Big Bazaar का ‘शटर डाउन’, कर्ज चुकाने के भी नहीं हैं पैसे

आखिर Big Bazaar को देखकर लोग मुंह क्यों फेर ले रहे हैं?

BiG Bazar

Source- TFIPOST.in

1997 में, जब किशोर बियानी ने मुंबई के मिल जिले में पहला बिग बाजार स्टोर शुरू किया, तो ग्राहकों को कैब वाउचर, बुधवार को किराना की कीमतों में कटौती, प्याज/आलू की कीमतों में वृद्धि के समय उन्हें थोड़ा कम दामों पर बेचना, ज़रुरत की हर चीज़ के लिए ग्राहक को अलग-अलग दुकानों पर न भटकना पड़े इसलिए थोक में माल की उपलब्धता करना ये कुछ ऐसे योजनाएं थीं जिनके चलते बियानी का फ्यूचर ग्रुप बुलंदियों पर पहुँच गया. बिग बाजार भारत के सबसे बड़े खुदरा स्टोरों में से एक है जो किराना से लेकर इलेक्ट्रॉनिक तक सब कुछ बेहतरीन ऑफर पर बेचता है। अपने ग्राहकों को साल में लगभग 365 दिन विभिन्न छूट और कूपन प्रदान करता है। यह कंपनी अपने उच्चतम गुणवत्ता और किफायती उत्पादों के लिए हर घर में एक आम नाम बन गई है।

लेकिन वह कहते हैं न कि दिन बदलते देर नहीं लगती’. किशोर बियानी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ जब भारत का प्रमुख रिटेलर माना जाने वाला बिग बाजार बर्बादी की कगार पर आ गया. यह समस्या कहाँ से शुरू हुई? क्या रिलायंस रिटेल लिमिटेड द्वारा बिग बाजार का अधिग्रहण इसका कारण बना या फिर अमेज़ॅन और फ्यूचर समूह के बीच कानूनी लड़ाई इसके अंत की वजह बानी? आखिर बिग बाजार क्यों विफल हुआ?

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बिग बाजार पर काले बादल

बिग बाजार का संकट 2017 में शुरू हुआ जब बिग बाजार कर्ज में डूबने लगा और उधारदाताओं को समय पर कर्ज का भुगतान नहीं कर पा रहा था। बियानी ने कर्ज पर कारोबार का विस्तार करना चाह रहा था, लेकिन पर्याप्त टर्नओवर और लाभ उत्पन्न नहीं करने में नाकाम रहे जिसके कारण कर्ज चुकाने में वे असमर्थ थे. साथ ही ऑनलाइन व्यापार में अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट से प्रतिस्पर्धा भी उनकी विफलता का कारण बनी.

2019 में महामारी के कारण अधिकांश स्टोर बंद कर दिए गए. बिक्री पर रोक से बिग बाजार की स्थिति और अंततः पूरे फ्यूचर ग्रुप की स्थिति और भी बिगड़ गई। चूंकि बिक्री राजस्व और नकदी प्रवाह गिरता जा रहा था, संचालन की लागत बढ़ रही थी और कंपनी के सिर पर खर्च और ब्याज बढ़ता जा रहा था. ऐसे बिगड़ते हालातों में महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने इसे और नीचे गिरा दिया। फ्यूचर रिटेल, रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्टोर स्पेस का इस्तेमाल कर रहा था और काफी समय से स्टोर का किराया देने में विफल रहा था. ऐसे में रिलायंस ने फ्यूचर की संपत्ति की 3.4 बिलियन डॉलर की खरीदने का प्रस्ताव रखा लेकिन अमेज़ॅन ने इस पर रोक लगा दी.

अमेज़न और रिलायंस के बीच की यह तकरार तीन साल पहले शुरू हुई जब अमेज़ॅन डूबते हुए फ्यूचर ग्रुप के लिए तारणहार बनकर सामने आया. भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों के कारण अमेज़न कर्ज से लदी फ्यूचर रिटेल को सामने से पैसे देकर नहीं बचा सकता था। इसके बजाय अमेज़न ने किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप में उपहार वाउचर इकाई में $192 मिलियन का निवेश किया ताकि बियानी पैसे का उपयोग अपने कारोबार को स्थिर करने के लिए कर सके और इस प्रकार, परोक्ष रूप से अमेज़न भी खुदरा पर कुछ नियंत्रण का प्रयोग कर सके।

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उस 2019 सौदे की शर्त यह थी कि फ्यूचर ग्रुप जिसके देश भर में लगभग 1,500 स्टोर हैं वह अपनी संपत्ति अंबानी को नहीं बेचेगा लेकिन बियानी ने कोविड -19 के बाद हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए अंबानी ग्रुप को संपत्ति बेच दी, और अमेज़ॅन ने अनुबंध के उल्लंघन के लिए फ्यूचर के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी।

पिछले हफ्ते खबर आई कि रिलायंस ने प्रमुख स्थानों पर मौजूद बिग बाजार खुदरा स्टोरों में प्रवेश किया। इन स्थानों पर क़र्ज़ में डूबे फ्यूचर रिटेल के इन स्टोरों में इन्वेंट्री का एक बड़ा हिस्सा भी रिलायंस द्वारा आपूर्ति किया गया था और क्योंकि फ्यूचर आपूर्तिकर्ता भुगतान पर चूक कर रहा था, रिलायंस ने किराए में चूक के चलते फ्यूचर रिटेल को निष्कासन नोटिस दिया और रातों रात इन स्टोरों को अपने कब्जे में ले लिया। अमेज़न जहाँ कोर्ट में इंतज़ार करता रह गया, अंबानी ने अपना दांव खेल लिया. अब फ्यूचर ग्रुप के लिए इसमें कुछ ख़ास नहीं बचा है. जहाँ बियानी के फैसलों ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया वहीं उन्हीं के फैसलों ने ही उन्हें वापस नीचे गिरा दिया.

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