जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है और यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्ष वी जेलेंस्की के परिप्रेक्ष्य में विवेक तो जाने कबका सुपुर्द-ए-खाक हो चुका है। रूस-यूक्रेन विवाद के कारण जेलेंस्की संसार भर से ‘सहानुभूति’ बटोरने में लगे हुए हैं परंतु धीरे-धीरे अब उनकी पोल पट्टी भी खुल रही है जिसके चक्कर में अब उन्हें UN तक से फटकार लग चुकी है। ऐसे में अब अधीरता में जेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन प्रशासन ने अब हर उस देश का बहिष्कार करना प्रारंभ कर दिया है जो उनका समर्थन नहीं कर रहा है। इसी कड़ी में सर्वप्रथम कदम उठाते हुए वी जेलेंस्की ने भारत समेत 9 देशों से अपने राजदूतों को रूस-यूक्रेन युद्ध के मध्य समर्थन न जुटा पाने के कारण निष्कासित कर दिया है।
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ABP न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) ने बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने जर्मनी (Germany), भारत (India), चेक गणराज्य, नॉर्वे, हंगरी समेत 9 देशों में यूक्रेन के राजदूतों को बर्खास्त कर दिया है। यह स्पष्ट नहीं गया कि क्या दूतों को नई नौकरी दी जाएगी और न ही आदेश में इस कार्रवाई की कोई वजह बताई गई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति की वेबसाइट पर जारी आदेश के तहत उन्होंने जर्मनी में यूक्रेन के राजदूत एंड्री मेलनिक (Andriy Melnyk) को बर्खास्त कर दिया है। ये आदेश 9 जुलाई को यूक्रेनी राष्ट्रपति की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया था।
यही नहीं, उन्होंने खेरसॉन ओब्लास्ट के गवर्नर हेनाडी लाहुता को भी हटा दिया है। जेलेंस्की ने सर्वेंट ऑफ द पीपल पार्टी से खेरसॉन ओब्लास्ट की विधायिका सदस्य दिमित्रो बुट्री को कार्यवाहक गवर्नर के रूप में नियुक्त किया था। यूक्रेन में खेरसॉन काफी ज्यादा संवेदनशील इलाका माना जाता है। यहां पर रूसी सैनिक पूरी तरह से छाए हुए हैं। हालांकि, यूक्रेनी सैनिक अभी भी वहां पर डटे हुए हैं।
इसके साथ-साथ जेलेंस्की ने हंगरी, चेक गणराज्य, नॉर्वे और भारत में यूक्रेन के राजदूतों को भी निकाल दिया। जेलेंस्की ने साथ ही अपने राजनयिकों से यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सैन्य सहायता जुटाने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन 24 फरवरी से रूस के द्वारा किए गए आक्रमण को रोकने की कोशिश कर रहा है। अब महोदय स्वयं भले न बताए परंतु सच्चाई तो यही है कि उन्हें वैसा समर्थन नहीं मिल रहा है जैसा वे चाहते थे। वैश्विक मीडिया चाहे जितना ढिंढोरा पीट ले परंतु वास्तविकता तो यही है कि यूक्रेन ने गलत समय पर गलत लोगों से पंगा लिया और आग में पेट्रोल डालने वाले अमेरिका को मजे लूटने का दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ रहा है।
वहीं, दूसरी ओर लाख चाहने पर भी भारत अपने रवैये से टस से मस नहीं हुआ। न यूक्रेन की छीछालेदर काम आई न यूरोप के छलावे और न ही अमेरिका की गीदड़भभकी, जिसके सामने जापान और जर्मनी जैसे देश तक आश्चर्यजनक रूप से झुक गए। ऐसे में भारत को स्पष्ट तौर पर सिद्ध करना पड़ा कि इस खेल में वह भी है। अब यूक्रेन के वर्तमान कदमों से इतना तो स्पष्ट है कि उनके पास अपने आप को सिद्ध करने के लिए कुछ नहीं बचा है और वे खोखले दावों एवं अमेरिका की झूठी तसल्ली के सहारे ही काम चलाना चाहते हैं। परंतु बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मनाएगी?
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