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जानिए, क्यों यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में विपक्ष की एक उत्कृष्ट पसंद हैं!

विपक्ष ने उम्मीदवार दिया तो यशवंत सिन्हा जैसा, क्या बात है!

Chaman Kumar Mishra
द्वारा Chaman Kumar Mishra
22 June 2022
in चर्चित, समीक्षा
0
yashwant sinha

Source- Google

144
व्यूज़
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एक वेबसीरीज़ है गेम ऑफ़ थ्रोन्स, उम्मीद है आपने यह वेबसीरीज़ देखी होगी और आपको जॉफ़्री बराथियन नाम का पात्र भी याद होगा और आपको यह भी याद होगा कि कैसे जॉफ़्री बराथियन रायता फैलाने का विशेषज्ञ है। हर बार, हर मौके पर उसने रायता फैलाया। चाहे कोई भी स्थिति हो, किसी भी मुद्दे पर चर्चा हो रही हो, जॉफ़्री बराथियन को जनता का और वहां उपस्थित लोगों का पूरा ध्यान अपने ऊपर चाहिए था, वो बात और है कि कि वो कायर, क्रूर और कपटी था इसलिए उसे कोई भाव नहीं देता था। लेकिन वो चाहता था कि सब उसकी बात करें इसलिए वो मौके-बे-मौके रायता फैलाता रहता था और चर्चाओं में बना रहता था, कुछ भी बोल देता था, कुछ भी निर्णय ले लेता था। ऐसा ही एक जॉफ़्री बराथियन भारतीय राजनीति में भी है जो रायता फैलाने का विशेषज्ञ है, उसका नाम है यशवंत सिन्हा।

और पढ़ें- कभी विदेश मंत्री थे, आज कल तालिबान प्रेमी हैं: अजब यशवंत की गजब कहानी

यशवंत सिन्हा विपक्ष की उत्कृष्ट पसंद क्यों हैं?

इस लेख में हम जानेंगे कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा विपक्ष की उत्कृष्ट पसंद क्यों हैं?

यशवंत सिन्हा को विपक्ष ने अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है, यह और बात है कि उनके पास और कोई विकल्प था ही नहीं। उन्होंने प्रयास तो किए थे लेकिन उनसे हुआ ही नहीं। दरअसल, सभी जानते हैं कि विपक्षी उम्मीदवार की हार तय है तो क्यों कोई मैदान में आएगा। विपक्ष पहले शरद पवार के आगे साष्टांग बिछ गया लेकिन पवार ने विपक्ष के नम्र निवेदन को अस्वीकार कर दिया फिर ममता बनर्जी और सोनिया गांधी अपना लाव लश्कर लेकर पहुंची फारूक अब्दुल्ला के पास। अब्दुल्ला की तो बांछे खिल गयीं लेकिन जानते थे कि हार तय है तो हताश निराश होकर न चाहते हुए भी मना कर दिया। रोते बिलखते विपक्ष की बची-खुची आशाएं गोपाल कृष्ण गांधी से थी जो कि 2017 में विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार रह चुके थे। लेकिन इस बार विपक्ष की विनती को गोपाल कृष्ण गांधी ने भी ठुकरा दिया। अब विपक्ष के पास कोई नाम नहीं था वो किंकर्तव्यविमूढ़ होकर हाथ पर हाथ रखे बैठा था मानो वैक्यूम में चला गया हो। तभी सामने आए रायता सिन्हा, ओह सॉरी, यशवंत सिन्हा।

