मोहम्मद ज़ुबैर की वो कहानी जो TFI के अलावा कोई मीडिया पोर्टल नहीं जानता

TFI के कमेंट सेक्शन में ‘पैदा हुआ’ ज़ुबैर, वामपंथियों का ‘सरगना’ कैसे बन गया?

Mohammad Zubair

Source- TFI

टीएफ़आई प्रीमियम में आपका स्वागत है। आखिरकार वही हुआ, जिसकी प्रतीक्षा कई दक्षिणपंथियों को बहुत पहले से थी। फेक़ न्यूज़ का ध्वजवाहक, वामपंथियों का दुलारा, ऑल्ट न्यूज़ का सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर आखिरकार पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में इस व्यक्ति को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने हाल ही में जेल में डाला है। पुलिस का कहना है कि मोहम्मद जुबैर पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहा है। उसका व्यवहार घमंडी और असहयोग से परिपूर्ण है। जुबैर अपना फोन भी दिल्ली पुलिस को नहीं दे रहा है, उसका कहना है कि उसका वो फोन खो गया है जिससे उसने 2018 में ये ट्वीट्स किए थे।

अब आपके मस्तिष्क में प्रथम प्रतिक्रिया तो यही आएगी कि अरे! ये तो पक्का वामपंथी है यहीं नहीं करेगा तो कौन करेगा? परंतु जो दिखता है आवश्यक नहीं वही हो। मोहम्मद ज़ुबैर के इस खोखले व्यक्तित्व के पीछे एक ऐसा सच है, जिसे बताने की हिम्मत किसी भी मीडिया पोर्टल में नहीं है परंतु आज हम आपको उसी मोहम्मद ज़ुबैर के बारे में बताएंगे। जो आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं का विरोध करने के लिए जाना जा रहा है। जो दुनियाभर में भारत के विरुद्ध नफरत फैला रहा है। जो आज फ़ैक्ट चेक के नाम पर नफरत फैलाने में लगा है।

इस कथा का प्रारंभ हुआ 2012 में। ये समय था परिवर्तन का। जनता यूपीए के भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की अधपकी बिरयानी से तंग आ चुकी थी और वो सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालती थी। जन लोकपाल आंदोलन का भी अपना अलग प्रभाव पड़ चुका था और फिर निर्भया कांड ने तो मानो सब कुछ पलट दिया। इसी उथल-पुथल भरे दौर में, हताशा, निराशा और ना-उम्मीदी के दौर में, इसी तुष्टीकरण, भ्रष्टाचार और नेताओं के खोखलेपन के दौर में- कुल-मिलाकर कहें तो इसी ‘फ्रस्ट्रेशन’ के दौर में एक टेकनोक्रेट- अतुल मिश्रा ने सोशल मीडिया पर कदम रखा। अतुल मिश्रा हिंदुस्तान की बर्बाद होती अर्थव्यवस्था से, बर्बाद होती संस्कृति से, बर्बाद होती सांस्कृति धरोहर से, नेताओं के भ्रष्टाचार से, हिंदुओं के विरुद्ध चल रहे अभियान से, मुस्लिम तुष्टीकरण से परेशान थे- यह भी कह सकते हैं कि ‘फ्रस्ट्रेट’ थे- ऐसे में उन्होंने फेसबुक पर एक पेज बनाया ‘The Frustrated Indian’ वही फेसबुक पेज, जिसे अतुल मिश्रा ने पौधे की तरह सींचा आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है जिसे आप TFI Media के नाम से जानते हैं।

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केवल एक वर्ष के भीतर ही ‘The Frustrated Indian’ ने उन सभी लोगों को अपनी आवाज एवं अपने विचार रखने हेतु एक मंच दिया, जिन्हें बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों ने सिरे से नकार दिया था। प्रारंभ में इस प्लेटफ़ॉर्म से राहुल शर्मा, सुनील श्रीवास्तव, सुनील पाण्डेय, किशोर वी रामसुब्रह्मण्यम एवं शेफाली वैद्य जैसे गणमान्य सदस्य जुड़े हुए थे। इन्हीं लोगों ने TFI को ऐसा मंच बनाया जो Quora को टक्कर देता था।

