किसी ने सत्य ही कहा है कि परिवर्तन ही शाश्वत सत्य है। परंतु लगता है कि बॉलीवुड का इस बात से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। एक तरफ जहां भारतीय सिनेमा एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के युग का अनुभव कर रहा है, वहीं बॉलीवुड एक ऐसे ठूंठ के समान है जिसने तय कर लिया है कि चाहे विनाश ही क्यों न हो जाए पर परिवर्तन के झोंके के समक्ष झुकने का नहीं।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे बॉलीवुड अनेक असफलताओं के बाद भी बदलने को तैयार नहीं है और कैसे जब तक बॉलीवुड चंद लोगों की जागीर रहेगी तब उसका भला होने से रहा।
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दर्शकों का धीरे-धीरे बॉलीवुड से मोहभंग हो रहा है
हाल ही में चर्चित फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने बताया कि आखिर क्यों दर्शकों का धीरे-धीरे बॉलीवुड से मोहभंग हो रहा है और वे क्यों बहुभाषीय सिनेमा की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं।
अपने ट्विटर अकाउंट के माध्यम से उन्होंने ट्वीट किया, “जब तक बॉलीवुड में ये किंग, बादशाह और सुल्तान रहेंगे, तब तक हिंदी सिनेमा डूबती रहेगी। यदि आप लोगों की कहानी के सहारे इसे लोगों की इंडस्ट्री बनाएंगे, तभी यह ग्लोबल फिल्म इंडस्ट्री को लीड कर पाएगी। यह फैक्ट है” –
अब आप भी सोच रहे होंगे कि इसमें क्या नयी बात है। स्टार पावर तो हर जगह है और दक्षिण भारत, विशेषकर वास्तविक भारतीय फिल्म उद्योग, जिसे कुछ लोग बहुभाषीय सिनेमा भी कहते हैं, वहां पर भी स्टार पावर ही एक महत्वपूर्ण फैक्टर होता है। परंतु यहीं पर विवेक का ट्वीट महत्वपूर्ण बन जाता है। लोगों की इंडस्ट्री, जिसमें लोगों की कहानियां हो, ये बात बॉलीवुड के नैनो मस्तिष्क में तनिक भी नहीं बैठती।
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बॉलीवुड को धोती पहने हुए हीरो से दिक्कत है
परंतु ये तो कुछ भी नहीं है। ये तो वह बॉलीवुड है जिसे धोती पहने हुए हीरो से दिक्कत है। शमशेरा के प्रोमोशन के दौरान रणबीर कपूर ने बताया था कि “मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि कभी ऐसी फिल्म मत करना जिसमें तुमको धोती पहनने की जरूरत पड़े क्योंकि ये चलती नहीं हैं। हमेशा कॉमर्शियल फिल्में करना”
लेकिन बॉलीवुड को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ‘हम नहीं सुधरेंगे।‘ उन्हें अब भी ऐसा लगता है कि खान तिकड़ी/कपूर बिरादरी के नाम पर हम कुछ भी परोसेंगे और जनता हाथों हाथ लपक लेगी। परंतु इस भ्रम को भी ‘जुग जुग जीयो’ के माध्यम से तोड़ने में सफलता प्राप्त हुई है। 85 करोड़ के बजट पर बनी इस फिल्म ने अपने 3 हफ्तों के कलेक्शन में मात्र 125 करोड़ कमाए हैं और ये इसको हिट का स्टेटस दिलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है क्योंकि ये कुल वैश्विक कलेक्शन है। सोचिए कुल घरेलू कलेक्शन कितना होगा।
ऐसे में संदेश तो स्पष्ट है कि जब बॉलीवुड खान और कपूर बिरादरी के लिए अपना मोह नहीं छोड़ती, उनका भला नहीं होना। ऐसा नहीं है कि वंशवाद अन्य उद्योगों में नहीं, तेलुगु, तमिल, मलयालम और कन्नड़ में भी भरपूर है, परंतु वह कथावाचन और मनोरंजन पर कभी भी हावी नहीं होता, और यही अंतर इन्हें बॉलीवुड से भिन्न बनाता है।
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