नए अशोक स्तंभ में बदलाव के क्या मायने हैं?

संदेश बहुत गहरा है!

Ashok stmabh

Source- TFIPOST HINDI

बचपन में रजनीकान्त के ‘सिवाजी – द बॉस’ के डब संस्करण का एक प्रसिद्ध संवाद आज भी स्मरण रहता है- “अच्छे काम में हाथ बँटाने कोई नहीं आता, टांग अड़ाने सभी आ जाते हैं।” ये संवाद न जाने क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अधिकतम योजनाओं पर सटीक बैठती है। किसी चीज़ का विरोध करना गलत नहीं है परंतु विरोध करने के लिए ही विरोध करना एक बड़ी ही विचित्र लेकिन हास्यास्पद प्रवृत्ति है जिसका शिकार सम्पूर्ण विपक्ष बिरादरी बन चुकी है।

वो कैसे? असल में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवीन संसद परिसर का शिलान्यास किया जिसके अंतर्गत उन्होंने संसद के शिखर पर निर्मित अशोक स्तम्भ का अनावरण किया। दिल्ली में नया संसद भवन बन रहा है। इसके शीर्ष पर 6.5 मीटर ऊंचा और 9500 किलोग्राम वजन वाला अशोक स्तंभ स्थापित किया गया है। ये हमारा राजकीय प्रतीक भी है। सारनाथ में सम्राट अशोक ने जो स्तंभ बनवाया था, यह प्रतीक वहीं से लिया गया है।

चूंकि इस बार हमारे अशोक स्तम्भ में सिंहों का मुख मूल सिंहों की भांति आक्रामक है और ‘सेक्युलर भारत’ की भांति बंद नहीं तो लिबरल गण इसे तनिक भी नहीं पचा पा रहे हैं। लेकिन वामपंथियों द्वारा उठाए गए इस बिना सिर पैर की बातों को विस्तार से जानना जरूरी है। इसी बीच केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सवाल उठाने वालों के मुंह पर करारा तमाचा भी जड़ा है।

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हरदीप पुरी ने लगा दी क्लास

केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने इस मामले पर एक स्पष्टीकरण जारी किया है जिसमें उन्होंने दावा किया है कि नया प्रतीक सारनाथ की एक ‘प्रतिकृति’ है। हरदीप पुरी ने आगे कहा कि यदि सारनाथ के मूल प्रतीक की सटीक प्रतिकृति को नई संसद के ऊपर रखा जाए तो यह परिधीय रेल से परे शायद ही दिखाई दे। उन्होंने यह भी कहा कि आकार में अंतर के अलावा मूल सारनाथ और नए में कोई अंतर नहीं है। मंत्री ने यह भी कहा, “सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है।” ध्यान देने वाली बात है कि मूल सारनाथ 1.6 मीटर का है जबकि नए संसद भवन का प्रतीक 6.5 मीटर है। भाजपा नेता हरदीप पुरी ने कहा, “विशेषज्ञों’ को यह भी पता होना चाहिए कि सारनाथ में रखा गया मूल (चिह्न) जमीनी स्तर पर है जबकि नया प्रतीक जमीन से 33 मीटर की ऊंचाई पर है।”

सारनाथ में अशोक के प्रतीक और हाल ही में पीएम मोदी द्वारा अनावरण की गई एक तुलनात्मक छवि को साझा करते हुए केंद्रीय मंत्री पुरी ने कहा, “दो संरचनाओं की तुलना करते समय कोण, ऊंचाई और पैमाने के प्रभाव की सराहना करने की आवश्यकता है।” हरदीप पुरी ने आगे कहा, “यदि कोई नीचे से सारनाथ के प्रतीक को देखता है तो यह उतना ही शांत या क्रोधित लगेगा जितना कि चर्चा की जा रही है।”

हरदीप पुरी ने अपने विस्तृत ट्विटर थ्रेड को यह कहते हुए समाप्त किया कि यदि मूल प्रतीक को संसद के ऊपर वाले आकार के आकार में बढ़ाया जाएगा तो यह वही दिखेगा। उन्होंने कहा, “अगर सारनाथ के प्रतीक को बढ़ाया जाए या नए संसद भवन के प्रतीक को उस आकार में छोटा कर दिया जाए, तो कोई अंतर नहीं होगा।”

उगते सूर्य को छिपाने का साहस केवल मूर्खों में है!

