हाल ही में आई एक खबर के अनुसार भारत में मंकीपॉक्स संक्रमण का दूसरा मामला सामने आया है जो केरल में है. इससे पहले 14 जुलाई को दक्षिण केरल के ही कोल्लम जिले से मंकीपॉक्स का पहला मामला सामने आया सामने आया था. भारत में पांच दिनों के भीतर मंकीपॉक्स के दो मामले देखने में मिले हैं और दोनों ही केरल से हैं. अब इसे संयोग कहें या कुछ और यह विचारणीय है लेकिन केरल ही वह जगह है जहां COVID-19 संक्रमण का भी पहला मामला दर्ज किया गया था. 27 जनवरी 2020 को एक 20 वर्षीय महिला सूखी खांसी और गले में खराश के कारण जब अस्पताल पहुंची तो उसे आपातकालीन वार्ड में ले जाया गया. बाद में यह बताया गया कि 20 वर्षीय केरल की रहने वाली लड़की चीन के वुहान विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली छात्रा थी और चीन में संक्रमण फैलने के बाद जल्द ही भारत में आई थी.
केवल यही दो बीमारियां नहीं बल्कि वेस्ट नाइल फीवर, निपाह जैसी महामारी भी सबसे पहले इसी राज्य में देखी गई है जिससे कि अब केवल एक ही सवाल उठता है- आखिर क्यों? क्यों यह राज्य वायरल हमलों का एक गर्म स्थान बनता जा रहा है? ध्यान देने वाली बात है कि केरल भारत का वह राज्य है जो साफ़-सफाई और मानव विकास सूची में सबसे ऊपर है. 94 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ केरल देश के अन्य सभी राज्यों को छोड़ शीर्ष पर है. तो जहां साफ़-सफाई इतनी अधिक हो और लोग साक्षर हों ऐसे में उस राज्य का इस तरह से बीमारियों का गर्भ स्थान बन जाना बहुत ही चौंकाने वाली बात है.
अगर आपने ध्यान दिया हो तो निपाह, कोरोना और वेस्ट नाइल फीवर वे बीमारियां हैं जो बाहर विदेश में जन्मी हैं. इनका भारत से कोई लेना-देना नहीं, कम से कम तब तक तो बिल्कुल भी नहीं जब तक यह तूफ़ान तेजी से फैलने नहीं लगा. केरल के वायरल हमलों की चपेट में आने का एक मुख्य कारण इस बात को माना जा सकता है कि केरलवासी दुनिया भर में फैले हुए हैं. इस राज्य के लोग जितने भारत देश के दूसरे राज्यों में नहीं दिखेंगे उतने वे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में नज़र आ जाएंगे. फिर चाहे वह काम के सिलसिले में हो या पढ़ाई, केरल के लोग विदेश जाना पसंद करते हैं.
केरल से बड़ी संख्या में डॉक्टर और नर्स विभिन्न देशों में काम करते हैं. ऐसे भी छात्र हैं जो विदेश में मेडिकल कोर्स करते हैं. ऐसे मेडिकल फील्ड में काम करने वाले लोग ही वे पहले इंसान होते हैं जिनकी अन्य देशों में जाकर वहां की बीमारी की चपेट में आने की संभावनाएं सबसे अधिक होती हैं. तो यहां प्रश्न यह उठता है कि जब ये लोग जानते हैं कि वे अन्य देश में किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आये थे जो संभवतः किसी रोग फैलाने वाली बीमारी से ग्रस्त था तो क्या यह उनकी ज़िम्मेदारी नहीं होती कि विदेश से भारत आने से पहले वे अपनी पूरी जांच करवाएं? क्या यह उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है कि वे एयरपोर्ट अथॉरिटी से संपर्क कर उन्हें सूचना दें कि जिस देश से वे आ रहे हैं वहां संभव है कि वे किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आये हों? अगर ऐसा होता तो मेडिकल जांच हेतु उचित टीम को वहां उपस्थित रखा जाता ताकि विदेश में फैला वह संक्रमण भारत तक न पहुंच सके.
केरल से बार-बार ऐसी संक्रामक ‘विदेशी’ बीमारियों की शुरुआत से और भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. मौजूदा समय में यह मामला मंकीपॉक्स से जुड़ा है. ऐसे में अब स्थानीय सरकार को शीघ्र ही कड़े कदम उठाते हुए यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि इस संक्रमण को वहां से बाहर नहीं निकलने दिया जाए. केरल के हर 100 में से 94 लोग पढ़े लिखे हैं. अपनी साक्षरता पर घमंड करने वाले इन लोगों को अब तक अपनी ज़िम्मेदारी समझ आ जानी चाहिए थी लेकिन शायद किसी ने सच ही कहा है कि कहने में और करने में धरती-आसमान का फर्क होता है.
साक्षरता को पढ़ने और लिखने की क्षमता से मापा जाता है और सारी चीजें यूं ही छोड़ दी जाती है. केरल की बढ़ी हुई साक्षरता का अर्थ केवल इतना है कि केरल में 90% से अधिक आबादी पढ़ और लिख सकती है लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि केरल 100% साक्षर है, शिक्षित नहीं है. साक्षर होने और शिक्षित होने में हमेशा एक बड़ा अंतर होता है और यह केरल में निपाह, कोरोना और अब मंकीपॉक्स के फैलने जैसी घटनाओं ने साबित कर दिया है. उम्मीद है कि केरल की सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर ध्यान देगी और वहां की जनता भी अपने राज्य और देश के प्रति अपना फ़र्ज़ निभाएगी. अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब केरल को वाकई में बीमारियों का गर्भस्थान घोषित कर दिया जायेगा.
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