यशवंत सिन्हा ने कहा हम बनेंगे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार। फिर क्या था, इस बार विपक्ष की बांछे खिल गयीं। इस बारे में हम आगे बात करेंगे लेकिन उससे पहले यशवंत सिन्हा माने रायता सिन्हा की बात कर लेते हैं। पटना में पैदा हुए यशवंत सिन्हा प्रशासनिक सेवा में थे लेकिन 1984 में वहां से इस्तीफा देकर जनता पार्टी में शामिल हो गए। यहां से शुरुआत हुई यशवंत सिन्हा के रायता सिन्हा बनने की यात्रा। जनता पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा, चंद्रशेखर की कैबिनेट में 1990 से 1991 तक वित्त मंत्री भी रहे लेकिन उन्होंने फिर रायता फैलाया और भाजपा में शामिल हो गए। अटल जी की सरकार बनी तो सिन्हा जी को वित्त मंत्री बनाया गया लेकिन सिन्हा जी अपने आपको रोक नहीं पाए और एक बार फिर रायता फैलाया और वित्त मंत्रालय छोड़कर विदेश मंत्रालय में आ गए। लेकिन 2004 में एनडीए की सरकार गयी और यूपीए की सरकार आ गयी तो रायता सिन्हा वापस अपने खोल में लौट गए। फिर आया 2014, भारत की राष्ट्रीय राजनीति में मोदी का प्रार्दुभाव हुआ और तब रायता सिन्हा समेत तमाम रायतेबाज किनारे कर दिए गए। दूसरे रायतेबाज तो ना नुकूर करते करते मान गए लेकिन रायता सिन्हा नहीं माने, उन्हें लगा कि अरे! वो इतने बड़े रायताबाज हैं फिर भी उन्हें दरकिनार किया जा रहा है। रायता सिन्हा ने बीजेपी छोड़कर राजनीतिक सन्यास लेने का ऐलान कर दिया।

और पढ़ें- 84 साल की उम्र में ‘नौकरी’ तलाशने वाले व्यक्ति बने यशवंत सिन्हा

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भाव नहीं दिया

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने एक कौड़ी का भाव भी इस बात को नहीं दिया कि रायता सिन्हा हैं या नहीं हैं लेकिन रायता सिन्हा की कुलबुलाहट समाप्त ही नहीं हो रही थी। घर बैठे-बैठे क्या करें, उन्हें नौकरी चाहिए थी वो भी ऐसी नौकरी जिसमें रायता फैलाने का भरपूर अवसर मिले, सन्यासी रायता सिन्हा फिर ट्विटयाने लगे, रायताखोरों से बतियाने लगे। लेकिन यह नयी भाजपा थी, रायता सिन्हा को कोई भाव नहीं मिला। अंत में रायता सिन्हा ने देश की सबसे बड़ी महिला रायताबाज ममता बनर्जी की पार्टी पकड़ ली। दरअसल, नौकरी तो मिल नहीं रही थी ऐसे में रायता सिन्हा ने सोचा होगा कि क्यों न स्वयंसेवी की तरह ही काम कर लिया जाए, कम से कम चाय-पानी का इंतजाम तो होता ही रहेगा और इस तरह रायता सिन्हा और रायती बनर्जी का ‘गठबंधन’ हुआ।

अब वापस लौटते हैं मुख्य विषय पर, रायता सिन्हा को विपक्ष ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार क्यों बनाया होगा। समझना होगा कि भले ही सोमरस पीकर किसी दिन रवीश कुमार कांग्रेस की आलोचना कर दें लेकिन विपक्ष का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं जीतेगा। ऐसे में विपक्ष को एक ऐसा उम्मीदवार चाहिए था जो रायता फैलाए, जो मीडिया कवरेज बटोरे, जो फ़र्जी बयान दे, जो कुछ भी बोल दे, जो संसद के बाहर खड़े होकर हाथ-पैर-मुंह-आंख को गतिशील बनाकर नृत्य कर सके, जो हार पर भी हार ना माने बल्कि उसका दोष भी भाजपा पर डाल दे, जो हारने के बाद चोरी-चोरी चिल्लाए, जो हारने के बाद लोकतंत्र की हत्या का राग अलापे। ऐसा आदमी तो सिर्फ एक ही है और वो है बेरोजगार रायता सिन्हा, तो इन्हीं सब अति उच्चस्तरीय गुणों को देखकर विपक्ष ने रायता सिन्हा को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है क्योंकि विपक्ष अच्छी तरह से जानता है कि और कुछ तो होना नहीं है तो हमेशा की तरह रायताबाजी ही कर लेते हैं, रायताबाजी करने में विपक्ष पूरी तरह सफल होगा। इन स्थितियों को देखकर यह तो कहना ही पड़ेगा कि विपक्ष ने इस बार अपने लिए उत्कृष्ट उम्मीदवार का चयन किया है।

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Tags: अमित शाहनरेंद्र मोदीममता बनर्जीयशवंत सिन्हा
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Chief Editor @FrustIndian. More than 8 years of experience of working in various national media houses.

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