इस मामले पर वामपंथियों ने कई तरह के सवाल उठाए थे। उदाहरण के लिए AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को ही देख लीजिए। ये महाशय पीएम मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पूजा करते देख कर भड़क गए। ओवैसी के अनुसार, “संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका की शक्तियों को विभाजित करता है, ऐसे में सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए संसद भवन के शीर्ष पर राजकीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था। लोकसभा के स्पीकर लोकसभा का प्रतनिधित्व करते हैं, वो सरकार के अधीन नहीं हैं।” –

चलिए, ये तो हुई ओवैसी की बात और एक बार को उनकी बात मान भी लें क्योंकि विपक्षी सांसद हैं, वैसे माननी तो नहीं चाहिए फिर भी मान लेते हैं क्योंकि ये हैं तो स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक। परंतु फिर आते हैं उच्च कोटी के डपोर शंख, अमेरिकी श्रेणी के लायर, क्षमा करें, द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन, जिन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने घर में प्रार्थना करनी चाहिए और अगर वो खुले में प्रार्थना करना चाहते हैं तो ये भारतीय संघ का कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं होना चाहिए।” उन्होंने उन्हें ‘बार-बार ऐसा अपराध करने वाला’ बता दिया और कहा कि ये स्पष्ट रूप से गलत है।

अरे ये तो कुछ भी नहीं है। क्या इस लिबरल गिरोह को पता भी है कि इस अशोक स्तंभ को स्थापित करने में कितनी मेहनत लगी है? जिन कर्मचारियों और कामगारों की बदौलत यह संभव हुआ अनावरण कार्यक्रम में उन्हें भी आमंत्रित किया गया था और पीएम मोदी ने उनसे बातचीत भी की। 8 चरणों में इसका कार्य पूरा हुआ है जिसमें मिट्टी का मॉडल बनाने से लेकर कम्प्यूटर ग्राफिक्स तैयार करना और कांस्य की इस आकृति को पॉलिश करनाआदि शामिल है। इसे सहारा देने के लिए 6500 किलोग्राम की स्टील की संरचना इसके आसपास बनाई गई है।

और तो और, जिन वामपंथी दलों को पूजा-पाठ से कोई वास्ता न हो उनके प्रतीक CPI(M) ने तुरंत बयान जारी कर दिया कि ‘धार्मिक कार्यक्रमों’ को राजकीय प्रतीक के अनावरण से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। पार्टी ने दावा किया कि ये सबका प्रतीक है न कि किसी खास धार्मिक विचार को मानने वालों का। साथ ही राष्ट्रीय समारोहों से ‘धर्म’ को अलग रखने की बात की।

ध्यान देने वाली बात है कि इसे स्थापित कराने वाले सम्राट अशोक ने भले ही इसे ‘धर्म स्तंभ’ कहा हो परंतु आज वामपंथी इसमें से ‘धर्म’ हटाने की वकालत कर रहे हैं। मतलब जब धर्म कर्म से वास्ता नहीं तो एक धर्म विशेष से इतनी घृणा किस बात की? ऐसे में एक राजनीतिक विश्लेषक सुनंदा वशिष्ठ ने वामपंथियों को ललकारते हुए कहा, “दिखा दीजिए एक सिंह जो दहाड़े नहीं और मैं दिखा दूंगी एक उदारवादी जो बुद्धि से ईमानदार हो।”

वहीं, कांग्रेस के बड़बोले नेता उदित राज भी अनर्गल प्रलाप करने से बाज़ नहीं आए। उन्होंने पूछा कि अन्य राजनीतिक दलों को क्यों नहीं आमंत्रित किया गया और साथ ही ये भी तंज कसा कसा कि क्या राजकीय प्रतीक भाजपा का है? उन्होंने कहा कि हिन्दू रीति-रिवाज से सब कुछ क्यों हुआ जबकि भारत एक ‘सेक्युलर’ राष्ट्र है?

हालांकि, केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने साक्ष्यों के साथ वामपंथियों की क्लास लगा दी है। ऐसे में यह बोलना गलत नहीं होगा कि अंधविरोध में विपक्ष ने अपना मानसिक संतुलन पूर्ण रूप से खो दिया है और वे मोदी को नीचा दिखाने के नाम पर कुछ भी बोलने को तैयार हैं, चाहे उसके लिए उन्हें नवीन संसद के नवनिर्मित अशोक स्तम्भ का उपहास ही क्यों न उड़ाना पड़े। परंतु वे एक बात भूल जाते हैं कि उगते सूर्य को छिपाने का साहस केवल मूर्खों में है और उन मूर्खों का अंत क्या होता है यह किसी से छिपा नहीं है।

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