पिछले कुछ समय से आपको यह खबरें लगातार सुनने को मिल रही होगी कि डॉलर के मुकाबले रुपये कमजोर हो रहा है। इन दिनों यह खबरें तमाम समाचार चैनलों से लेकर सोशल मीडिया पर छाई हुई है कि रुपया इतना गिर गया। रुपये का मूल्य उतना हो गया। विपक्षियों द्वारा रुपए के मूल्य में आ रही लगातार गिरावट के लिए मोदी सरकार को जमकर घेरा जा रहा है। परंतु ऐसा नहीं है कि केवल भारतीय रुपये ही नीचे जा रहा हो। बल्कि देखें तो अन्य डॉलर की तुलना में अन्य करेंसियों का हाल तो इससे भी बुरा है।
हालांकि जैसे कहा जाता है कि हर संकट अपने साथ अवसर लेकर आता है। ऐसा ही कुछ भारतीय रुपये के साथ भी है। भले ही अभी भारतीय रुपये कमजोर हो रहा हो। परंतु अगर अपने पैमाने को थोड़ा बड़ा करके देखेंगे तो समझ आएगा कि हम तेजी से डी-डॉलराइजेशन यानी वैश्विक बाजारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करने और रुपये को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे है।
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अन्य देशों की करेंसी मे भी गिरावट
देश में रुपए की गिरावट को लेकर निरंतर चर्चाएं चल रही हैं। तमाम अर्थशास्त्री विशेषज्ञ से लेकर अन्य लोग इस पर अपनी अपनी चिंताएं भी व्यक्त कर रहे हैं। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 80 के भी पार तक चला गया। हालांकि वर्तमान समय की बात करें तो डॉलर की तुलना में रुपए 79.80 के स्तर पर फिसल आया है। विशेषज्ञों की मानें तो अभी आने वाले समय में रुपए में और गिरावट संभव है। डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के स्तर तक टूट सकता है। इसे भारतीय रुपए की गिरावट की जगह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के तौर पर भी देखा जा सकता है। क्योंकि इस समय केवल भारतीय रुपए का मूल्य ही नहीं घट रहा। बल्कि अन्य देशों की करेंसी को देखें तो उनकी हालत इससे भी खस्ता हो चुकी है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस साल अब तक रुपया करीब 7 फीसदी कमजोर हो चुका है। वही ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी करेंसीज डॉलर के मुकाबले रुपये से अधिक कमजोर हुई। यूरो हमेशा से ही डॉलर की तुलना में मजबूत करेंसी रहा है। परंतु यूक्रेन युद्ध के बाद इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। डॉलर के मुकाबले यूरो 12 फीसदी तक नीचे गिर गया। वहीं ब्रिटिश पाउंड, जापानी युआन समेत अन्य करेंसी का भी हाल बेहाल है।। ऐसे में अन्य करेंसी के मुकाबले तो रुपये इस वक्त मजबूत स्थिति में नजर आता है। ऐसे में इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमें इसे रुपये की गिरावट की जगहें डॉलर की मजबूती के तौर पर देखना चाहिए। परंतु देखा जाए तो अमेरिकी डॉलर की यह मजबूत स्थिर नहीं है। आगे आने वाले समय में डॉलर कमजोर पड़ता और भारतीय रुपया मजबूत होता नजर आ सकता है।
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विश्व में अब कम होगा डॉलर का दबदबा
इसके पीछे भी कई कारण है। पहला यह है कि हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की दिशा में जो निर्णय लिया है। 11 जुलाई 2022 को RBI ने एक बड़ा कदम उठाते हुए आयात और निर्यात का भुगतान रुपये में करने की इजाजत दी। इस कदम के पीछे RBI का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना और घरेलू मुद्रा में वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहन करना है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के इस फैसले से भारतीय करेंसी की साख अंतराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ेगी और साथ ही साथ डॉलर पर निर्भरता कम भी होगी।
इसके अलावा रूस और यूक्रेन के बाद भारत द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार करने की भी तैयारी में जुटा है। दरअसल, यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के दौरान तमाम देशों में रूस को अलग थलग करने के लिए उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इस वजह से रूस बाकी देशों से डॉलर में डील नहीं कर पा रहा था। प्रतिबंध के चलते भारत को भी रूस के साथ व्यापार करने में समस्या होने लगी। इस कारण भारत रूस के साथ उसकी करेंसी रूबल में व्यापार करने की योजना पर विचार करने लगा है। आने वाले में देखने मिल सकता है कि भारत, रूस के अलावा अन्य देशों के साथ भी द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार कर सकता है। भारत यह कदम उठाता है तो इससे रुपए की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बढ़ेगी और डॉलर कमजोर हो सकता है। भारत के अलावा अन्य देश भी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार करने की तैयारी में है। चीन तो ब्राजील, रूस के साथ द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार कर भी रहा है। ऐसे में अब वो दिन दूर नहीं नजर आता जब विश्व में डॉलर का दबदबा कम होगा।
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