यहीं से प्रारंभ हुई मोहम्मद ज़ुबैर की कथा।

अब आप सोच रहे होंगे कि मोहम्मद ज़ुबैर और TFI? ये कैसे संभव है? जैसा कि हमने बताया TFI के द्वार सभी के लिए खुले थे और इस पेज के विचारों से मोहम्मद ज़ुबैर भी काफी प्रभावित हुआ। फेसबुक पर दूसरे पेज भी थे जो थोड़ी-बहुत राजनीतिक चर्चा कर लेते थे लेकिन चाहे चुनाव के गहन विश्लेषण की बात हो- राजनीतिक उठा-पटक में आगे होने वाली संभावनाओं का सटीक अंदाजा लगाने की बात हो- जातियों के नाम पर होने वाली राजनीति का विश्लेषण हो- आर्थिक मामलों का विषय हो- वैश्विक राजनीति का विषय हो- सभी विषयों पर TFI का चुटीला टेक होता था- दूसरे पेजों पर यह कभी-कभार ही दिखता था। इसी दौर में ज़ुबैर बाबू TFI के कमेंट सेक्शन में आते थे। TFI की हर पोस्ट पर ज़ुबैर कमेंट करते। एक तरह से कहें तो वो TFI के फैन हुआ करते थे। सबसे सक्रिय व्यक्तियों में से एक था ये व्यक्ति- इतना कि कभी-कभी तो TFI के ‘विशेष कमेंट पुरस्कारों’ का विजेता भी मोहम्मद ज़ुबैर ही होता थी, जिसकी पुष्टि भी कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने की है –

अब ऐसे व्यक्ति को कितने दिन तक पेज के एडमिन अनदेखा करते? सभी ने ज़ुबैर से बातचीत प्रारंभ की और जल्द ही वो सभी का करीबी बन गया। वह भाजपा समर्थक तब भी नहीं था, परंतु वह कांग्रेस का चाटुकार भी नहीं था। उस वक्त दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के समर्थन की एक तरह से लहर चल रही थी, ज़ुबैर भी केजरीवाल से प्रभावित था। यूं समझ लीजिए बहती गंगा में वो हाथ धोना चाहता था। अब ऐसा व्यक्ति जिसका इतना चुटीला स्वभाव हो। वो इतने पर शांत तो बैठेगा नहीं? महोदय ने 2014 तक आते-आते सुब्रह्मण्यम स्वामी का पैरोडी पेज बना दिया, जिसका नाम था– Unofficial Subramanian Swamy (@SusuSwamy)

ज़ुबैर के अनुसार सुब्रह्मण्यम स्वामी आवश्यकता से अधिक बोलते थे और उनकी कई बातें आधुनिक भारत के ‘अनुकूल’ नहीं थी। इसके बाद आता है ज़ुबैर के जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट। सुब्रमण्यम स्वामी ठहरे वकील आदमी और उन्होंने अपनी वकालत दिखाते हुए वही किया जो उन्हें कदापि नहीं करना चाहिए था।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में यूं ही रामाधीर सिंह ने नहीं कहा था, “छोटा आदमी गुंडई करना चाहता है, करने दो।” उसका अर्थ स्पष्ट था कुछ लोग आपसे भिड़ने योग्य नहीं हैं, उन्हें यूं ही छोड़ दो। सुब्रह्मण्यम स्वामी आज चाहे जैसे भी हो- उनसे राजनीतिक विचारधारा पर जैसे मतभेद हो, एक समय पर उनसे बड़े-बड़े राजनेता खौफ खाते थे और कारण चाहे जो हो, उन्होंने और एपीजे अब्दुल कलाम ने ही सोनिया गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था। सुब्रमण्यम स्वामी ज़ुबैर के विरुद्ध कोर्ट में पहुंच गए। कुछ नहीं होना था- कुछ नहीं हुआ, हां ज़ुबैर को ‘लाइमलाइट’ ज़रूर मिल गई।

