काम कर रहें हैं जिसका प्रतिफल अब दिखने लगा है।
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भारत-रूस तेल व्यापार में तेजी
रूस और भारत के बीच दशकों पुरानी दोस्ती आखिरकार अपनी पूर्ण आर्थिक क्षमता हासिल करने की ओर बढ़ रही है। अब, अरब देश नहीं बल्कि रूस भारत के ऊर्जा आयात का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2022 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 0.74 मिलियन बैरल तेल का आयात किया। मई के महीने में इसकी मात्रा 25 मिलियन बैरल शिपमेंट थी। इस रिकॉर्ड आपूर्ति के साथ रूस भारत को तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। रूस अब हमारी आयातित तेल आवश्यकताओं का 16 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति कर रहा है। यह महीने-दर-महीने के आधार पर एक महत्वपूर्ण उछाल है। इस साल अप्रैल में हमारे आयात बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी 7 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा मई के महीने में सऊदी अरब से प्राप्त प्रतिदिन 0.71 मिलियन बैरल से काफी बड़ा है। इसके अतिरिक्त 2021 की तुलना में शेष अरब दुनिया से भी तेल आयात को भारत ने कम किया है।
तेल अरब दुनिया के लिए रोटी और मक्खन है, सचमुच
यह आंकडे अरब जगत के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं क्योंकि उन बेचारों के पास एक तेल ही तो है. खाड़ी देशों के दायरे में आने वाला केवल दो प्रतिशत क्षेत्र ही कृषि योग्य है। यही कारण है कि यह क्षेत्र राजस्व के लिए तेल और संबंधित पेट्रोडॉलर पर बहुत अधिक निर्भर है। तेल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की आत्मा है, इसी कारण अरब देश अपनी मनमानी भारत जैसे राष्ट्रों पर थोप देते हैं। तेल के ही डर से सैद्धांतिक रूप से अरब राष्ट्रों से एकदम अलग होने के बावजूद संयुक्त राज्य अमेरिका ने अरब देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा।
किन्तु, भारत अब अरब तेल पर निर्भरता को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर रहा है. देश भले ही आज इस बात पर बहस कर रहा हो कि पैगंबर मुहम्मद पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी उचित थी या नहीं किन्तु, एक बात तो तय है कि अरबी भारत पर दबाव बनाने से कभी बाज नहीं आएंगे क्योंकि उनके पास तेल है.
ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी ने इस तथ्य को नुपुर शर्मा विवाद के बाद पहचाना बल्कि वो इस स्थिति को पहले ही भांप चुके थे. इसलिए पिछले कुछ वर्षों से वह और उनका मंत्रिमंडल तेल और गैस के वैकल्पिक स्रोत खोजने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जब भारत के अरब तेल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के संकल्प की बात आई तो मोदी सरकार ने रसद समस्याओं की भी परवाह नहीं की। 2021 में, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के तेल का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था।
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एक तो अरब जगत पहले से ही भारत से निराश था और फिर यूक्रेन-रूस संकट आया। प्रतिबन्ध के फलस्वरूप रूस ने रियायती मूल्य पर तेल की पेशकश शुरू की और भारत ने भी बिना किसी दबाव की परवाह किये इस अवसर को लपकने में को संकोच नहीं किया। इसने तेल के आधिपत्य को और अधिक प्रभावित किया। नूपुर शमा की टिप्पणियों पर उनकी आपत्ति भारत को डराने की असफल कोशिश थी। भाजपा ने नूपुर को निलंबित तो किया, लेकिन दूसरी ओर सरकार ने रूस के साथ तेल व्यापार बढ़ाने के प्रयास किए गए। उम्मीद है कि जून में रूस हमारी आयातित तेल आवश्यकताओं का 20 प्रतिशत पूरा कर लेगा। साम-दाम-दंड-भेद की कोशिशों के बावजूद, ये देश भारत-रूस तेल व्यापार को रोक नहीं सके। यह उनके लिए अप्रत्यक्ष चेतावनी है। या तो उन्हें अपनी औकात में रहना चाहिए या बाजार से बाहर निकालने की तैयारी करनी चाहिए।
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