हिंदू धर्म से नफरत करने वाले जुबैर की गिरफ्तारी पर वामपंथी क्यों बिलबिला रहे हैं?

वामपंथियों को जुबैर के लिए 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' और नूपुर के लिए 'सर तन से जुदा' चाहिए !

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Source- TFIPOST.in

‘अगर हम नहीं रोए तो अब्बा गुस्सा हो जाएंगे’ हमारे देश में एक कुनबे का हर बार यही जवाब होता है जब कोई कट्टरपंथी कानून के शिकंजे में आता है। उस कट्टरपंथी को बचाने के लिए लिब्रांडुओं का पूरा इकोसिस्टम खड़ा हो जाता है। फैक्ट चैक के नाम पर एजेंडा और जहर परोसने वाला मोहम्मद ज़ुबैर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा गिरफ्तार हुआ तो देश के लिब्रांडु वर्ग ने विलाप करना शुरू कर दिया।

कथित फैक्ट चेकर वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने और वैमनस्यता को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। जुबैर की गिरफ्तारी उसके फेसबुक अकाउंट से कई हिंदू फोबिक पोस्ट वायरल होने के कुछ दिनों बाद हुई है। हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने के लिए विख्यात ज़ुबैर ने पहले कई ट्वीट किए और बाद में डर की वज़ह से वो ट्वीट डिलीट कर दिए। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि अगर दूसरे समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा नहीं था तो फिर जुबैर ने ट्वीट डिलीट ही क्यों किए?

लेकिन लिब्रांडु लॉबी को इससे क्या ही मतलब? क्या-क्यों-कब हुआ उन्हें उससे क्या ही मतलब, असल काम तो सरकार को घेरने और कानून के दुरूपयोग करने का आरोप जड़ना है। तो फिर क्या नेता, क्या पत्रकार और क्या ही सोशल मीडिया के वामपंथी गुर्गे- सभी ने ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर आंसू बहाए और वही पुराना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राग अलापा।

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सबसे पहले ट्वीट करते हुए कांग्रेस के चश्मोचिराग जिनके नेतृत्व में कांग्रेस असंख्य चुनाव हार चुकी है, ऐसे राहुल गांधी ने लिखा कि, “बीजेपी की नफरत, कट्टरता और झूठ को उजागर करने वाला हर शख्स उनके लिए खतरा है। सत्य की एक आवाज को गिरफ्तार करने से केवल एक हजार और पैदा होंगे। अत्याचार पर सत्य की हमेशा विजय होती है।

बिल्कुल राहुल जी एकदम सही कहते हैं। कट्टरता और नफरत तो भाजपा ने ही फैलाई है, 70 साल के कार्यकाल में देश को अनेकानेक दंगों में तो कोई और ही झोंक कर जाता था। ज़ुबैर ने क्या ही किया, हिन्दू आराध्यों को ही तो अपना निशाना बनाया है, और ऐसा करने वाला राहुल गांधी के लिए एकदम भला मानुष है।

ज़ुबैर के कुनबे अर्थात ऑल्ट न्यूज़ के एक और सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने लिखा कि, “जुबैर के मामले में प्राथमिकी या रिमांड आवेदन की एक प्रति सहित कोई जानकारी प्रदान किए बिना, हमें बताया गया है कि उसे बुराड़ी में अपने निवास पर एक ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना है। वह वर्तमान में बुराड़ी में एक पुलिस बस के अंदर एक घंटे से अधिक समय से बंद है।”

 

यह वो ऑल्ट न्यूज़ है जो अर्नब गोस्वामी के साथ उनके घर पर की गई अभद्रता को सही ठहरा रहा था, अब जब उनके कर्मों के फल मिलने शुरू हुए तो मिमियाना शुरू कर दिया।

अब मामला ज़ुबैर का हों और बीच में ओवैसी न आएं ऐसा कैसे ही हो सकता है। ओवैसी ने ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर ट्वीट करते हुए लिखा, ‘ज़ुबैर की गिरफ्तारी अत्यंत निंदनीय है। उन्हें बिना किसी नोटिस के और किसी अज्ञात प्राथमिकी में गिरफ्तार किया गया है। यह प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन है।’

अब इनको कुछ नहीं मिल रहा था तो सोचा ज़ुबैर की आग में ही हाथ ताप लिए जाएं। ओवैसी जैसे नेता बिगड़े माहौल को और बिगाड़ने के लिए आते हैं। यदि इनका सरोकार वास्तव में मुस्लिम हित होता तो आजतक उन्माद के नाम पर वोट न कमा रहे होते।

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अब ज़ुबैर गिरफ्तार हुआ है तो आरफा खानम शेरवानी को भी बोलना ही था, और वो बोली थी- शेरवानी ने ट्वीट करते हुए लिखा,  “पत्रकार मोहम्मद जुबैर भारत में एक अग्रिम पंक्ति के लोकतंत्र रक्षक हैं।”

 

बिल्कुल सारा लोकतंत्र इन्हीं दो लोगों ने बचाया है। एक आरफा और दूसरे ज़ुबैर और सब तो भुट्टा भून रहे हैं- इस देश में।

अचंभे की बात तो यह है कि जो मोहम्मद ज़ुबैर स्वयं को पत्रकार नहीं मानता है उसके समर्थन में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया उतर गया और उसने ज़ुबैर की गिरफ्तारी की निंदा की है यानी कि हर किसी में ज़ुबैर को पत्रकार बनाने की होड़ लगी है।

भारत विरोधी नफरत फैलाने के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर राणा अय्यूब ने भी ज़ुबैर की गिरफ्तारी पर रोना रोया। अब हम उनका ट्वीट आपको क्या दिखाएं, आप स्वयं ही समझदार हैं- समझ गए होंगे कि राणा अय्यूब ने ज़हर ही लिखा होगा।

अब पूरी बिरादरी बोलने पर लगी थी तो बिरादरी के सरगना कैसे चुप रह सकते थे- राजदीप सरदेसाई भी बोले। उन्होंने ट्वीट किया कि “मोहम्मद ज़ुबैर दूसरों की अभद्र भाषा को उजागर करते थे, आज उन पर अभद्र भाषा के उपयोग का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया है।”

 

अब एजेंडाधारियों की रोज़ी-रोटी ही यही है तो उसमें वो क्या ही कर सकते हैं। उनका ध्यान वहीं रहता है कि कहाँ से मोदी सरकार के विरुद्ध बोलने का एक मौका और मिल जाए- भले ही वो एक नफरती की गिरफ्तारी का मौका ही क्यों ना हो- और वही इन लिब्रांडुओं ने किया।

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