इसी बीच नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनावों में जो प्रचंड बहुमत मिला, उसके कारण जो मोदी विरोधी शिष्टाचार और आचरण का चोला ओढ़े हुए थे वो अब खुलकर उनका चरित्र हनन करने लगे। ज़ुबैर ने भी इसी पूरी लॉबी को समर्थन देने का निर्णय किया। इसके साथ ही जिस TFI ने उसे समृद्धि और यश दिलाया, उसी TFI के विरुद्ध दिन-रात अभियान चलाने लगा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि TFI को बदनाम करना ही इस शख्स के जीवन का लक्ष्य हो। सुबह से शाम तक, रात से सुबह तक जब भी वक्त मिलता TFI के विरुद्ध ज़हर उगलने लगता। इसके पीछे का एक मुख्य कारण यह भी था कि TFI के विरुद्ध बोलने पर ही इसके पेज पर लाइक्स बढ़ते थे, कमेंट बढ़ते थे, तो यह वही करने लगा। TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने कहा कि कर लो भाई। अगर तुम्हें TFI को गालियां देकर यश मिलता है तो बटोर लो। वो लगा रहा- TFI के विरुद्ध लिखता रहा।

ज़हर उगलते-उगलते इसने एक दिन सभी सीमाएं लांघ दी। मोहम्मद ज़ुबैर ने TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा और उनकी धर्मपत्नी का एक फ़ोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया। शास्त्र भी कहते हैं कि एक वक्त के बाद बोलना ज़रूरी होता है- चुपचाप सहने वाला कभी भी बहादुर नहीं कहलाएगा। अतुल मिश्रा अब चुप नहीं रहे, उन्होंने इस घटिया कृत्य पर तीखी प्रतिक्रिया दी। जिसके बाद मोहम्मद ज़ुबैर को माफी मांगनी पड़ी। इसके बाद TFI से उसका नाता सदैव के लिए टूट गया। यहीं पर एंट्री होती है उस शख्स की जिसने ज़ुबैर जैसे बुद्धिहीन को मोहरा बनाकर अपनी चालें चलीं। उस समय फ़ेसबुक पर एक और चर्चित पेज हुआ करता था, जिसका नाम था ‘Truth of Gujarat’

इसके संचालक थे प्रतीक सिन्हा। लेकिन ये कोई ऐसे वैसे व्यक्ति नहीं थे। ये ‘कुख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता’ एवं गुजरात कांग्रेस के कट्टर समर्थकों में से एक थे। इनके पिता थे मुकुल सिन्हा। मुकुल सिन्हा की दो पहचान रही हैं। पहली पहचान कि गुजरात दंगों के बाद उन्होंने भी तीस्ता सीतलवाड़ की तरह एजेंडा चलाया और मोदी विरोध का एजेंडा दिन-रात फैलाया। दूसरी पहचान यह है कि ये गुजरात में कई बार विधानसभा चुनाव लड़े और हर बार बुरी तरह से हारे। तो इन्हीं मुकुल सिन्हा के पुत्र हैं प्रतीक सिन्हा।

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प्रतीक और ज़ुबैर में जल्द ही घनिष्ठ ‘मित्रता’ हो गई, परंतु वास्तविक बात तो कुछ और थी। ज़ुबैर जैसा भी था, पर कॉन्टेन्ट रचने में उसका कोई तोड़ नहीं था और उसे नियंत्रित करना उतना ही सरल था, क्योंकि वह बोलने से पूर्व कुछ भी सोचता नहीं था। अब प्रतीक सिन्हा जैसे कट्टर मोदी विरोधी को इससे बेहतर क्या चाहिए? कुछ भी गलत होता, तो मोहरा तो तैयार ही था!

