‘बुझती लौ ज़्यादा फड़फड़ाती है’ वरुण गांधी को देखकर ‘नैतिकता’ से भरोसा ही उठ जाता है

इन्हें भाजपा को ‘चूसना’ भी है और ‘काटना’ भी है!

varun gandhi

Source- TFIPOST.in

विवाद, तकरार और वरुण गाँधी पुराने और घनिष्ठ मित्र रहे हैं. एक दूजे के बिना अधूरे. इसलिए तो जहाँ वरुण हों वहां कोई विवाद न हो और उस विवाद में भाजपा को न घसीटा जाये ऐसा तो हो ही नहीं सकता. जहाँ भाजपा विवादों से दूर रहना पसंद करती है वहीं वरुण बार-बार अपनी पार्टी को विवादों के कीचड में घसीटते रहते हैं. हाल ही में भाजपा के नेता वरुण गाँधी ने अग्निवीर के ऊपर चल रहे घमासान में एक आग में घी डालते हुए एक बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि “अल्पावधि की सेवा करने वाले अग्निवीर पेंशन के हकदार नही हैं तो जनप्रतिनिधियों को यह ‘सहूलियत’ क्यूँ? राष्ट्ररक्षकों को पेन्शन का अधिकार नही है तो मैं भी खुद की पेन्शन छोड़ने को तैयार हूँ। क्या हम विधायक/सांसद अपनी पेन्शन छोड़ यह नही सुनिश्चित कर सकते कि अग्निवीरों को पेंशन मिले?”

इससे पहले उन्होंने सरकार पर सवाल उठाये कि क्यों सरकार बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार नहीं दे रही. जब इसके जवाब में पीएम मोदी ने 18 माह के भीतर 10 लाख रोज़गार देने की घोषणा की तो वह मुद्दा शांत हुआ ही था कि केंद्र की नव योजना अग्निवीर पर उंगली उठाने में उन्होंने ज़्यादा देर नहीं लगाई। अपने ट्विटर हैंडल से जिस दिन से अग्निपथ योजना का ऐलान किया गया उस दिन से लगातार इसके विरोध में कई ट्वीट डाले। माना की विरोध करने का अधिकार क़ानून ने दिया है लेकिन विरोध के नाम पर जो जन और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जा रहा है उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा. इस विरोध के नाम पर हो रही हिंसा की वरुण गाँधी ने कोई निंदा नहीं की क्योंकि शायद वे अपनी पार्टी में कमियां ढूंढ़ने और बनाने में इतने व्यस्त हैं की उनका ध्यान आग की उठती लपटों पर गया ही नहीं.

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अपनी ट्वीट के साथ उन्होंने केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना पर अगला घात किया है. जहाँ पूरा देश और विपक्ष इस योजना के खिलाफ है वहीं पार्टी का सदस्य होने के बावजूद वरुण गाँधी ऐसे बयान दे रहे हैं जो अग्निपथ पर उठती लपटों क शांत करने के बजाये और भड़का रहे हैं. हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने कोई ऐसी बात कही हो जो अपनों पर ही प्रहार करती हो.

इसके भी पहले वह किसान बिल को लेकर सरकार पर बार-बार प्रहार करते नज़र आये. यूपी के लखीमपुरी में हुई हिंसा में नौ लोगों की जान गई जिनमें किसानों के अलावा भाजपा के कार्यकर्ता और मीडियाकर्मी भी शामिल थे. इस वारदात की छानबीन यूपी पुलिस पूरे ज़ोरशोर से कर रही थी लेकिन तब भी यूपी प्रशाशन पर उंगली उठाते हुए वरुण गाँधी सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे.

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भाजपा के विरोध में राग अलापते रहते है वरुण गाँधी

वरुण गाँधी और उनकी माँ मेनका गाँधी को सोनिया गाँधी के पावर में आने के बाद कांग्रेस से निकाल दिया जिसके बाद दोनों ने भाजपा में शरण ली. भाजपा में सदस्य रहते हुए कई बार वरुण गाँधी ने ऐसे भाषण भी दिए जिन्हे सुनकर लोगो को विश्वास हो चला था की आगे जाकर वरुण पार्टी का एक मजबपूत चेहरा बनकर उभरेंगे, उन्हें फायरब्रांड नेता के रूप में जाना जाने लगा बल्कि अटकलें तो ये लगाईं जा रही थीं की वे राज्य के मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं. लेकिन सुल्तानपुरी के नेता बनने के बाद जब उन्होंने कोई कार्य नहीं किया न ही वहां के लोगो की समस्याएं सुनी न ही उनकी सहायता का कोई प्रयत्न किया तो सुल्तानपुर की सीट खतरे की घंटी बन गई. इसके अलावा उन्होंने कई ऐसे बयान भी दिए जो सांप्रदायिक दंगे भड़का सकते थे. जिनमें से एक था “अगर किसी मुस्लिम ने हिन्दू को डराया या धमकाया तो उसका सर काट दिया जायेगा.”

शायद उनके ऐसे ही नासमझ बयानों को मद्देनज़र रखते हुए भाजपा ने उन्हें सांसद से मंत्री पद तक नहीं पहुँचाया और शायद उसी के कारण वरुण अपनी ही पार्टी से इतना रूठ गए कि जिस पार्टी का खाते हैं उसी का विरोध भी करने लगे. भाजपा में रहकर भी कांग्रेसी विचारधारा रखने वाले वरुण तो जैसे भाजपा को बदनाम करने के मिशन पर निकले हैं और मिशन पूरा करके ही दम लेंगे. अगर हालातों को ध्यान से देखा जाये और बयानों को मद्देनज़र रखा जाये तो वरुण गाँधी भाजपा पार्टी पर केवल एक बोझ मात्र बनकर रह गए हैं. सत्ता में रहकर विरोध भी करते हैं और सत्ता की मलाई भी खाते हैं. अब तो वे केवल एक ऐसे मानुष बनकर रह गए हैं जिन्हे हर चीज़ से तख़लीफ़ है.

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