अगर किसी को लगता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया की सारी परेशानियां ख़त्म हो गयी हैं और अब लड़ने के लिए किसी के पास कोई मुद्दा नहीं है तो यह बिल्कुल गलत है। अब भले ही तृतीय विश्वयुद्ध न शुरू हुआ हो लेकिन जगह-जगह छोटी-छोटी झड़पें अभी भी चल रही हैं। इन्हीं झड़पों में से एक का उदहारण है चीन और ताइवान। जहाँ चीन ताइवान पर अपना अधिकार जताता है और ताइवान स्वयं को एक अलग और चीन से स्वतंत्र देश मानता है। ऐसे में दुनिया की ‘सुपरपावर’ कहा जाने वाला देश अमेरिका भी अपनी पूरी कोशिश करता रहता है कि समय-समय पर वह चीन और ताइवान की इस लड़ाई के बीच आग में घी डालता रहे।
पेलोसी ताइवान की यात्रा करना चाहती है
इस वर्ष चीन और ताइवान की दुश्मनी की आग में घी डालने की ज़िम्मेदारी मिली है नैन्सी पेलोसी को। यूनाइटेड स्टेट्स हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की 82 वर्षीय स्पीकर पेलोसी अगस्त में ताइवान की यात्रा करने की योजना बना रही हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पेलोसी की यात्रा का मकसद ताइवान को समर्थन देना है।
यदि रिपोर्ट के अनुसार यात्रा होती है तो 25 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी वरिष्ठ सांसद द्वारा ताइवान की यह पहली यात्रा होगी। 1997 में रिपब्लिकन न्यूट गिंगरिच ने इस क्षेत्र का दौरा किया था जब वे विपक्ष में थे। चूंकि, बाइडेन और नैन्सी एक ही पार्टी के हैं इसलिए इस मुद्दे पर नैन्सी के रुख को सरकार का रुख माना जाएगा।
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ताइवान को लेकर अमेरिका-चीन के बीच टकराव का इतिहास
यह पहली बार नहीं है जब ताइवान को लेकर दोनों देश आमने-सामने हैं। 1949 में चीन और ताइवान अलग हो गए, लेकिन चीन अभी भी इसे मुख्य भूमि चीन का हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान के नेता इस राय से असहमत हैं। शीत युद्ध के प्रारंभिक वर्षों के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन दोनों के आपसी मनमुटाव थे। हालाँकि, 1970 के आसपास दोनों देशों ने यूएसएसआर के उदय को रोकने के लिए हाथ मिलाया और साथ आये। ‘चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्ति’ 1972, 1979 और 1982 में अमेरिकी सरकार और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा जारी किए गए तीन संयुक्त बयानों का एक संग्रह है जिसने यूएस-चीन संबंधों की नींव रखी।
इन विज्ञप्तियों के अनुसार, अमेरिका ने एक चीन सिद्धांत को स्वीकार किया यानी ताइवान पर चीन के आधिपत्य को स्वीकार किया। पीआरसी के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए और ताइवान स्थित चीन गणराज्य (आरओसी) के साथ अमेरिका के राजनयिक संबंध समाप्त हो गए। लेकिन अब अमेरिका हमेशा की तरह अपना उल्लू सीधा होने के बाद अपने कहे बयान से पलट गया है।
ताइवान को जाने नहीं दे सकते जिनपिंग
सेमीकंडक्टर क्षेत्र भविष्य में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को चरम पर ले जाने की ताकत रखता है और ताइवान सेमीकंडक्टर क्षेत्र में महारथी है। ऐसे में सेमीकंडक्टर क्षेत्र में ताइवान का उदय भी एक कारण बन गया कि अमेरिका इसे अपने प्रभाव क्षेत्र में रखना चाहता है। इस बीच चीन का सपना है अमेरिका को सुपरपावर की गद्दी से हटाकर स्वयं उस पर आधिपत्य जामाना और चीन का यह सपना चिप्स उद्योग पर प्रभुत्व के बिना संभव नहीं है।
इसके अतिरिक्त, शी जिनपिंग ने अपनी पार्टी के सहयोगियों के साथ-साथ सीसीपी के अन्य सदस्यों के बीच साम्राज्यवादी की छवि बनाई है। जिनपिंग का कहना है कि “ताइवान चीन का हिस्सा है।” अब अगर ताइवान चीन के हाथों से छिनता है तो यह शी जिनपिंग के लिए एक बहुत बड़ी हार होगी। ताइवान पर जिनपिंग के आक्रामक रुख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन ने अमेरिका के इस मुद्दे पर हस्तक्षेप के विरुद्ध एक के बाद एक धमकियाँ दे रहा है।
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क्या पेलोसी फिर कोई गलती दोहरा रही हैं?
पेलोसी ने अप्रैल में भी इसी तरह ताइवान जाने की घोषणा की थी। उस समय चीन ने कथित तौर पर द्वीप के पूर्व में उड़ान भरने वाले वाई-9 इलेक्ट्रॉनिक युद्धक विमान के साथ जवाब दिया। तब चीनी दूतावास ने पेलोसी से अपनी यात्रा रद्द करने को कहा। पेलोसी ने आखिरकार हार मानकर और अपने कोविड -19 संक्रमण का हवाला देते हुए अपनी नियोजित यात्रा रद्द कर दी। इसके बाद चीन ने संयुक्त राज्य अमेरिका को उस विज्ञप्ति का ध्यान करवाया जिसमें अमेरिका ने चीन और ताइवान के मामले में हस्तक्षेप न करने की बात स्वीकारी थी।
अमेरिका के ताइवान के बढ़ते कदमों का चीन ने एक बार फिर प्रतिरोध किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजान ने स्पष्ट रूप से बाइडेन प्रशासन से ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि, “अमेरिका को ताइवान क्षेत्र का दौरा करने के लिए स्पीकर पेलोसी की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए और ताइवान के साथ आधिकारिक बातचीत को रोकना चाहिए। ऐसे कुछ भी करना बंद करें जो ताइवान में तनाव पैदा कर सकता हैं और ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता का पालन करें।” इसके अलावा, ग्लोबल टाइम्स के पूर्व प्रधान संपादक हू ज़िजन ने सीसीपी से पेलोसी के विमान को एस्कॉर्ट करने के लिए सैन्य विमानों को गैल्वनाइज करने की अपील की है।
बाइडेन का डर
ऐसा लग रहा है कि जो बाइडेन को आखिरकार चीन का संदेश समझ आ ही गया है. उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि चीनी सेना संयुक्त राज्य अमेरिका की मिलिट्री से श्रेष्ठ है। इस समय अमेरिकी सेना को मानव बल की कमी का भी सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार को कहा कि अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का मानना है कि इस समय हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी का ताइवान का दौरा करना ‘अच्छा विचार नहीं’ है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए चीन एक कड़ा प्रतियोगी है और इस समय अमेरिका जानता है कि वह इसके खिलाफ कितना कमज़ोर है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत भी खराब हो चली है और बाइडेन के मध्यावधि चुनाव बस आने ही वाले हैं। ऐसे में चीन से टक्कर और अमेरिका की डगमगाती अर्थव्यवस्था बाइडेन को कहाँ पहुंचाती है यह देखना दिलचस्प होगा।
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