तो इसलिए हमें भारत के राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मु की आवश्यकता है

विरोधियों का एजेंडा फिर हो गया शुरू

Draupadi Murmu

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किसी भी वर्ग के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है कि उसे समाज में वरीयता दी जाए। भारत में ऐसा अमूमन कम ही हुआ है, यहां जिसे दबाया गया उसे कभी अपनी आवाज तक बुलंद करने का मौका नहीं दिया गया। लेकिन पीएम मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद यह सोच और परिपाटी बदल गयी, दलितों की राजनीति करने वालों को तब सबसे बड़ा सदमा लगा जब रामनाथ कोविंद का चयन भारत के राष्ट्रपति के तौर पर एनडीए ने किया।

अब एक और नया मास्टरस्ट्रोक उसी एनडीए गठबंधन ने 5 साल बाद पुनः एक नए चेहरे और नए समाज को उसकी वरीयता दर्शाने के लिए चल दिया है। द्रौपदी मुर्मु का नाम आते ही उस वर्ग विशेष का तिलमिलाना तो वाजिब ही था, जो रामनाथ कोविंद के नाम के आते ही विधवाविलाप शुरू कर दिए थे।

विरोधियों का चलने लगा एजेंडा

दरअसल, एनडीए गठबंधन ने अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मु के नाम पर मुहर लगा दिया, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उनके नाम की घोषणा की थी। इसके बाद एक ओर जहां मुर्मु के जीतने के सभी दावे आ रहे हैं और बहुमत से अधिक मत प्राप्त होने की खबरें चल रही हैं तो वहीं एक धड़ा ऐसा भी है जो उनकी जाति और उनकी निपुणता पर सवाल उठा रहा है। चूंकि इस चयन में पीएम मोदी का सबसे बड़ा योगदान है तो विरोधी गुट कोई एजेंडा न चलाए, इस निर्णय की निंदा न करे ऐसा कैसे हो सकता है।

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ट्विटर पर द्रौपदी मुर्मु के योगदान और कार्यशैली पर सवाल खड़े करने वालों की भरमार देखने को मिली। एक ट्विटर उपयोगकर्ता @JujutsuPizza ने लिखा कि, मुझे नहीं लगता कि उन्हें एक आदिवासी पूर्वी भारतीय होने के अलावा कोई योग्यता मिली है। मैं सख्त दक्षिणपंथी हूं और उम्मीद करता हूं कि भाजपा दक्षिणपंथी होगी लेकिन वे आजकल वामपंथी दल की तुलना में अधिक वामपंथी काम कर रही है।”

एक अन्य @Dayamaitreya  ने लिखा कि, “उन्हें अगले पांच वर्षों तक द्रौपदी के बड़बड़ाने की आदत डालनी होगी।”

कथित रूप से वाम प्रचार करने वाले @scroll_in  ने तो यहां तक लिखा कि, “#DroupadiMurmu राष्ट्रपति के रूप में संघ परिवार के लिए एक जीत होगी – लेकिन आदिवासी समुदाय की नहीं। मुर्मु को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करके, संघ ने भारत की सभी प्रमुख पहचानों को हथियाने का अपना अंतिम चरण पूरा कर लिया है।”

@VimalINC ने एक तस्वीर से भावी और वर्तमान राष्ट्रपति पर लिखा कि, “यदि नया राष्ट्रपति भगवा है, तो कोई बात नहीं।”

@thehighmonk  ने लिखा कि, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि राष्ट्रपति कौन बनता है, रबर स्टैंप हमेशा रबर स्टैंप रहेगा।”

द्रौपदी मुर्मु की तस्वीर साझा करते हुए एक @bandayadgundige  ने लिखा कि, “पेश है अडानी का रबर स्टैंप।”

https://twitter.com/bandayadgundige/status/1539586582696435714

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देश का एक वर्ग असमंजस में है

बहुत ही विनम्र पृष्ठभूमि से लेकर भारत की जल्द ही पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने तक, द्रौपदी मुर्मु ने एक प्रेरणादायक यात्रा तय की है। एक बार देश के सर्वोच्च पद के लिए चुने जाने के बाद, वह ओडिशा से आने वाली पहली राष्ट्रपति होंगी और दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी। संथाल जनजाति की रहने वाली वह आदिवासियों के उत्थान की जीवंत प्रतिमूर्ति होंगी। लेकिन यही तो पचाने में देश का एक वर्ग असमंजस में है।

मुर्मु ओडिशा के छोटे से शहर मयूरभंज में जन्मी और पली-बढ़ी हैं, उन्होंने रमा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से अपनी शिक्षा पूरी की। फिर उन्होंने एक स्कूल शिक्षिका के रूप में निस्वार्थ सेवा की। उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 1997 में रायरंगपुर नगर निकाय की पार्षद बनीं। वे मानवता की सेवा में लगी रहीं, इसके साथ ही वह राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ती रहीं। 2000 में रायरंगपुर के विधायक से वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए “नीलकांठा पुरस्कार” से सम्मानित होने तक मुर्मु के राजनीतिक सफर का भी कोई सानी नहीं है।

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संवैधानिक पद के अनुभव ने उन्हें और निपुण बना दिया है और यह उनके राष्ट्रपति कार्यकाल को और मजबूत बनाने में सहायक होगा यह तो तय ही है। इन सभी कारणों के परिणामस्वरूप भी देश के जयचंद, द्रौपदी मुर्मु पर फब्दियां कसने में लगे हैं। लेकिन जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन तैसी, आज इसी अंधविरोध के चलते वो वर्ग कहां है वो सर्वविदित है।

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