यहीं से प्रादुर्भाव हुआ ऑल्ट न्यूज़ वेबसाइट का। जो ‘फ़ैक्ट चेकिंग’ का दावा करती, परंतु जल्द ही इसकी वास्तविकता से सभी परिचित हो गए। सभी को पता चल गया कि ऑल्ट न्यूज़ कुछ नहीं है बल्कि एक और मोदी विरोधी वेबसाइट है। ऐसे में जब इनका एजेंडा पूरी तरह एक्सपोज़ होने लगा तो इन्होंने खानापूर्ति के लिए दो चार ‘वामपंथी खबरों’ की ‘फ़ैक्ट चेकिंग’ भी की। परंतु वह भी सागर में कंकड़ भरने के समान थी। अपनी कुंठा में ये लोग तो मीम तक की फ़ैक्ट चेकिंग करने लगे।

लेकिन इनके भी फैन बेस तैयार होने लगे। होते कैसे नहीं, वामपंथियों से जो भरे हुए थे? चाहे राहुल गांधी हो, राणा अयूब हो या फिर रवीश कुमार ही क्यों न हो, ऑल्ट न्यूज़ देखते-देखते वामपंथी एजेंडाबाजों का ‘CNN’ बन गया। इतना कि इनके संस्थापकों को नोबेल पुरस्कार तक के लिए नामांकित किया गया। परंतु क्या इससे इनके अपराध छुप गए?

पीएम मोदी को नीचा दिखाने के नाम पर इस वामपंथी पोर्टल ने काफी रायता फैलाया है, विशेषकर मोहम्मद ज़ुबैर ने। परंतु पिछले एक वर्ष में इस व्यक्ति ने ऐसे-ऐसे पाप किये, जिसके कारण इसका कानून के हत्थे चढ़ना निश्चित था। AltNews के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा ट्विटर पर की गई एक पोस्ट को हटाने से नकारने के बाद NCPCR ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसका ट्वीट विभिन्न कानूनों का उल्लंघन करता है और इसे हटाये जाने की आवश्यकता है। इस मामले पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने NCPCR प्रमुख प्रियंक कानूनगो की शिकायत पर अगस्त 2020 में जुबैर के विरूद्ध मामला दर्ज किया था।

ये तो कुछ भी नहीं है। गाजियाबाद के लोनी में ताबीज बेचने वाले अल्पसंख्यक बुजुर्ग के साथ हुई मारपीट और दाढ़ी काटने वाले कांड को न केवल मोहम्मद ज़ुबैर के नेतृत्व में सांप्रदायिक रंग दिया गया बल्कि धड़ल्ले से फेक न्यूज भी फैलाई गई। इस मामले में यूपी पुलिस की कार्रवाई और जांच के कारण इन सभी कथित वामपंथी पत्रकारों को माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा।

इसके बाद भी ज़ुबैर माना नहीं, नूपुर शर्मा की एक टिप्पणी को उसने ट्विटर पर शेयर किया और इससे कट्टरपंथी भड़क गए। लेकिन अब उसकी यह मज़हबी कट्टरता उसी पर भारी पड़ती दिख रही है। इसके बाद ही उसके विरुद्ध पुलिस में शिकायत हुई और उसे गिरफ्तार किया गया।  तो यह थी TFI के फैन रहे मोहम्मद ज़ुबैर की कहानी।

अंत में एक बात कहते हुए लेख को ख़त्म करते हैं कि अगर मोहम्मद ज़ुबैर बुद्धिहीन ना होता- तो शायद प्रतीक सिन्हा के जाल में नहीं फंसता- अगर वो बुद्धिहीन ना होता- तो शायद प्रतीक सिन्हा का मुहरा बनकर ही नहीं रह जाता- अगर वो बुद्धिहीन ना होता- तो शायद अबतक समझ गया होता कि वो प्रतीक सिन्हा के षड्यंत्र का हिस्सा है- और अगर वो इससे बच गया होता तो शायद एक बेहतरीन कॉन्टेन्ट क्रिएटर होता।

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