बाप-दादा के नाम पर सरकार बन गई वरना आदित्य ठाकरे की हालत राजनीतिक परिदृश्य में चिराग पासवान से कम नहीं है। चूंकि महाराष्ट्र में शिवसेना का प्रादुर्भाव बालासाहेब ठाकरे की हिंदुत्व विचारधारा के साथ हुआ। आदित्य ठाकरे का जन्म ऐसे राजनीतिक परिवार में हुआ जहां बालासाहेब ने लाठी झेलीं, परिश्रम किया और शिवसेना को “शिवसेना” बना पाये। स्वयं उद्धव ठाकरे ने अपनी नग्न आंखों से इस संघर्ष को जीते अपने पिता बालासाहेब को देखा था, ऐसे में उद्धव को अपनी सियासी बिसात पता है कि कितने पर वो सफल होंगे और कहां वो निपट जाए। लेकिन आदित्य ठाकरे यहां नूब साबित होते हैं।
इस लेख में हम जानेंग कि कैसे महाराष्ट्र में शिवसेना की लूटिया डुबाने का पराक्रम दिखाने वाले बालासाहेब की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे राजकुमार आदित्य ठाकरे अब स्वप्न देखने लगे हैं ‘दिल्ली में भी सत्ता बनाएंगे’ के। जानेंगे कि कैसे वो ऐसा कर अपनी उच्चकोटी की अपरिपक्वता का प्रदर्शन जोरोंशोरों से करने लगे हैं।
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एक अपरिपक्व राजनेता हैं आदित्य ठाकरे
आदित्य ठाकरे बड़बोलेपन के चक्कर में अपने भीतर के राहुल गांधी सरीके अपरिपक्व राजनेता की पहचान देशभर को कराते रहते हैं। देखिए कि महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों आसमान चढ़ी हुई है। अंक गणित की बात करें तो अकेले शिवसेना के दो-तिहाई विधायक उद्धव ठाकरे को टाटा-बाय-बाय कर गुवाहाटी की ओर निकला पड़े हैं। उनका ध्येय है कि कैसे भी करके एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को जीवित रख सकें। इसी क्रम में इस गुट को महाराष्ट्र से उलाहना देने वाले पार्टी प्रवक्ता संजय राउत और उद्धव के उत्तराधिकारी आदित्य ठाकरे जैसे नेता कोसने से लेकर धमका भी रहे हैं। एक बार के लिए राउत की दशा को माना जा सकता है क्योंकि वो सदा से ही बेशर्मी की पराकाष्ठा पार करते आए हैं पर आदित्य के बयान इस बात की पुष्टि करते हैं कि सोने की चम्मच के साथ पैदा होने वाले बच्चों को मेहनत और संघर्ष मज़ाक लगते हैं।
आदित्य ठाकरे के मामले में यह शत प्रतिशत स्पष्ट भी होता है क्योंकि हालिया बयानों में कभी वो यह कहते दिखते हैं कि “आना है तो आओ” और पलभर में बयान बदल जाता है कि विधायक अगवा किए गए हैं और वो वापस आना चाहते हैं। राजनीति में राहुल गांधी के बाद जिस बालक को सबसे अधिक संज्ञाओं से सुशोभित किया गया है वो और कोई नहीं बल्कि यही आदित्य ठाकरे हैं। यह सर्वविदित है कि आदित्य ठाकरे का जन्म उस परिवार में हुआ जिसकी तूती बोली जाती रही है। बालसाहेब ठाकरे के परिवार में जन्म होना मतलब हिन्दू हृदय सम्राट का वारिस। उस मातोश्री का भविष्य जो मुंबई की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक इमारतों में से एक है। लेकिन आदित्य इस बात को आज तक समझ ही नहीं पाए। परिवार में दादा बालासाहेब, पिता उद्धव और चाचा राज ठाकरे जैसे नाम होने से ही आधी राजनीतिक विरासत का सार समझ आ जाना चाहिए लेकिन बात वही है कि इस पूरे पारिवारिक माहौल में संघर्ष और पराजय क्या होती है उसका स्वाद आदित्य ने कभी चखा ही नहीं।
यह आदित्य ठाकरे की बालकबुद्धि का प्रमाण है कि वो बयान देते वक्त दूरगामी क्या वर्तमान परिणामों पर गौर नहीं करते। सियासी उठापटक पर सोमवार को एक बयान देते हुए महाराष्ट्र के मंत्री और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने भायखला, मुंबई में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि, “एमवीए सरकार आगे भी जारी रहेगी। जिस शक्ति ने हमें यहां लाया है… हम दिल्ली में भी सत्ता में आएंगे।” यह भी सही है, महाराष्ट्र में सरकार बच नहीं रही और चले हैं दिल्ली की राजनीति करने। यही कपोलकल्पना आदित्य के भीतर छुपे एक अपरिपक्व राहुल गांधी को दर्शाती है।
MVA government will further continue. The power which has brought us here…we will come to power in Delhi too: Maharashtra minister and Shiv Sena leader Aaditya Thackeray to Shivsainiks, in Byculla, Mumbai pic.twitter.com/OagZFe99Ez
— ANI (@ANI) June 27, 2022
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आदित्य ठाकरे के पिछले कर्म भुलाए नहीं भुलाते
पिछले कर्मों की बात करें तो बॉलिवुड से बड़े गहरे नाते होने के चक्कर में आदित्य ठाकरे कभी न कभी किसी न किसी मामले में सामने आ ही जाते हैं। 2020 में सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की मौत की बात हो, या फिर बाद में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की गुत्थी जिसमें रिहा चक्रवर्ती से साथ आदित्य का नाम भी जुड़ा था। ऐसे तमाम मामलों में आदित्य की संलिप्तता की जांच होती रही पर चूंकि सरकार उनकी तो कार्रवाई भी उन्हीं के नियंत्रण में थी।
वही बात है न कि जिस व्यक्ति को थाली में सबकुछ परोसा हुआ मिल जाए उसको सबकुछ आसान ही लगता है। बस वो आगामी भविष्य की न सोचकर वर्तमान को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर जीता हो। यही आदित्य के भीतर की सबसे बड़ी उपलब्धि है। जहां उद्धव को यह पता है कि एक बार शिवसेना की सरकार जाने और देवेंद्र फडणवीस के वापस आने से यह परिलक्षित हो जाएगा कि सारी स्थितियां उनके विपरीत चली जाएंगी पर उद्धव के उलट आदित्य को यही लगता है कि जहां वो बोलेंगे, राज्य की जनता वहां चलेगी। यही अक्षमता आदित्य ठाकरे के राजनीतिक पतन का कारक है।
सारगर्भित बात यही है कि पहली पीढ़ी जितनी मेहनतकश होती है यदि उस मेहनत का भाव आगामी पीढ़ी को नहीं बताया गया तो परिणाम आदित्य ठाकरे जैसे हो सकते हैं।
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